तुंगभद्रा

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वेदों की धात्री तुंगभद्रा
Posted on 22 Oct, 2010 01:30 PM सभी नदी-भक्तों ने स्वीकार किया है कि गंगा का स्नान और तुंगा का पान मनुष्य को मोक्ष के रास्ते ले जाता है। मोटर की यात्रा यदि न होती तो तुंगभद्रा को मैं अनेक स्थानों पर अनेक तरह से देख लेता। तुंगभद्रा एक महान संस्कृति की प्रतिनिधि है। आज भी वेदपाठी लोगों में तुंगभद्रा के किनारे बसे हुए ब्राह्मणों के उच्चारण आदर्श और प्रमाणभूत माने जाते हैं।जलमग्न पृथ्वी को अपने शूलदंत से बाहर निकालने वाले वराह भगवान ने जिस पर्वत पर अपनी थकान दूर करने के लिए आराम किया, उस पर्वत का नाम वराह पर्वत ही हो सकता है। भगवान आराम करते थे तब उनके दोनों दंतों से पानी टपकने लगा और उसकी धाराएं पैदा हुईं। बांये दंत की धाराएं हुई तुंगा नदी और दाहिने दंत से निकली भद्रा नदी। आज इस उद्गम स्थान को कहते हैं। गंगामूल और वराह पर्वत को कहते हैं बाबाबुदान। बाबाबुदान शायद वराह-पर्वत नहीं है, लेकिन उसका पड़ोसी है। तुंगा के किनारे शंकराचार्य का शृंगेरी मठ है। मैंने तुंगा के दर्शन किये थे। तीर्थहल्ली में। (कन्नड़ भाषा में हल्ली के माने हैं ग्राम।) तीर्थहल्ली में मैं शायद एक घंटे जितना ही ठहरा था। लेकिन वहां की नदी के पात्र की शोभा देखकर खुश हुआ था।
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