उत्तर प्रदेश

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‘राज और समाज’ का साझा प्रयास: बकुलाही पुनरोद्धार
Posted on 03 Aug, 2013 10:58 AM

बकुलाही का मुद्दा सिर्फ प्यासे समाज अथवा बकुलाही के भगीरथ समाज शेखर का अकेला नहीं रहा बल्कि अब यह मुद्दा अर्थात बकुलाही का पुनरोद्धार राज और समाज की साझा ज़िम्मेदारी बन गया है। जिसे युद्ध स्तर पर पूरा करने का प्रयास ‘राज और समाज’ दोनों कर रहे है। ‘राज और समाज’ के साझा प्रयास एवं साझी संस्कृति का यह उदाहरण प्रदेश का एक नायाब उदाहरण बन चुका है। बकुलाही नदी की धारा को 25 वर्ष पहले कुछ निहित स्वार्थों की खातिर बीच से ‘लूप कटिंग’ कर तकरीबन 18 किमी. छोटा कर दिया गया था। इस कृत्य के बाद 18 किमी. के इर्द-गिर्द बसे करीब 25 खुशहाल गाँवों से उनकी हरियाली रूठती चली गई। जल स्तर नीचे गिरता चला गया।

प्रतापगढ़ के दक्षिणांचल में ज्वालामुखी की तरह सुलग रहे बकुलाही के मुद्दे को लगता है एक राह मिल गई है। पानी के प्यासे समाज के एक लंबे संघर्ष के बाद प्यास बुझाने की उम्मीद जाग गई है। बकुलाही पुनरोद्धार अभियान के बैनर तले जो जनांदोलन चल रहा था, उसे उसका अभीष्ट नजर आने लगा है। समाज शेखर की अगुवाई में अपनी नदी, अपने पानी के लिए ‘प्यासा समाज’ ने जागृति का जो शंखनाद किया उससे ‘राज’ की तन्द्रा टूट गई और समाज के इस महायज्ञ में आहुति डालने के लिए ‘राज’ आगे बढ़कर ‘समाज’ के बगल खड़ा हो गया।
बांध से पानी छोड़ने का सूचना तंत्र बनाओ
Posted on 29 Aug, 2012 01:56 PM भारत के तराई इलाकों में नेपाल नदियों में अचानक पानी छोड़ कर कभी भी बाढ़ ला देता है। भारत के सरकारी तंत्र की ओर से आश्वासन दिया जाता है कि उससे बात करके समस्या का स्थायी समाधान निकाला जायेगा। ऐसे में नेपाली अधिकारी यह कहकर जले पर नमक छिड़कते हैं कि वे तो पानी छोड़ने से पहले भारत के संबंधित अधिकारियों को सूचित करने का अपना फर्ज निभाते ही हैं। यह हर साल के मानसून का खेल हैं। झूठे आश्वासन देने का यह सरकारी ड्रामा हर साल का है। इस बार बहराइच के बाढ़पीड़ितों के सब्र का बांध टूट गया और वे आरपार के संघर्ष पर उतर आये। पर सरकारें ऐसी समस्याओं पर कोई स्थाई समाधान लाने की बजाय लोगों के दमन पर उतारू हो जाती है बता रहे हैं कृष्ण प्रताप सिंह।

28 अगस्त 2012। यों तो कई अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश भी सूखे का कहर झेल रहा है, लेकिन उसके नेपाल सीमा के आसपास के जिले बाढ़ की विभीषिका से भी दो-चार हैं। बहराइच, श्रवस्ती, बस्ती, बाराबंकी, गोंडा व फैजाबाद वगैरह में घाघरा व राप्ती नदियों में नेपाल से बहकर आये पानी ने लोगों का जीवन नर्क बना रखा है। अगर साफ कहें तो यह बाढ़ ‘आयातित’ है। शायद ही कोई साल ऐसा गुजरता हो जब ऐसा न होता हो। कई बार इसका खामियाजा उत्तर प्रदेश के पड़ोसी बिहार के भी एक बड़े हिस्से को चुकाना पड़ता है और पीड़ितों को संभलने तक का मौका नहीं मिलता। उन्हें पता तो नहीं होता कि कब नेपाल में पानी बरसेगा, उनके सिर पर ‘ओरौनी’ चूने लगेगी और नदियों को काबू करने के लिए बनाये गये तटबंधों को बेकार कर देगी।

कब तक सहेंगे हम मां गंगा की अनदेखी?
Posted on 13 Mar, 2012 04:16 PM

स्वामी ज्ञानस्वरूप के जल त्याग को व्यापक समर्थन की अपील


वाराणसी के कबीरचौरा तपस्या स्थली (अस्पताल) में स्वामी ज्ञानस्वरूप से मिलने पहुंचे काशी के प्रमुख जनवाराणसी के कबीरचौरा तपस्या स्थली (अस्पताल) में स्वामी ज्ञानस्वरूप से मिलने पहुंचे काशी के प्रमुख जनमित्रों! क्या किसी की मृत्यु पर शोक जताने की रस्म अदायगी मात्र से हमारा दायित्व पूरा हो जाता है? गंगा के लिए प्राण देने वाले युवा संत स्व. स्वामी निगमानंद उनके बलिदान पर शोक जताने वालों की बाढ़ सी आ गई थी। समाचार पत्रों ने संपादकीय लिखे। चैनलों ने विशेष रिपोर्ट दिखाई। स्वयंसेवी जगत ने भी बाद में बहुत हाय-तौबा मचाई। गंगा एक्सप्रेसवे भूमि अधिग्रहण के विरोध में रायबरेली और प्रतापगढ़ में मौतें हुईं।

swami gyanswaroop sanand
प्रतापगढ़ में सई संवाद – दो
Posted on 24 Nov, 2011 02:59 PM

