दूध के नाम पर जहर की खरीद-बिक्री

बिहार में सहकारिता क्षेत्र से तीन लाख 4 हजार दुग्ध उत्पादक परिवार जुड़े हैं। इनमें 14.7 प्रतिशत महिलाएं हैं। बाढ़ की वजह से फिलहाल दूध उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। दूध उत्पादन में तीस फीसदी की गिरावट आई है। चूंकि असंगठित क्षेत्र ही नब्बे फीसदी से अधिक दूध की आपूर्ति करता है इसलिए मिलावट की जांच मुश्किल होती है।

राज्य में दूध की नदियां बहाने के आश्वासन लंबे समय से दिए जाते रहे हैं लेकिन हकीकत में पेय पदार्थों में अमृत का दर्जा प्राप्त इस पेय के बदले जहर का कारोबार अधिक हो रहा है। बिहार में सहकारिता क्षेत्र से जरूरत का सिर्फ 8 फीसदी दूध ही मिल पाता है। शेष 92 फीसदी दूध का कारोबार असंगठित क्षेत्र के जिम्मे है जिसमें मिलावट आम बात है। पहले दूध में पानी मिलाने की शिकायतें होती थी लेकिन अब दूध के नाम पर कास्टिक सोडा, यूरिया, सस्ता तेल और घटिया डिटरजेंट का घोल आम लोगों को परोसा जा रहा है। सिंथेटिक दूध देखने में तो हू-ब-हू असली दूध जैसा होता है लेकिन तासीर में यह जहर के बराबर है। कैंसर फैलाने वाले इस कारोबार को रोकने के पुख्ता इंतजाम अब तक नहीं हो पाए हैं। अव्वल तो मिलावटी दूध पकड़ने में ही मुश्किल होती है और अगर कभी ऐसा दूध पकड़ा भी जाता है तो मौत के कारोबारी अक्सर छूट जाते हैं।

झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार के पास खनिज संपदा नहीं रही। इसलिए अब कृषि ही विकास का कारगर माध्यम रह गया है। दूध उत्पादन का सकल घरेलू उत्पाद में बड़ा योगदान हो सकता है। इस जरूरत को महसूस करते हुए कृषि विभाग ने डेयरी रोडमैप बनाया है लेकिन अब भी प्रदेश का बड़ा हिस्सा दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सहकारिता से नहीं जुड़ पाया है। बिहार में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान 20 प्रतिशत से घटकर 12 हो गया है जबकि कृषि का योगदान 32 से बढ़कर 39 फीसदी हुआ है। इस रूप में दूध उत्पादन बिहार की तरक्की में अहम योगदान दे सकता है। देश के कुल दूध उत्पादन का 5.2 प्रतिशत बिहार पूरा करता है। बिहार में प्रति व्यक्ति दूध की खपत 154 ग्राम है जबकि राष्ट्रीय औसत 241 ग्राम है। इस तरह बिहारियों को प्रतिदिन 66 ग्राम कम दूध मिलता है।

बिहार में दूध का 90 प्रतिशत कारोबार निजी क्षेत्र में है।बिहार में दूध का 90 प्रतिशत कारोबार निजी क्षेत्र में है।वर्तमान में बिहार में 140 लाख किलोग्राम दूध का उत्पादन प्रतिदिन होता है। इसमें सहकारिता क्षेत्र का योगदान महज आठ फीसदी है। एक अनुमान के मुताबिक बिहार में 2012 तक प्रतिदिन 172 लाख किलोग्राम दूध का उत्पादन होने लगेगा। 2022 तक उत्पादन 240 लाख किलोग्राम तक बढ़ाने का लक्ष्य है। बिहार में वर्तमान में 6200 डेयरी कोऑपरेटिव सोसाइटी हैं। ये सोसाइटियां सूबे के 7750 गांवों को कवर करती हैं। गांवों की कुल संख्या का 19.5 प्रतिशत ही इस क्रम में कवर हो पाता है। बिहार में 38 जिले हैं जिनमें दस में सहकारी दुग्ध समितियां नहीं हैं। प्रदेश में पांच दुग्ध यूनियन हैं जिनका गठन जिला स्तर पर हुआ है। यूनियन 24 जिलों को कवर करते हैं। गया मिल्क शेड के अंतर्गत गया के अलावा जहानाबाद का क्षेत्र आता है जबकि भागलपुर मिल्क शेड में मुंगेर के भी हिस्से आते हैं। कम्फेड इन मिल्क शेड की देखरेख करता है। पूर्णिया, अररिया और किशनगंज समेत 28 जिलों में दूध की व्यवस्था डेयरी निदेशालय के तहत की जाती है।

बिहार में सहकारिता क्षेत्र से तीन लाख 4 हजार दुग्ध उत्पादक परिवार जुड़े हैं। इनमें 14.7 प्रतिशत महिलाएं हैं। बाढ़ की वजह से फिलहाल दूध उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। दूध उत्पादन में तीस फीसदी की गिरावट आई है। चूंकि असंगठित क्षेत्र ही नब्बे फीसदी से अधिक दूध की आपूर्ति करता है इसलिए मिलावट की जांच मुश्किल होती है। सिंथेटिक दूध की जांच के लिए व्यापक अभियान अब तक नहीं चलाया जा सका है। रोज रेलगाड़ियों से हजारों लीटर दूध पटना और बड़े शहरों में आता है। प्लेटफार्म पर दूध में मिलावट करते दूधिए अक्सर देखे जा सकते हैं लेकिन कार्रवाई शून्य ही रही है। सहकारी क्षेत्र के दुग्ध पैकेटों में वायरस की जांच की कारगर व्यवस्था का भी अभाव है।

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