शिवपुरी/ग्वालियर। मध्यप्रदेश के इस शहर में मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों को अक्सर ऐसे साथी मिल जाते हैं जिन्हें देखते ही सुबह-सुबह उनके पसीने छूट जाते हैं। ये हैं शहर के करीब की जाधव सागर, माधव झील, चांदपाठा झील तथा गुर्जर तालाब में रहने वाले मगरमच्छ। बीते कुछ समय में माधव नेशनल पार्क की टीम शहर के भीतर से 35 मगरमच्छों को पकड़ चुकी है। बीते कई वर्षों से मगरमच्छों के आसपास रहते हुए लोगों को अब मगरमच्छों की आदत होती जा रही है। मार्स प्रजाति के ये मगरमच्छ 6 से 14 फीट तक के होते हैं। वन्य जीव वैज्ञानिकों के मुताबिक इस क्षेत्र में मगरमच्छों की संख्या 250 से 500 तक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मगरमच्छ अपने शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए पानी से बाहर आते है और गर्मी को सोखकर वापस पानी में चले जाते हैं।
यहां मिलने वाली मगरमच्छो की प्रजाति भारत, पाकिस्तान और बांगलादेश में ही पाई जाती है। एक मादा मगरमच्छ एक सीजन में चालीस पचास अंडे देती है, जिनमें से बीस फीसदी ही बच पाते हैं। यहां इनकी संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। अगर इनका सही ढंग से संरक्षण किया जाए तो देश में एकमात्र चेन्नई के क्रोकाडाइल बैंक ट्रस्ट की तर्ज पर यहां भी बैंक बनाया जा सकता है। हाल ही में शहर के चिंताहरण मंदिर के सामने राजू केवट ने रात में 6 फीट के मगरमच्छ को अपने आंगन में बांध लिया था। वहीं, 14 फीट के मगरमच्छ को पकडऩे के लिए स्थानीय भदैया कुंड खाली करना पड़ा था।
यहां मिलने वाली मगरमच्छो की प्रजाति भारत, पाकिस्तान और बांगलादेश में ही पाई जाती है। एक मादा मगरमच्छ एक सीजन में चालीस पचास अंडे देती है, जिनमें से बीस फीसदी ही बच पाते हैं। यहां इनकी संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। अगर इनका सही ढंग से संरक्षण किया जाए तो देश में एकमात्र चेन्नई के क्रोकाडाइल बैंक ट्रस्ट की तर्ज पर यहां भी बैंक बनाया जा सकता है। हाल ही में शहर के चिंताहरण मंदिर के सामने राजू केवट ने रात में 6 फीट के मगरमच्छ को अपने आंगन में बांध लिया था। वहीं, 14 फीट के मगरमच्छ को पकडऩे के लिए स्थानीय भदैया कुंड खाली करना पड़ा था।
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