उत्तर प्रदेश

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कुंभ निवेदन
Posted on 15 Jan, 2013 02:36 PM

ए नये भारत के दिन बता!
ए नदिया जी के कुंभ बता!
उजरे-कारे सब मन बता!!
क्या गंगदीप जलाना याद तुम्हें
या कुंभ जगाना भूल गये ?
या भूल गये कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं,
गंगा यूं ही है महान नहीं।
नदी सभ्यतायें तो कई जनी,
पर संस्कृति गंग ही परवान चढ़ी।
“नदियों में गंगधार हूं मैं’’
क्या श्रीकृष्ण वाक्य तुम भूल गये?

kumbh request
पांच नदियों का संगम फिर भी उपेक्षित होने का गम
Posted on 12 Jan, 2013 04:45 PM तकरीबन दो सौ किमी के दायरे में फैला खतरनाक बीहड़ एवं उसमें पनपने व
कुंभ से अमृत छलकाने की तैयारी
Posted on 12 Jan, 2013 10:37 AM

इलाहाबाद में संगम पर आस्था का सैलाब उमड़ने को तैयार है। सरकार भी जी-जान से तैयारियों में जुटी है। दंडी स्वामियों के साधना-स्थल पर कार्य गतिशील है। अखाड़ों के विशालकाय प्रवेश-द्वार वाले बैनर टंग चुके हैं। बांस की सीमा-रेखा बनाकर, टिन से घेर कर तंबुओं की परिधि बनाने में संन्यासी जुटे दिखने लगे हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा ईशान कोण में फहरा रही हैं। कई प्रख्यात धर्माचार्यों के पंडाल और प्रवेश-द्वार चकाचौंध पैदा कर रहे हैं। लैपटॉप और मोबाइल लिए साधु अपने निर्माण कार्य की निगरानी करते तथा परंपरा और आधुनिकता की संस्कृति में रचे-बसे दिख रहे हैं। सारा वातावरण किसी विशाल यज्ञ की तैयारियों में जुटा जान पड़ता है।

भारतीय जनमानस की अंतश्चेतना में आधुनिकता के मोहपाश के बावजूद धर्म और अध्यात्म के प्रति आस्था की जड़ें कितनी मजबूत हैं, इसका साक्षात्कार रेत पर बसे आस्था के शहर से गुजरते हुए आसानी से हो सकता है। कुंभ के लिए बसाए गए इस शहर में-
‘चंवर जमुन अरु गंग तरंगा।
देखि होहिं दुख दारिद भंगा’।।


की पवित्र भावना से लोक-परलोक सुधारने के लिए जुटे श्रद्धालुओं, संतों-महात्माओं, नागाओं और धर्मभीरुओं की आस्थाएं न डगमगाएं इसलिए सरकार ने भी खासी मेहनत-मशक्कत कर रखी है। लंबी तैयारी है। लेकिन स्नान से पहले इन तैयारियों की परीक्षा संभव नहीं है।
हिंडन के हितैषी
Posted on 09 Jan, 2013 03:02 PM

किसी को व्यथित करे न करे, हिंडन पर होते अत्याचार ने मोहम्मदपुर धूमी के जयपाल को बेहद व्यथित किया। उसकी सारी रात आंखों में कटी। सुबह होते ही उसकी बेचैनी कागज पर उतर आई:

हम इसकी रेती में खेले। इस पर लगते देखे मेले।
इसने बहुत आक्रमण झेले। कहां तक इसकी व्यथा सुनायें।।

बचपन में हम भी नहाते थे। मेलों में साधु आते थे।

hindon river walk
हिंडन के हत्यारे
Posted on 09 Jan, 2013 02:24 PM

आज हम दोष चाहें किसी को दें, शिवनन्दी का प्रतिरूप बने हरनन्दी का पितृस्वरूप तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन इसका नाम हिंडन पड़ा। सिर्फ पितृस्वरूप मरा हो, इतना नहीं... हिंडन ने अब खुद विषधर का रूप धारण कर लिया है। जैसा कभी यमुना ने कालियादेह का रूप धरा था। हिंडन का यह रूप हमें जीवन देने वाला न होकर जीवन लेने वाला हो गया। हमारी बेवकूफी देखिए!

save hindon
हिंडन के संगी
Posted on 09 Jan, 2013 12:55 PM

हर बड़ी नदी की तरह हिंडन की देह भी अकेली नहीं है। हिंडन के उद्गम स्रोतों में बारिश के बाद कदाचित ही पानी रहता है, बावजूद इसके हिंडन बरसाती नदी कभी नहीं रही। हिंडन बारहमासी है। जाहिर है कि कई संगी-साथी मिलकर हिंडन की संपूर्ण देह को बनाते हैं: 41 किमी.

make hindon pollution free walk
हिंडन को जानें
Posted on 09 Jan, 2013 11:11 AM

हिंडन की देह

hindon river map
कुंभ में होता है आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार
Posted on 08 Jan, 2013 03:07 PM विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां कुंभ और सिंहस्थ जैसे महापर्व मानए जाते हैं। देश के चार तीर्थ स्थलों उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग के तट पर ये महापर्व मनाए जाते हैं। प्रयाग में 14 जनवरी से कुंभ शुरू होगा।
मण्डलायुक्त के साथ जिला प्रशासन ने किया काली नदी का निरीक्षण
Posted on 03 Jan, 2013 10:59 AM संस्था ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से दिए नदी सुधार के सुझाव ,काली नदी सुधार हेतु होगा कमेटी का गठन तथा तैयार होगा विजन डॉक्यूमेंट।
गंगा संसद का आयोजन
Posted on 02 Jan, 2013 10:35 AM तरुण भारत संघ, जल बिरादरी सहित कई संगठन गंगा संसद का आयोजन कर रहे हैं। यह आयोजन इस बार के इलाहाबाद महाकुंभ के दौरान 21-23 जनवरी के बीच होगा।

स्थान : इलाहाबाद
तिथि : 21-23 जनवरी 2013

आप जानते हैं, नदियों की पवित्रता और समाज की संस्कृति के संरक्षण व प्रबंधन और पुनर्जीवन हेतु राज, समाज और संत मिलकर कुंभ आयोजित करते थे। कुंभ सिर्फ स्नान और उत्सव नहीं था बल्कि गहन विचारों का गहरा मंथन और चिंतन था। समुद्र मंथन जैसा गहन विचारों का निचोड़ निकालकर समाज को सदैव सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ाने की कोशिश होती थी। कुंभ की कोशिश कुरीति और सुरीति को पहचानने तथा गंदगी और सफाई को अलग-अलग रखने को ही समुद्र के खारे जल में से अमृत का कलश निकालना हमारे विचार मंथन का सार है। इसी का अब रूप विकृत होता जा रहा है।
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