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चेर्नोबिल का दर्द
Posted on 22 Jul, 2011 12:42 PM

तेईस साल पहले 26 अप्रैल की सुबह (ठीक 01.24 बजे) दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा घटित हुआ। युक्रेन स्थित चेर्नोबिल पावर प्लांट का एक रिएक्टर फट गया। दो धमाकों ने रिएक्टर की छत को उड़ा दिया और उसके अंदर के रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर को बह निकले। बाहर की हवा ने टूटे रिएक्टर के अंदर पहुँच कार्बन मोनोऑक्साइड को ज्वलित कर दिया। इसके फलस्वरूप आग लग गयी जो नौ दिन तक धधकती रही। क्योंकि रिएक्टर के चारों ओर

गर्माते जल स्त्रोत
Posted on 21 Jul, 2011 01:54 PM

नासा की ताजा रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2060 तक धरती का औसत तापमान चार डिग्री बढ़ जाएगा, जिससे एक तरफ प्राकृतिक जलश्रोत गर्माने लगेंगे, वहीं लोगों का विस्थापन भी बढ़ेगा। पर्यावरण में आ रहे बदलावों से जूझने के लिए हर तरफ प्रयास हो रहे हैं। ऐसे ही कुछ प्रयासों से रूबरू पिछले दिनों अमरीकी वैज्ञानिकों द्वारा पहली बार चौंकाती रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि लगातार बढ़ता ताप धरती की अपेक्षा उसके जल श्रोतों को

हिरोशिमा अभी भी जल रहा है
Posted on 15 Jul, 2011 03:41 PM

महात्मा गांधी ने बहुत पहले साध्य के लिए साधन की पवित्रता का सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया था । अब

समुद्र तटीय क्षेत्रों का संरक्षण
Posted on 15 Jul, 2011 03:21 PM

यह बहुत जरूरी है कि जलवायु बदलाव व बढ़ती आपदाओं के दौर में समुद्र तटीय क्षेत्रों के पर्यावरण व

समुद्र का मरीन इको सिस्टम खतरे में
Posted on 15 Jul, 2011 12:53 PM

हिमालय के ग्लेशियर ही नहीं, बल्कि समुद्र की मरीन इकोलॉजी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यह खतरा समुद्री मालवाहक जहाजों के घिट्टी पानी (ब्लास्ट वाटर) से आ रहे जीवाणुओं से हो रहा है जो एक महाद्वीप का पानी लेकर दूसरे में डाल रहे हैं। पानी के जहाजों के इस घिट्टी पानी के कारण जापान के समुद्र में फैले फुकुशिमा रिएक्टरों के रेडियो एक्टिव तत्व दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में पहुंचने का खतरा भी कायम

कैसे बचेगी धरती
Posted on 15 Jul, 2011 12:12 PM

भोजन और जल की आवश्यकता तभी पूरी हो सकती है, जब प्रकृति में मौजूद खाद्य और पानी की सुरक्षा की जा

होशियार बनने की कोशिश में ही हम बेवकूफ बनते हैं
Posted on 14 Jul, 2011 02:10 PM

दुःख की बात तो यह है कि, अपनी निराधार उद्दंडता के चलते वे प्रकृति को अपनी इच्छानुसार झुकाने की

हिमालय के चरित्र के अनुरूप बनें योजनायें
Posted on 14 Jul, 2011 01:13 PM

अन्तर्राष्ट्रीय भूगोलवेत्ताओं के संघ के तत्वावधान में पर्वतों एवं सीमांत क्षेत्रों में वैश्वीकरण के स्थानीय एवं क्षेत्रीय प्रभाव विषय पर 1 से 9 मई 2011 के बीच भूगोल विभाग डी.एस.बी. परिसर कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के प्रो.

खाद्य और खेती
Posted on 13 Jul, 2011 12:48 PM प्राकृतिक खेती के विषय पर लिखी गई इस पुस्तक में प्राकृतिक आहार पर भी विचार करना आवश्यक है। यह इसलिए कि खाद्य और खेती एक ही शरीर के आगे और पीछे के दो हिस्से हैं। यह दिन जैसी साफ बात है कि, यदि प्राकृतिक खेती को नहीं अपनाया जाता तो जनता को प्राकृतिक खाने नहीं प्राप्त हो सकते लेकिन यदि यह तय नहीं किया जाता कि, प्राकृतिक खाने क्या हैं तो किसान उलझन में ही पड़े रहेंगे कि वे खेती किस चीज की करें।
आहारः मूल्यांकन
Posted on 12 Jul, 2011 12:35 PM इस दुनिया में आहार को मुख्यतः चार प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है।

1 वह लापरवाह भोजन जो सिर्फ लोगों की रोजमर्रा की इच्छाओं और जीभ को तृप्त करता है। यह आहार करते हुए लोग अपनी मानसिक चंचलता के चलते, कभी यहां तो कभी वहां तो कभी वहां खाते रहते हैं। इस भोजन को हम अकारण और असंयमी आहार कह सकते हैं।
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