हमीरपुर जिला (हिमाचल प्रदेश)

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सूखे के प्रभाव को अमरूद की बागवानी ने कम किया
Posted on 02 Jul, 2015 10:06 AM नदी किनारे की पडुई ज़मीन आमतौर पर खेती लायक नहीं होती। इसमें अमरूद की बागवानी लगाकर आजीविका के बेहतर स्रोत पाने की साथ ही पेड़-पौधों से पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिलती है।

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सामूहिक पशुशाला
Posted on 15 Apr, 2013 10:19 AM सूखे के दौरान पशुओं को खुला छोड़ देना बुंदेलखंड की आम प्रथा रही है जो विपरीत परिस्थितियों में थोड़ी बहुत खेती कर रहे लोगों के लिए काफी नुकसानप्रद हो रही है। ऐसे में सामूहिक पशुशाला का संचालन क्षेत्र के लिए एक बेहतर विकल्प बना और पशुओं का पलायन भी रुका।

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सूखे बुंदेलखंड में कम पानी में पैदा हो सकती हैः ज्वार
Posted on 08 Apr, 2013 04:36 PM परंपरागत फ़सलों में 3-4 महीनों में तैयार होने वाली ज्वार एक ऐसी फसल है, जिसे यदि एक बारिश भी न मिले तो भी उपज प्रभावित नहीं होती है।

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अरहर की खेती व पशुओं के लिए चारा
Posted on 08 Apr, 2013 04:07 PM (अरहर व बाजरा की मिश्रित खेती)

अरहर के साथ बाजरे की खेती दलहन के साथ जानवरों को चारा भी देती है। वैस तो अरहर की फसल लंबी अवधि की होती है, फिर भी बारिश की बाट जोहते किसान के लिए यह फसल लाभप्रद है।

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वर्षा कम होने से किसानों ने बदली फसल और की अरण्डी की खेती
Posted on 08 Apr, 2013 03:42 PM
बारिश की कमी से परेशान किसानों के समझ पलायन ही एक मात्र विकल्प था, परन्तु क्योंटरा में किसानों ने अरण्डी की खेती और उसके पत्तों पर रेशम कीट पालन का विकल्प तलाशा।

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सूखे में तिल की खेती
Posted on 08 Apr, 2013 03:38 PM
तिल हमीरपुर के किसानों की परंपरागत फसल है, जिसने न सिर्फ किसानों को सूखे से मुक्ति दिलाई, वरन् उनकी पौष्टिकता भी बढ़ाई है।

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सामुदायिक तालाब पुनः निर्माण एवं नाला सफाई हेतु जन प्रयास
Posted on 04 Apr, 2013 03:19 PM सूखा की परिस्थितियां उत्पन्न करने में प्रकृति ने तो भूमिका निभाई ही, मनुष्यों ने जल संसाधनों पर अवैध कब्ज़ा करके रही सही कसर पूरी की। इससे प्रभावित लघु सीमांत किसानों ने स्वयं के स्तर पर पहल व प्रयास करते हुए नालों तालाबों की सफाई व गहरीकरण किया।

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बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी जनपदों की संस्कृति में नदी-नाले, पहाड़, जंगल, उबड़-खाबड़, पथरीली एवं ऊंची-नीची ज़मीन देखने को मिलती है। यहां पर बसे सभी गाँवों में 3-4 तालाबों का होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। इन्हीं से लोगों की रोजी-रोटी चलती थी। विगत 15-20 वर्षों से यहां पर लगातार पेड़ों की कटाई, बालू खनन, पत्थर खनन एवं भूगर्भ जल संतुलन के अंधाधुंध उपयोग एवं तालाबों व छोटे-छोटे नालों के भर जाने की वजह से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना शुरू हुआ, जिससे सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं इस क्षेत्र में बढ़ने लगी।
परंपरागत जल संसाधनों का संरक्षण
Posted on 04 Apr, 2013 09:18 AM जब सूखा पड़ा तो लोगों को अपने परंपरागत जल संसाधनों की याद आई और उन्होंने अपने यहां बंद पड़े कुओं की सफाई का काम कर न सिर्फ तात्कालिक तौर पर जल हासिल किया वरन दूरगामी परिणाम के रूप में गांव का जल स्तर भी बढ़ा।

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बुंदेलखंड में चार-पांच वर्षों की अनियमित तथा कम होने वाली वर्षा के कारण अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न होने के पीछे सिर्फ प्राकृतिक कारक ही नहीं जिम्मेदार थे। मानवीय हस्तक्षेपों ने इस स्थिति को और भी भयावह बना दिया जब जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोतों को मानव बंद करना प्रारम्भ कर दिया। बुंदेलखंड सदैव से ही कम पानी वाला क्षेत्र रहा है, परंतु वहां पर जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोत जैसे कुएँ, तालाब आदि इतने अधिक थे कि पानी की कमी बहुत अधिक नहीं खलती थी। धीरे-धीरे विकासानुक्रम में लोगों ने इन कुओं, तालाबों को पाटना शुरू कर दिया। कहीं तो पाटने की यह क्रिया नियोजित थी और कहीं पर समुचित देख-रेख के अभाव में ये मूल स्रोत स्वयं ही पटने लगे और स्थिति की भयावहता बढ़ने लगी। जनपद हमीरपुर के विकास खंड सुमेरपुर के गांव इंगोहटा एवं मौदहा विकास खंड के ग्राम अरतरा, मकरांव, पाटनपूर में लोगों को इन्हीं स्थितियों का सामना करना पड़ा। तब लोगों की चेतना जगी कि यदि हम अपने परंपरागत काम को सुचारु रखते और समय-समय पर उनकी देख-भाल करते तो स्थिति इतनी न बिगड़ती और तब उन्होंने तालाबों, कुओं की खुदाई व गहराई का काम करना प्रारम्भ कर दिया।
बुंदेलखंड में सूखे का संकट
Posted on 26 Jul, 2012 04:20 PM जिस बुन्देलखंड में कुंओं की खुदाई के समय पानी की पहली बूंद के दिखते ही गंगा माई की जयकार गूंजने लगती थी, वहां अब अकाल की छाया मंडराने लगी है। सूखे खेतों में ऐसी मोटी और गहरी दरारें पड़ गई हैं, जैसे जन्म के बैरियों के दिलों में होती हैं। बुंदेलखंड में पानी का संकट की नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से कुछ सालों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट ही है उससे हालत पुरी तरह बिगड़ गई है। चंदेलकालीन सैकड़ों ताल
चंदेल व मुगलकालीन तालाबों को बचाने की नहीं हो रही कोशिश
Posted on 26 Jul, 2012 12:30 PM

बुंदेलखंड में परंपरागत जल स्रोत खत्म होने से बढ़ रहा है जल संकट

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