सिर्फ मिलावट ही नहीं, चारा और इंजेक्शन तक हैं नुकसानदेह
इसी वर्ष मई महीने में चलाए गए अभियान में पराग के जांच शिविर में 53 नमूनों में से दो में तो फार्मालीन तक मिलाए जाने की पुष्टि हुई। फार्मालीन बहुत ही घातक और जहरीला रसायन है। इसका इस्तेमाल शव को सुरक्षित रखने में किया जाता है। यह कृत्रिम दूध सात-आठ रुपए में तैयार हो जाता है। मिलावटी दूध को उबालते समय ऊपरी सतह पर मलाई की परत नहीं जमती लेकिन ठंडा करने के लिए रखा जाए तो मोटी मलाई दिखने लगती है।
कभी पूर्ण आहार समझा जाने वाला दूध अब सेहत के लिए दिक्कत का सबब बन बैठा है। इसकी वजह सिर्फ मिलावट ही नहीं है। दूध देने वाले पशुओं को रासायनिक खादों से तैयार किया गया खिलाया जा रहा चारा ही नहीं बल्कि दूध निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ऑक्सीटॉक्सिन का जहरीला इंजेक्शन भी है। इस इंजेक्शन को लगाए जाने को लेकर कृषि मंत्रालय की कृषि अनुसंधान व संसद की स्थायी समिति के बीच इस कदर मतभेद है कि सांसदों को सामने आना पड़ा। स्थायी समिति ने दावा किया कि ऑक्सीटॉक्सिन नामक हार्मोन के प्रयोग से जानवर ही नहीं, इन्सानों की सेहत भी खराब हो रही है पर कृषि मंत्रालय ने करनाल के राष्ट्रीय डेयरी विकास संस्थान में भैंसों व गायों पर इस इंजेक्शन का महज दस दिन प्रयोग करके यह साबित कर दिखाया कि इसका कोई नुकसान नहीं है। हालांकि प्रयोग के दौरान जानवरों को ऑक्सीटॉक्सिन की कम मात्रा लगाई गई। मसलन, गायों में इंजेक्शन की मात्रा 2.5 आईयू (इंटरनेशनल यूनिट) और भैंसों में पांच आईयू तक लगाई गई, जबकि आमतौर पर दस आईयू ऑक्सीटॉक्सिन लगाया जाता है। यह प्रमाणित तथ्य है कि पशुओं को लगने वाले इस इंजेक्शन से महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पुरुषों में भी नपुंसकता आती है। डॉक्टरी रिपोर्ट बताती है कि ऑक्सीटॉक्सिन प्रभावित दूध से रक्तचाप बढ़ने और दिल का दौरा बढ़ने के अलावा महिलाओं का मासिक चक्र भी अनियमित होता है।दरअसल छोटे दुग्ध उत्पादकों से लेकर बड़ी डेयरी तक का दूध सेहत के लिए फायदेमंद नहीं रह गया है। दूध के मिलावटखोरों ने क्रीम निकालने के बाद बचे सपरेटा में घटिया किस्म का पाऊडर वाला दूध व रिफाइंड ऑयल, ग्लूकोज सीरप और रसायन मिलाकर भी दूध तैयार करना शुरू कर दिया। यही नहीं, उत्तर प्रदेश के औषधि नियंत्रण विभाग ने तो बीते दिनों अपनी छापामारी में यहां तक पाया कि नकली दूध तैयार करने के लिए सिंथेटिक पदार्थ, यूरिया, डिटर्जेंट पाउडर, सुअर की चर्बी, रसायन, ग्लूकोज, रिफाइंड और रीठा का प्रयोग भी तमाम दूधिए कर रहे हैं। इसी वर्ष मई महीने में चलाए गए अभियान में पराग के जांच शिविर में 53 नमूनों में से दो में तो फार्मालीन तक मिलाए जाने की पुष्टि हुई। फार्मालीन बहुत ही घातक और जहरीला रसायन है। इसका इस्तेमाल शव को सुरक्षित रखने में किया जाता है। यह कृत्रिम दूध सात-आठ रुपए में तैयार हो जाता है। मिलावटी दूध को उबालते समय ऊपरी सतह पर मलाई की परत नहीं जमती लेकिन ठंडा करने के लिए रखा जाए तो मोटी मलाई दिखने लगती है। दूध की रिचर्ड मिशेल वैल्यू (आरएम) 30 से 35 होनी चाहिए लेकिन आज आमतौर पर दूध की आरएम 28 से 20 बमुश्किल हो पाती है।
आंकड़े बताते हैं कि एक व्यक्ति के हिस्से में उत्तर प्रदेश में महज 279 ग्राम दूध प्रति दिन आता है। यहां राज्य सरकार की प्रादेशिक कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन सरकारी तौर पर दूध का कारोबार करती है। वह 36 रुपए लीटर पराग गोल्ड, 28 रुपए लीटर स्टैंडर्ड, 26 रुपए लीटर टोंड मिल्क और 18 रुपए लीटर जनता दूध बेचती है। प्रतिदिन छह लाख लीटर दूध का कारोबार अकेले पराग करता है, लेकिन दो साल पहले कानपुर के स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने इसके दूध में भी मिलावट की शिकायत की थी। तत्कालीन नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.एल.के. तिवारी ने आरोप लगाया था कि पराग के दूध में सेचुरेटेड फैट की मिलावट पाई गई है। यह सिर्फ जीवित प्राणियों में पाया जाता है। हालांकि पराग के तत्कालीन महाप्रबंधक गोविंद श्रीवास्तव ने इसे स्वास्थ्य विभाग की मनमानी बताते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश कहकर मिलावट के आरोपों को रफा-दफा कर दिया था।
![दूध भी जहरीला हो गए हैं दूध भी जहरीला हो गए हैं](/sites/default/files/hwp/import/images/milk.jpg)
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