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जम्मू और कश्मीर
प्रवासी पक्षियों के ठिकानों पर संकट के बादल
Posted on 24 Feb, 2014 03:49 PMघराना वेटलैंड को विकसित करने के 200 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत है। अगर विभाग ऐसा करता है तो किसानों स
शौचालय की सुविधा से वंचित गांव
Posted on 01 Nov, 2013 03:13 PMगांव में शौचालय की सुविधा उपलब्ध न होने पर गांव वाले अपने घर किसी अतिथि को बुलाने से भी कतराते
बदल रहा है लद्दाख का पर्यावरण
Posted on 01 Jun, 2012 11:38 AMदेश के चुनिंदा पर्यटन स्थलों में लद्दाख का एक अलग ही स्थान है। दूसरे पर्यटन स्थलों पर लोग जहां केवल प्रकृति की अनुपम सुंदरता के दर्शन करते हैं वहीं लद्दाख में उन्हें प्रकृति के साथ-साथ इंसानी जीवनशैली भी आकर्षित करती है। लद्दाख अपनी अद्भुत संस्कृति, स्वर्णिम इतिहास और शांति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। दुनिया भर से लाखों की संख्या में पर्यटक खूबसूरत मठों, स्तूपों और एतिहासिक धरोहरों को देखनचिशूल के आसपास
Posted on 21 Feb, 2012 12:42 PMयूरा की देखभाल एवं पानी के वितरण की भी गांवों में परंपरा से ही प्रबंध है। इस कार्य में बारी लगाई जाती है। इसे छु
रंग-बिरंगे पहाड़ों के बीच हरी-भरी घाटियां
Posted on 15 Feb, 2012 05:45 PMसुरू नदी फिर एक तिकोने फैले हुए पाट में पहुंचती है। यहां भी हरियाली बनी है। इस गांव को पानीखर के नाम से पुकारा ज
प्रदूषित हो रहा है कश्मीर का पर्यावरण
Posted on 19 Dec, 2011 05:21 PMआज आलम यह है कि इन झरनों के पानी का उपयोग करने वालों को अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और
पानी रे पानी तू हर जगह, लेकिन पीने को एक बूंद नहीं
Posted on 02 Nov, 2011 10:01 AMहम स्वंय के द्वारा की गई गलतियों को महसूस करें और दूसरों को इसके प्रति जागरूक करने की कोशिश करें तथा उन्हें प्रोत्साहित करें। हमारे बीच अपने पर्यावरण को बचाने वाला कोई भी न हो उससे बेहतर है कि कम से कम कोई एक व्यक्ति तो ऐसा हो जो इसके बारे में बात करे। इसके लिए काम करे। आधुनिक बनने के लिए आवश्यक नहीं है कि आप अपने जीवन का पारंपरिक तरीका भूल जाएं। सही अर्थों में एक सफल और विकसित समाज वो है जो इन दोनों के बीच एक संतुलन बनाए रखते हुए तरक्की करे।
लेह की सड़कों पर चलते हुए जैसे-जैसे मैं पुरानी बातों को याद करती हूं, तो बचपन की यादें किसी फूल की तरह ताजा हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो जब मैं अपने साथियों के साथ इन हरे-भरे चारागाहों, सुंदर और भव्य इलाकों और हीरे जैसी साफ पहाड़ियों के दामन में शरारतें किया करती थी। गांव के किनारे बहती नदी के शोर में खेलना किसी अद्भुत स्वप्न की तरह प्रतित होता है। अचानक मुझे एहसास हुआ कि मैं जिन चीजों और वातावरण के बीच पली बढ़ी हूं, अब वे पहले जैसे नहीं रह गए हैं। मैदान छोटे हो गए हैं, शहर सजी हुई जरूर है परंतु उसकी सुदंरता खो गई है। बड़ी-बड़ी दुकानों और भीड़भाड़ के बीच संस्कृति को झलकाने वाली इमारतें सिकुड़ कर रह गई हैं। ऐसा लगता है जैसे पूरा वातावरण बदल गया है। यहां तक कि पानी भी वैसा साफ नहीं रहा जैसा मेरी यादों में सुरक्षित था।हिमालय की गोद में छिपा है सस्ती दवाओं का खजाना
Posted on 01 Oct, 2011 10:29 AMविश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की तीन चौथाई आबादी आधुनिक तकनीक से तैयार
झेलम घाटी में
Posted on 28 Sep, 2011 04:23 PM“गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधं कुरू।।”