सेंट्रल दिल्ली जिला

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बावड़ियाँ: प्राचीन भारत के भूले-बिसरे एवं विश्वसनीय जल स्रोत (भाग 2)
प्राचीन भारतवर्ष में जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाता था। विभिन्न जल स्रोतों के संरक्षण और जल संरचनाओं को लगभग सभी पूर्व के शासकों ने अपनी प्राथमिकता पर रखा था। जन कल्याण के कार्यों में बावड़ियों, कुओं, तालाबों आदि का निर्माण सर्वोपरि माना जाता था। इस लेख में भारत की कुछ प्रमुख बावड़ियों का उल्लेख किया गया है। इनके अलावा बहुत सारी बावड़ियाँ हैं जो लगभग हर छोटे-बड़े शहरों में देखने को मिल सकती हैं। इस लेख में उल्लेखित हर एक बावड़ी का अपना एक इतिहास है, एक विशिष्ट वास्तुकला है और हर एक का अपना एक विशेष ध्येय है। इनमें से कई तो मध्यकालीन युग के दौरान बनाई गई थी, जो आज भी स्थानीय लोगों की जल की मूलभूत आवश्यकता को पूरा कर रही हैं। किन्तु इनमें से अनेक बावड़ियां स्थानीय लोगों एवं सरकारी उपेक्षा का शिकार हो सूख गई हैं और जर्जर अवस्था में पहुंच गई हैं। Posted on 15 Jun, 2024 02:23 AM

अग्रसेन की बावली

अग्रसेन की बावली (जिसे उग्रसेन की बावड़ी भी कहा जाता है), प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक है। लगगभग 60 मीटर लंबी और 15 मीटर चौड़ी यह ऐतिहासिक बावड़ी नई दिल्ली में कनॉट प्लेस, जंतर मंतर के पास, हैली रोड़ पर स्थित है। यह 108 सीढ़ी या पैड़ी वाली बाबड़ी तीन मंजिला इमारत के समान ऊंची

चांद बावड़ी, साभार - Pixabay
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