बुंदेलखंड में सूखे का संकट

जिस बुन्देलखंड में कुंओं की खुदाई के समय पानी की पहली बूंद के दिखते ही गंगा माई की जयकार गूंजने लगती थी, वहां अब अकाल की छाया मंडराने लगी है। सूखे खेतों में ऐसी मोटी और गहरी दरारें पड़ गई हैं, जैसे जन्म के बैरियों के दिलों में होती हैं। बुंदेलखंड में पानी का संकट की नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से कुछ सालों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट ही है उससे हालत पुरी तरह बिगड़ गई है। चंदेलकालीन सैकड़ों तालाब सूख चूके हैं। इन तालाबों के सूखने से सूखे का संकट मंडराने लगा है।

बुंदेलखंड से हर साल लाखों लोग पलायन कर रहे हैं जिसकी मुख्य वजह पानी का संकट और रोजगार का न होना है। अगर बुंदेलखंड का जल प्रबंधन दुरुस्त किया जा सके तो और रोजगार की संभावनाओं पर गौर किया जा सके तो बहुत कुछ हो सकता है। इस दिशा में कई विशेषज्ञ काम कर रहे हैं और वे मउरानीपुर में होने जा रहे विमर्श में इस पर रोशनी डालने वाले हैं।

सूखे और भूखे बुंदेलखंड पर अकाल की छाया मंडरा रही है। रविवार की सुबह तक हमीरपुर और जालौन में कुल 72 मिमी वर्षा रिकार्ड की गई जबकि पिछले साल इसी दौर में 311 मिमी वर्षा रिकार्ड की गई थी। झांसी और ललितपुर के इलाके में हालांकि बारिश कुछ ज्यादा हुई पर पिछले बार के मुकाबले आधी भी नहीं। हालत यह है कि खरीफ की फसल बर्बाद हो रही है। दलहन में अरहर बुरी तरह प्रभावित हुई तो उड़द, मूंग और तिल आदि की फसल कहीं दस फीसद बची है तो कहीं बीस फीसद। हफ्ता भर और बरसात नहीं हुई तो यह भी बर्बाद हो सकती है। सावन में पानी के इस संकट ने किसानों की चिंतित कर दिया है और पलायन भी बढ़ गया है।

पलायन की हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जालौन में मनरेगा का 38 करोड़ रुपया बचा हुआ है और काम के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। बुंदेलखंड के मौजूदा हालत पर राजनीतिक दलों से लेकर सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने चिंता जताई है। जन संघर्ष मोर्चा के अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, पानी का संकट तो समूचे प्रदेश में है पर इधर सोनभद्र, मिर्जापुर के अलावा बुंदेलखंड में काफी ज्यादा है। यह समस्या अवैध खनन और पानी के परंपरागत स्रोतों को बर्बाद करने से बढ़ी है। अब यह आपराधिक लापरवाही होगी अगर हफ्ते भर के भीतर बुंदेलखंड के ज्यादा प्रभावित इलाकों के किसानों को किसी भी तरह पानी नहीं मुहैय्या कराया गया। सरकार को बुंदेलखंड के बारे में युद्ध स्तर पर पहल करनी होगी। इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाने की जरूरत है।

बुंदेलखंड में पानी का संकट कोई नया नहीं है। पर जिस तरह पिछले कुछ साल में प्राकृतिक संसाधनों की लूट हुई है उससे हालत बुरी तरह बिगड़ गए हैं। आज चंदेलकालीन सैकड़ों तालाब सूखे पड़े हैं वरना किसान को इन्हीं तालाबों से मदद मिल जाती। उरई से सुनील शर्मा ने कहा, अगर हफ्ते भर और बरसात न हुई तो अकाल की नौबत आ जाएगी। खरीफ की फसल तो दस फीसद भी नहीं बची है ऐसे में किसान पलायन की मजबूर हो रहा है। इसी बीच 29 जुलाई को झांसी के पास मउरानीपुर में बुंदेलखंड के पुनर्निर्माण पर सामाजिक स्तर एक विमर्श आयोजित किया गया है जिसमें चंदेलकालीन तालाबों के जल प्रबंधन, पर्यटन और रोजगार के सवाल पर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता अपनी बात रखेंगे।

बुंदेलखंड को लेकर गैर सरकारी पहल होती रही है पर उन्हें कोई मदद नहीं मिलती। बुंदेलखंड में कुछ संस्थाओं ने जो पहल की है उससे इस अंचल के विकास का एक खाका तैयार करने में मदद मिल सकती है। मऊरानीपुर में आयोजित विमर्श के लिए प्रबंध में जुटी सुविज्ञा जैन ने कहा, उम्मीद है कि यह आयोजन बुंदेलखंड की मौजूदा विकट स्थितियों के समाधान की रूपरेखा बनाने में मदद देगा। बुंदेलखंड से हर साल लाखों लोग पलायन कर रहे हैं जिसकी मुख्य वजह पानी का संकट और रोजगार का न होना है। अगर बुंदेलखंड का जल प्रबंधन दुरुस्त किया जा सके तो और रोजगार की संभावनाओं पर गौर किया जा सके तो बहुत कुछ हो सकता है। इस दिशा में कई विशेषज्ञ काम कर रहे हैं और वे मउरानीपुर में होने जा रहे विमर्श में इस पर रोशनी डालने वाले हैं।

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