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यहां मार्निंग वॉक पर निकलते हैं मगरमच्छ
Posted on 02 Oct, 2011 10:52 AM शिवपुरी/ग्वालियर। मध्यप्रदेश के इस शहर में मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों को अक्सर ऐसे साथी मिल जाते हैं जिन्हें देखते ही सुबह-सुबह उनके पसीने छूट जाते हैं। ये हैं शहर के करीब की जाधव सागर, माधव झील, चांदपाठा झील तथा गुर्जर तालाब में रहने वाले मगरमच्छ। बीते कुछ समय में माधव नेशनल पार्क की टीम शहर के भीतर से 35 मगरमच्छों को पकड़ चुकी है। बीते कई वर्षों से मगरमच्छों के आसपास रहते हुए लोगों को अब मगरम
मगरमच्छ
82 साल के शिक्षक ने सुधारी तालाबों की 'सेहत'
Posted on 29 Sep, 2011 09:19 AM नई दिल्ली। जिस उम्र में बड़े-बुजुर्ग लाठी का सहारा लेने को मजबूर होते हैं, उस पड़ाव पर एक सेवानिवृत्त शिक्षक ने कानून की ‘लाठी’ थामकर समाज और पर्यावरण की भलाई का बीड़ा उठाया। गांव के बदहाल तालाबों की खातिर 82 की उम्र में हाईकोर्ट तक (एक तरफ से लगभग 35 किलोमीटर) का सफर किया और तालाबों की ‘सेहत’ को सुधरवा कर दम लिया। हाईकोर्ट के संज्ञान में आते ही तालाबों की स्थिति सुधरने लगी, भविष्य में कोता
ठंडो पाणी मेरा पहाड़ मा, न जा स्वामी परदेसा
Posted on 26 Sep, 2011 06:59 PM

दूधातोली में जब से पानी का, चाल और खाल का काम प्रारंभ हुआ है, तब से यहाँ के वन आग से सुरक्षित हो चले हैं। सभी ग्राम वनों में बनी चालों के कारण उनमें गर्मी के तपते मौसम में भी नमी और इस कारण हरियाली बनी रहती है, आग नहीं लग पाती। कहीं आग लग भी जाए तो यह लाचारी नहीं होती कि अब इसे कैसे बुझाया जाए। भरनों गाँव के अपने पाले वन में, मई 1998 में आग जरूर लगी थी पर चालों की उपस्थिति के कारण वह जल्दी ही नियंत्रण में आ गई थी।

ढौण्ड गाँव (पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड) के पंचायत भवन में छोटी-छोटी लड़कियाँ नाच रहीं थीं। उनके गीत के ये बोल सामने बैठे पूरे गाँव को बरसात की झड़ी में भी बांधे हुए थे। भीगते दर्शकों में ऐसी कई युवा और अधेड़ महिलाएँ थीं, जिनके पति और बेटे अपने जीवन के कई बसंत ‘परदेस’ में ही बिता रहे हैं, ऐसे वृद्ध भी इस कार्यक्रम को देख रहे थे, जिनने अपने जीवन का बड़ा भाग ‘परदेस’ की सेवा में लगाया है और भीगी दरी पर वे छोटे-बच्चे-बच्चियां भी थीं, जिन्हें शायद कल परदेस चले जाना है।

एक गीत पहाडों के इन गाँवों से लोगों का पलायन भला कैसे रोक पाएगा?

लेकिन गीत गाने वाली टुकड़ी गीत गाती जाती है। आज ढौण्ड गाँव में है तो कल डुलमोट गाँव में फिर जन्दिया में, भरनों में, उफरैंखाल में। यह केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं है। इसमें कुछ गायक हैं, नर्तक है, एक हारमोनियम, ढोलक है तो सैकड़ों कुदाल-फावड़े भी हैं जो हर गाँव में कुछ ऐसा काम कर रहे हैं कि वहां बरसकर तेजी से बह जाने वाला पानी
sachidanand bharti
वन, वृक्ष और नदी का सरकारी प्रबंधन
Posted on 24 Sep, 2011 10:21 AM

भारत में प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और स्वामित्व कमोवेश सरकारी विभागों के ही हाथ में है। इस

परम्परागत जलाशयों का संरक्षण
Posted on 22 Sep, 2011 05:02 PM

वन-विनाश का प्रत्यक्ष प्रभाव वर्षा, वातावरण तथा जलस्रोतों पर पड़ता है। करोड़ों रुपया खर्च कर, ज

दूध के नाम पर जहर की खरीद-बिक्री
Posted on 19 Sep, 2011 03:44 PM

बिहार में सहकारिता क्षेत्र से तीन लाख 4 हजार दुग्ध उत्पादक परिवार जुड़े हैं। इनमें 14.7 प्रतिश

पानी और इंजेक्शन से बना रहे दूध!
Posted on 19 Sep, 2011 02:43 PM

प्रदेश के विभिन्न शहरों में दुग्ध संघ द्वारा संचालित संस्थाओं के माध्यम से दूध की सप्लाई की जा

कितना सुरक्षित है आपका दूध
Posted on 19 Sep, 2011 02:25 PM

सिर्फ मिलावट ही नहीं, चारा और इंजेक्शन तक हैं नुकसानदेह

विलुप्त हो गयी कुदरा नदी
Posted on 16 Sep, 2011 02:14 PM

सासाराम। इतिहास गवाह है कि सभ्यताएं नदी के किनारे पनपीं देश व दुनिया के अधिकतर शहर आज भी नदियों के किनारे ही बसे हैं, ऐसे में बिना नदी के शहर सासाराम का बसा होना आश्चर्य की बात लगती है वह भी ऐसा शहर, जिसका लिखित इतिहास 251 ईसा पूर्व का है।

कुदरा नदी अस्तित्व ही खत्म हो गया है
कृत्रिम बांध की बजाय पूरे हिमालय को प्राकृतिक बांध बनाया जाएः बहुगुणा
Posted on 12 Sep, 2011 02:37 PM

नई दिल्ली, (भाषा)। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि को पेजयल संकट का प्रमुख कारण बताते हुए प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा ने कहा कि हिमालय पर कृत्रिम बांध बनाने की बजाए पूरे क्षेत्र का प्राकृतिक बांध के रूप में विकास किया जाए।

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