उत्तराखंड

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जिद्दी विकास के खतरे
Posted on 03 Aug, 2014 03:14 PM इन दिनों पूरे देश की नजर उत्तराखंड पर है, नेताओं, प्रशासकों, पर्यावरणविदों से लेकर आम आदमी तक सिर्फ इसी भयावह त्रासदी की चर्चा है। सभी अपनी-अपनी ओर से सलाहकारों की भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन इस विनाश का पछतावा या इसकी पुनरावृत्ति सबंधी चिंता या तो शून्य मात्र है या अल्पकालिक है। इसका कारण ‘हमारे न सुधरने’ की प्रवृत्ति है। उत्तराखंड में आई त्रासदी की यह कोई पहली घटना नहीं है, इसका इतिहास अपने आप मे
विद्युत परियोजनाओं से तबाह होता ग्रामीण जन-जीवन
Posted on 12 Jul, 2014 02:48 PM प्राकृतिक संसाधनों के धनी क्षेत्र उत्तराखंड में पिछले कई वर्षों से संसाधनों की लूट मची है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही यह मंजर देखने को मिलता रहा है। कई पीढ़ियों से प्रकृति के साथ जी रहे यहां के जनमानस का जुड़ाव प्रकृति के साथ स्वाभाविक है। इसीलिए स्वार्थवश संसाधनों के दोहन के विरोध में उत्तराखंड के ग्रामीण आगे आते रहे हैं। यहां के ग्रामीणों का जीवन जल-जंगल व जमीन पर निर्भर है। इसके बावजूद
क्या हो उत्तराखंड विकास का मॉडल
Posted on 12 Jul, 2014 01:33 PM उत्तराखंड की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विकास की नीतियां बनाई जाने की जरूरत है। उत्तराखंड में कोई भी विकास की योजना वहां को लोगों, वहां के पेड़, भू-भौतिकी और इकोलॉजी को ध्यान में रखकर ही बननी चाहिए। पर जो वर्तमान विकास का मॉडल अपनाया गया है, वह विनाशकारी साबित हो रहा है। पहाड़ों में विनाशकारी त्रासदियों का बढ़ना दुखदायी तो है ही, साथ ही उत्तराखंड के नीति-निर्माताओं पर सवाल भी खड़े करता है।
टूट कर ही बनते हैं पहाड़
Posted on 12 Jul, 2014 12:52 PM पहाड़ पर आई है आपदा
और मैं नही हूं इससे विचलित
पहाड़ पर आपदा दरअसल एक गति है।
ठहराव के खिलाफ रहे हैं पहाड़
वे बनते-टूटते-बिखरते-जुड़ते ही पहाड़ हो पाते हैं।
पहाड़ नहीं खींचे जा सकते सपाट लकीरों में
पहाड़ों की नहीं हो सकतीं मनचाही गोलाइयां।

पहाड़ तोड़ते ही आये हैं
अपनी ऊचाइयों को
बहते-फिसलते ही रहे पानी की तेज धाराओं में घुलकर।
अनदेखी और लालच की आपदा
Posted on 12 Jul, 2014 12:10 PM उत्तराखंड में 16-17 जून को आई भीषण आपदा पर अब तक बहुत कुछ कहा-लिखा जा चुका है। इन्द्रेश मैखुरी और साथियों द्वारा तत्काल किए गए दौरे की रिपोर्ट कई अखबारों में प्रकाशित हो चुकी है। पुनः इसे प्रासंगिक समझ कर उत्तरा में दिया जा रहा है।
आपदा और महिलाएं
Posted on 12 Jul, 2014 10:21 AM जून माह में आई आपदा के कारण जो त्रासदी हुई, उसकी याद एक दर्द की तरह सालती रहेगी सालों साल!
उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान
Posted on 11 Jul, 2014 04:17 PM 8 जुलाई 2009 को उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान ने दो वर्ष पूरे किये। अभियान के अन्तर्गत इन दो वर्षों में पूरे उत्तराखंड की प्रत्येक नदी घाटी की 60 पदयात्रायें (3200 किलोमीटर), टौंस से लेकर काली नदी तक की 3000 किलोमीटर की 3 जलयात्रायें (वाहन यात्रायें) तथा 2 राज्यस्तरीय जन सम्मेलन तथा बीसियों गोष्ठियां सम्पन्न हुईं, जिनमें राज्य भर के समाजकर्मी एवं जननेता उत्तराखंड की नदियों पर आये संकटों के निराकरण के
गंगा की अविरलता बनाए रखने में कोई भी चीज बाधक नहीं बनने दी जाएगी : उमा
Posted on 29 Jun, 2014 10:28 AM हरिद्वार (भाषा)। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा कि गंगा की अविरलता और निर्मलता बनाए रखने में कोई भी चीज बाधक नहीं बनने दी जाएगी।
यह ऊर्जा प्रदेश नहीं मुर्दा प्रदेश बनने वाला है : सुशीला भंडारी
Posted on 26 Jun, 2014 05:12 PM 22 अगस्त 2012 को श्रीनगर गढ़वाल (उत्तराखड) में बड़े बांधों के विरोध में विभिन्न जनसंगठनों की एक गोष्ठी हुई, जिसमें रुद्रप्रयाग से सुशीला भंडारी भी आईं थीं। वहीं उनके साथ कमला पंत तथा उमा भट्ट की बातचीत हुई। रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लॉक के स्यूरबांगर गांव के श्री मातबर सिंह नेगी तथा श्रामती मैनावती की पुत्री सुशीला का विवाह अगस्त्यमुनि के समीपस्थ गांव रायड़ी के श्री मदन सिंह भंडारी से हुआ। रु
कब सुनेंगे हिमालय का हाहाकार : केदारनाथ त्रासदी का एक साल
Posted on 15 Jun, 2014 11:06 AM हिमालय चीख-चीखकर पूछ रहा है कि जब मैं मिट जाऊंगा, तब जागोगे तुम लोग? पहाड़ों से चौतरफा छेड़छाड़ ने हिमालय के मायने बदल दिए हैं। यह पर्वत श्रृंखला न सिर्फ विकास की भेंट चढ़ी है, बल्कि आतंकवाद और सीमाविवाद ने भी इसे झकझोरा है। पहाड़ की हरियाली-खुशहाली तबाह कर दी गई। आज तपस्वियों जैसी शांत पहाड़ियों पर जमी भारी-भरकम तोपें हिमालय को मुंह चिढ़ा रही हैं...
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