Posted on 03 Aug, 2014 03:14 PMइन दिनों पूरे देश की नजर उत्तराखंड पर है, नेताओं, प्रशासकों, पर्यावरणविदों से लेकर आम आदमी तक सिर्फ इसी भयावह त्रासदी की चर्चा है। सभी अपनी-अपनी ओर से सलाहकारों की भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन इस विनाश का पछतावा या इसकी पुनरावृत्ति सबंधी चिंता या तो शून्य मात्र है या अल्पकालिक है। इसका कारण ‘हमारे न सुधरने’ की प्रवृत्ति है। उत्तराखंड में आई त्रासदी की यह कोई पहली घटना नहीं है, इसका इतिहास अपने आप मे