उत्तराखंड

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उत्तराखण्ड में भूकम्पीय जोखिम
Posted on 20 Oct, 2016 03:14 PM

हिमालय में आने वाले भूकम्पों की स्थिति देखें तो प्रतीत होता है कि अधिकांशतः भूकम्प मुख्य

उत्तराखण्ड प्राकृतिक आपदा जून 2013 : एक वैज्ञानिक विवेचना
Posted on 18 Oct, 2016 09:47 AM
प्रागैतिहासिक काल में लगभग 5 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय महाद्वीप व यूरेशियन प्लेट के टकराव से उत्पन्न हिमालय पर्वत श्रृंखला आज भी निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रही है। अनवरत रूप से निर्माण-पुनः निर्माण की प्रक्रिया से हिमालय की संरचना में बाहरी व आन्तरिक तोड़-फोड़ व बदलाव जारी रहता है। फलस्वरूप इसका पारिस्थितिकीय तंत्र बहुत ही संवेदनशील एवं नाजुक है। इसके कारण प्राकृतिक आपदायें हिमालय क्षेत्र में व
सर-बडियाड़ के सात जल धारे
Posted on 17 Oct, 2016 12:19 PM


यूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।

यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गोमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले।

सर बडियाड़ गाँव में बहता धारा
आपदाओं से चुनौतियाँ : सक्षमता पर सवाल
Posted on 16 Oct, 2016 03:20 PM

ग्लोबल वार्मिंग को हम ऋतुओं में परिवर्तन का कारण मानते हैं। अच्छा है हमारा प्राचीन धार्मि

पलायन मात्र सेमिनारी चिन्तन-मनन
Posted on 15 Oct, 2016 04:04 PM

‘पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नहीं आती’ कहावत सामाजिक चिन्तकों और राजनीतिज्ञों की जुबानी अक्सर उत्तराखण्ड के पर्वतीय हिस्सों से होते पलायन पर चिन्ता जताते सुना जाना आम है। इस कहावत की सच्चाई पर कोई शक नहीं है। पलायन से हो रहे नफा-नुकसान की चिन्ताओं के बीच पहाड़ के गाँवों की हकीकत जानने निकलें तो पाएँगे कि जिम्मेदार लोगों की चिन्ता नकली है। यदि चिन्ता असली होती तो खाली होते पह

मिलानकोविच चक्र एवं हिमाच्छादित पृथ्वी
Posted on 13 Oct, 2016 04:53 PM

मिलानकोविच चक्र के आधार पर जलवायु परिवर्तन क्रर्मिक रूप से सालों साल इसी तरह होता रहेगा।

पाटुड़ी के ग्रामीणों ने जोड़े पानी के बूँद-बूँद
Posted on 13 Oct, 2016 04:20 PM
उत्तराखण्ड की दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसा एक बहुत ही छोटा गाँव पाटुड़ी की कहानी भी कुछ ऐसी है। जल संकट और इससे उबरने की इस गाँव की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरणा देने वाली है।

इस गाँव के लोगों ने 1998-1999 में ही जल संकट का इतना खतरनाक खौफ देखा जो किसी आपदा से कमतर नहीं थी, खैर लोगों ने संयम बाँधा डटकर जल संकट से बाहर आने की भरसक कोशिश की। इसी के बदौलत इस संकट से ऊबरे और आज यह गाँव खुशहाल है। गाँव के लोगों ने मिलकर एक संगठन का निर्माण किया, टैंक बनवाये, खुद ही फंड इकट्ठा किया और बिना सरकारी मदद के असम्भव को सम्भव बना दिया।
पाटुड़ी गाँव का जलस्रोत
भूवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन, प्रारम्भ से वर्तमान तक
Posted on 13 Oct, 2016 03:49 PM
‘‘किस प्रकार के जैविक, रासायनिक और भूभौतिकीय कारणों से वायुमण्डल अस्तित्व में आया और फिर जिसने जटिल जीवों के विकास का मार्ग सुगम बनाया ?’’ सरीखे अभूतपूर्व प्रश्न को केंद्र बिंदु बनाकर 2008 में साइंस में फकोसकी तथा इसोजोकी ने भूविज्ञान परिचर्चा में ‘ऑक्सीजन की कहानी’ शीर्षक के अंतर्गत अपना मत व्यक्त करते हुए निम्नवत तथ्य प्रस्तुत किये।
जंगल की आग
Posted on 13 Oct, 2016 02:35 PM
एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार हाल के वर्षों में पृथ्वी पर जंगल की आग की घटनाएँ बढ़ी हैं। ग्लोबल वार्मिंग के साथ इनके और भी बढ़ने की सम्भावनाएं हैं। आग के कारण दुनिया भर में जंगल से लगी हुई मानव बस्तियों के उजड़ने व आजीविका के नुकसान के अलावा वर्ष भर में लगभग 3,39,000 मानवों की मृत्यु हो जाती है। पारिस्थितिक तन्त्र में बदलाव आने के कारण कई पादप प्रजातियाँ क्षेत्र विशेष से विलुप्त होने लगती हैं,
वैश्विक तापमान वृद्धि: सच्चाई या सुनियोजित भ्रमजाल
Posted on 10 Oct, 2016 04:55 PM
वातावरण में हो रहे परिवर्तनों एवं तत्संबंधी पारस्थितिकीय कारकों की नब्ज टटोलना इंसान की वंशानुगत जिज्ञासा रही है। विषय, विज्ञान परख होने के कारण इसकी जिम्मेदारी भी वैज्ञानिक समुदाय की ही रही है एवं प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर ही राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य वैज्ञानिकों व आम जनमानस की सोच एवं धारणा भी परिवर्तित हो जाती है। यहाँ तक कि स्थानीय स्तर से लेकर वैश्विक स्तर पर विकास ए
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