महोबा जिला

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तालाब से खुशहाल हुआ किसान
Posted on 20 May, 2013 02:54 PM सन् 2005 में महोबा में आया सूखा बृजपाल सिंह के लिए एक नया संकट का दौर लेकर आया। उनके कुओं में पानी सूख गया। पीने के पानी की किल्लत इतनी भयावह हो गई कि उन्हें अपनी 6-9 लीटर दूध देने वाली भैसें भी औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ी और वे उस साल कोई फसल भी ले नहीं सके। उनके खेतों के बीच से मिट्टी कटाव की वजह से बरसाती नाली बनने लगी थी। भूजल की अनुपलब्धता, बरसाती नाली से मिट्टी का कटाव एवं ज्यादा पानी आना; ये कुछ ऐसे कारण थे, जिससे दोनों फसल ले पाना संभव नहीं था। बृजपाल सिंह पुत्र श्री रामसनेही सिंह ग्राम बरबई,कबरई महोबा के एक किसान हैं। लगभग पचास की उम्र पार कर चुके बृजपाल सिंह और उनके परिवार के पास 34.6 एकड़ की खेती है। बृजपाल सिंह के गांव बरबई में कोई कैनाल (नहर) नहीं है। भूजल की उपलब्धता काफी नीचे है। बृजपाल सिंह ने अपने खेत को सिंचित करने के लिए डीप बोरवेल और बोरवेल का सहारा लेने की कोशिश की। अपने खेत के अलग-अलग हिस्सों में तीन बोरवेल लगभग 200 फिट के करवाए लेकिन तीनों असफल रहे। उनमें पानी नहीं उपलब्ध हो सका चौथा बोरवेल उन्होंने 680 फिट गहराई तक करवाया,उन्हें उम्मीद थी कि इतनी गहराई तक तो पानी मिल ही जायेगा पर उनकी उम्मीद पर पानी फिर गया और उन्हें पानी नहीं मिला।
बुंदेलखण्ड में मुश्किलों का नया दौर
Posted on 21 Oct, 2011 12:59 PM

कटान, खदान और जमीन हड़पो अभियान

talab
बेहाल बुंदेले बदहाल बुंदेलखंड - 2
Posted on 07 Aug, 2010 02:11 PM
अपनी वीरता और जुझारूपन के लिए प्रसिद्ध बुंदेलखंड में कई सालों के सूखे, इसके चलते पैदा कृषि संकट और इनसे निपटने की योजनाओं में भ्रष्टाचार ने पलायन और आत्महत्याओं की एक अंतहीन श्रृंखला को जन्म दे डाला है। तसवीरें और रिपोर्ट रेयाज उल हक
बेहाल बुंदेले बदहाल बुंदेलखंड - 1
Posted on 07 Aug, 2010 01:34 PM
अपनी वीरता और जुझारूपन के लिए प्रसिद्ध बुंदेलखंड में कई सालों के सूखे, इसके चलते पैदा कृषि संकट और इनसे निपटने की योजनाओं में भ्रष्टाचार ने पलायन और आत्महत्याओं की एक अंतहीन श्रृंखला को जन्म दे डाला है। तसवीरें और रिपोर्ट रेयाज उल हक
भीषण जल संकट से जूझ रहा है बुंदेलखंड
Posted on 23 Jun, 2010 09:48 AM महोबा, 22 जून। भूगर्भ से ज्यादा मात्रा में पानी का दोहन होने के कारण बुंदेलखंड के तमाम इलाके ग्रे श्रेणी में आने से पीने के पानी के लिए लोगों में मारामारी मची है। कई जनपदों के क्षेत्र डार्क श्रेणी में जाने से लोग परेशान हैं। राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन व भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की चेतावनी के बावजूद पूरे बुंदेलखंड में सरकार जल संकट से बचाने की ठोस योजना तैयार नहींकर पाई। नीतियों की अनदेखी
बुंदेलखंड में मनरेगा
Posted on 11 Apr, 2010 09:57 AM
बुंदेलखंड और विकास या यों कहें कि बुंदेलखंड में विकास, दोनों ही बातें अलग-अलग ध्रुवों पर नजर आती हैं। पिछली यूपीए सरकार में शुरू किए गए राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (अब मनरेगा) ने देश के हर हिस्से में उन वंचितों की रोजी-रोटी का इंतजाम कर दिया, जो पीढ़ी दर पीढ़ी जमींदारों द्वारा तय मजदूरी पर काम करने और शोषित होने को विवश थे। मनरेगा ने देश के अलग-अलग इलाकों में नई-नई बुलंदियों को छुआ। और इ
केन का दर्द
Posted on 24 Feb, 2010 02:51 PM वर्तमान के बुन्देलखंड पर गौर करें तो अकाल से असमय मौतें, आत्महत्यायें, भुखमरी और कर्ज की यात्रा में सुरताल करते हताश किसानों का चित्र उभर कर आता है। शहरों का गंदा पानी, शहरों के कचरे से पटते तालाब, 75 प्रतिशत तालाबों पर जारी अतिक्रमण, खुले में शौच निपटान और बजबजाती नालियों से बुन्देलखंड के शहरों का एक और चित्र बनता है। बांदा जिले की एक मात्र जलधारा केन जो कि उत्तर एवं मध्य विन्ध्य क्षेत्र बुन्देलख
बुंदेलखंड में बहुरेगी तालाबों की किस्मत
Posted on 16 Jan, 2010 05:06 PM

नई दिल्ली ।। केंद्र सरकार सूखे से बेहाल बुंदेलखंड में जल संचय के प्रचलित साधनों के पुनरोद्धार के लिए मदद देने को सहमत हो गई है। केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने बताया कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 21 जिलों के तालाबों, झीलों, कुओं, बावडि़यों आदि के रखरखाव और उन्हें वापस जल संचय के योग्य बनाने के लिए केंद्र सरकार की सहमति मिल गई है। बुंदेलखंड के लिए विशेष आर-आर-आर (रिपे

बुंदेलखंड : पैकेज नहीं, नई सोच चाहिए
Posted on 18 Oct, 2009 06:10 PM यही विडंबना है कि राजनेता प्रकृति की इस नियति को नजरअंदाज करते हैं कि बुंदेलख
Bundelkhand
महोबा की नदियों को भगीरथ का इंतजार
Posted on 13 Jul, 2009 12:19 PM

महोबा। कभी जिले की भाग्य रेखा बनकर बहने वाली छह नदियां अपने अमृतमयी जल से लाखों लोगों की प्यास बुझाने के साथ ही लाखों एकड़ कृषि भूमि और वृहद वन क्षेत्र सिंचित करती थीं। लेकिन आज वही नदियां अपना अस्तित्व बचाने को कराह रही हैं। महोबा के लोगों को जीवन देने वालीं इन नदियों को अब किसी भगीरथ की तलाश है।
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