कुण्डों, बीहड़ों और घुमावों वाली सई नदी की संवाद-यात्रा के दौरान सई के विभिन्न पहलुओं से परिचय

sai river
प्रतापगढ़ में सई संवाद-एक
Posted on 24 Nov, 2011 12:20 PM

कुण्डों, बीहड़ों और घुमावों वाली सई नदी की संवाद-यात्रा के दौरान सई के विभिन्न पहलुओं से परिचय

Sai river
पक्षियों के संरक्षण का जीवंत उदाहरण: ग्राम सरेली
Posted on 24 Nov, 2011 10:48 AM

एक मनुष्य के पूरे शरीर की तरह यदि शरीर का एक अंग नष्ट हो जाये तो उससे सारा शरीर बिना प्रभावित हुये नहीं रह सकता। इसी प्रकार इस प्रकृति के सारे तत्व एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और यदि कोई एक तत्व प्रभावित होता है तो इससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। अतः आकाश की सुन्दरता को पक्षीविहीन होने से जिस प्रकार यह ग्रामीण सतत् प्रयासरत् हैं, यह अपने आप एक सराहनीय प्रयास है और इससे हमें सबक लेना चाहिये।

उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में ब्रिटिश हुकूमत के एक अफसर को लहूलुहान कर देने से यह गाँव चर्चा में आया मसला था। एक खूबसूरत पक्षी प्रजाति को बचाने का, जो सदियों से इस गाँव में रहता आया। बताते हैं कि ग्रामीण ये लड़ाई भी जीते थे, कोर्ट मौके पर आयी और ग्रामीणों के पक्षियों पर हक जताने का सबूत मांगा, तो इन परिन्दों ने भी अपने ताल्लुक साबित करने में देर नहीं की, इस गाँव के बुजुर्गों की जुबानी कि उनके पुरखों की एक ही आवाज पर सैकड़ों चिड़ियां उड़ कर उनके बुजुर्गों के आस-पास आ गयी, मुकदमा खारिज कर दिया गया। गाँव वालों के घरों के आस-पास लगे वृक्षों पर ये पक्षी रहते हैं और ये ग्रामीण उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं,

नीर फाउंडेशन ने मनाया वन महोत्सव
Posted on 05 Aug, 2011 08:03 PM वर्ष 2011 के वन महोत्सव (1-7 जुलाई) में नीर फाउंडेशन ने वन विभाग के साथ मिलकर वृक्षारोपण का निर्णय लिया। संस्था द्वारा तय किया गया कि विभाग के माध्यम से इस बार विभिन्न स्थानों पर करीब 500 पेड़ लगाए जाएंगे। इसके लिए तीन स्थानों का भी चयन किया गया। संस्था द्वारा इस अभियान को वर्ल्ड अर्थ नेटवर्क से भी जोड़ दिया गया, जिससे कि वर्ष 2011 का यह वन महोत्सव एक अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधि में भी शामिल हो गया। ग
नीर फाउंडेशन का मुखपत्र ‘पर्यावरण संदेश’
Posted on 05 Aug, 2011 07:36 PM नीर फाउंडेशन द्वारा द्वारा पिछले कुछ समय से यह महसूस किया जा रहा था कि पर्यावरण से जुड़े स्थानीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे आम समाज तक नहीं पहुंच पा रहे हैं और न ही आम जन की पर्यावरण प्रेम की पुकार नीति-निर्माताओं व उसके कर्ता-धर्ताओं तक पहुंच पा रही है। ऐसे में हिन्दी भाषी त्रैमासिक मुखपत्र ‘पर्यावरण संदेश’ के माध्यम से प्रयास होगा कि हम पर्यावरण संबंधी नई जानकारियां समाज तक पहुंचा सकें।
नीर फाउंडेशन को वाटर चैम्पियन अवार्ड
Posted on 09 Apr, 2011 02:57 PM नीर फाउंडेशन को वर्ष 2010 के वॉटर चैम्पियन अवार्ड के लिए पुनः चुना गया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 का भी वाटर चैम्पियन अवार्ड संस्था को मिल चुका है। वर्ष 2010 के लिए विश्व के अलग-अलग देशों में पानी बचाने की अलख जगाने वाले चुनिंदा 12 उम्मीदवारों को वाटर चैम्पियन अवार्ड के लिए चुना गया है। इसमें विश्व के सभी 6 द्वीपों में से दो-दो उम्मीदवारों का चयन किया गया है। एशिया में भारत से नीर फाउंडेशन और द
पांव फिर धोने लगी पांवधोई
Posted on 05 Apr, 2011 10:00 AM

• पांव धोई नदी की सफाई की शुरुआत सात हजार ट्रक कचरा निकाल कर की गई।

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