उत्तराखंड

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कल की गंगा
Posted on 12 Feb, 2009 09:27 AM रेशमा भारती/ जनसत्ता
शंकराचार्यों ने केन्द्र को चेताया
Posted on 11 Feb, 2009 02:45 PM
द्वारिका पीठ व ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य के उत्तराधिकारी श्री अविमुक्तेश्वरा नन्द ने भागीरथी में नैसर्गिक प्रवाह की मांग को लेकर अनशन पर बैठे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. जी.डी. अग्रवाल के समर्थन में बोलते हुए केन्द्र सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उसने सही दिशा में सही कदम नहीं उठाया तो उसे आगामी चुनाव में इसके नतीजे भुगतने होंगे। कल शाम यहां पंजाबी भवन में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में डा.
वाटर सम्मिट – 2009
Posted on 10 Feb, 2009 03:39 PM वाटर सम्मिट – 2009,(जल शिखर सम्मेलन) कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर-263145 जिला-ऊधम सिंह नगर, ऊत्तराखंड के द्वारा आयोजित किया जा रहा है। शिखर सम्मेलन 19-21, फ़रवरी 2009 से आयोजित किया जा रहा है।
अगर दुनिया को बचाना है .........
Posted on 08 Feb, 2009 07:45 AM

तो हिमालय को पेड़ों से ढकें


जागरण – याहू / प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा मानते हैं कि अगर दुनिया को बचाना है तो हिमालय को पूरी तरह पेड़ों से ढकना होगा। पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग के खतरों सहित तमाम मुद्दों पर देहरादून में 'दैनिक जागरण' के मुख्य संवाददाता अतुल बरतरिया ने बहुगुणा से बातचीत की। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-
होली का संदेश
Posted on 06 Feb, 2009 12:03 PM अनावश्यक और हानिकारक वस्तुओं को हटा देने और मिटा देने की हिन्दूधर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा गया है और इस दृष्टिकोण को क्रियात्मक रूप देने के लिए होली का त्यौहार बनाया गया है । रास्तों में फैले हुए कांटे, शूल, झाड़ झंखाड़, मनुष्य समाज की कठिनाइयों को बढ़ाते हैं, रास्ते चलने वालों को कष्ट देते हैं, ऐसे तत्वों को ज्यों को त्यों नहीं पड़ा रहने दिया जा सकता, उनकी ओर से न आँख चुराई जा सकती है औ
गरमी का ताप : गरीबों का संताप
Posted on 02 Feb, 2009 08:11 AM

सुभाष चंद्र कुशवाहा

पर्वतीय विकास का चश्मा बदलिए
Posted on 31 Jan, 2009 07:34 AM भारत डोगरा

पर्वतीय विकास की विसंगतियों की शुरुआत ही यहां से होती है कि इस अंचल को बाहरी असरदार लोगों ने या तो होटल के रूप में देखा है या संसाधनों के पिटारे के रूप में। अंगरेजों व राजे-रजवाड़ों के दिनों से लेकर आज तक यहां वनों की कटाई और खनिजों का दोहन बदस्तूर चलता रहा है। ऐसे पर्यटन स्थल बनते रहे, जो पहाड़ी लोगों से कटे हुए थे। इन वनों के साथ कितने गांव वासियों का अस्तित्व जुड़ा हुआ है,
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