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संयुक्त राष्ट्र का रियो+20 सम्मेलन क्या ‘पैराडाइम शिफ्ट’ के लिये याद किया जायेगा?
Posted on 28 Jun, 2012 12:58 PM

प्रतिनिधियों ने कहा कि धरती पर संसाधन सीमित हैं, इसलिये उपभोक्तावाद पर अंकुश लगाना होगा। उपभोक्तावाद ने पारिस्थितिकी पर ही असर नहीं डाला है बल्कि मानवाधिकारों पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पूंजीवादी व्यवस्था धरती के 80 फीसद संसाधनों को डकार जाती है। ऐसी व्यवस्था वाले देश स्वयं को ‘विकसित’ बताते हैं। धरती के लोगों को ग्रीन उपनिवेशवाद से बचाते हुये ग्रीन इकॉनमी अपने हिसाब से चलानी होगी।

दुनिया की पूरी आबादी की उम्मीद बना संयुक्त राष्ट्र का ऐतिहासिक रियो+20 पृथ्वी शिखर सम्मेलन उसे सुरक्षित, संरक्षित और खुशहाल भविष्य का ठोस भरोसा दिलाये बिना 22 जून को समाप्त हो गया। विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने ‘“द फ्यूचर वी वांट’ नामक दस्तावेज को कुछ देशों के ‘रिजरवेशन’ के बावजूद स्वीकार कर लिया। कुछ बिंदुओं को लेकर अमेरिका, कनाडा, निकारागुआ, बोलीविआ, इत्यादि ने ‘रिजरवेशन’ व्यक्त किये हैं। सिविल सोसाइटी तो इस दस्तावेज को पूरी तरह पहले ही नकार चुकी है। छोटी-छोटी पहाड़ियों, विशाल चट्टानों, बड़ी झीलों, लम्बी सुरंगों, लगूनों और जंगलों से भरे इस खूबसूरत शहर रियो द जेनेरो में अब बस कहानियां रह जायेंगी कि यहां 1992 और 2012 में धरती को बचाने के लिये विश्व के नेताओं ने सामूहिक स्क्रिप्ट लिखी थीं पर वे न तो धरती और न इस पर रहने वालों को बचाने के ईमानदार प्रयास कर पाये।
रियो+20 से ज्यादा प्रभावी है जनता का रियो+20
Posted on 28 Jun, 2012 12:26 PM

सदस्य देशों के शिखर सम्मेलन और जनता की भागीदारी वाले सम्मेलन में जमीन-आसमान का अंतर है। जनता के सम्मेलन में जहां

संयुक्त राष्ट्र रियो+20 पृथ्वी शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का मसौदा नाकाफी
Posted on 28 Jun, 2012 11:53 AM

रियो+20 शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का मसौदा बनाने के लिये जो समूह तय किये गये थे वे पूरी तरह से सफल नहीं रहे चूंक

थोड़ा सा आगे, पर आगे जाने की जरूरत!
Posted on 28 Jun, 2012 09:56 AM

आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पक्षों के आपसी रिश्तों को समझते हुये टिकाऊ विकास की अवधारणा की समझ भी जरूरी है और

पानी के अधिकार का आंदोलन
Posted on 27 Jun, 2012 03:51 PM पानी के अधिकार के लिए कैलाश गोदुका, गोपाल अग्रवाल ने ‘जल संगठन अभियान' की शुरुवात की। दिल्ली के एक संगठन ‘सेंटर फॉर सोशल जस्टिस एंड डेमोक्रेसी’ जलाधिकार अभियान का मूल संगठन है। जलाधिकार अभियान से पानी के क्षेत्र में काम कर रहे प्रख्यात लेखक श्री अनुपम मिश्र भी संरक्षक के नाते जुड़े हुए हैं। जलाधिकार अभियान के उद्देश्यों, मुद्दों और मांगो के बारे में बता रहे हैं मंगलेश कुमार।
राष्ट्रीय जल नीति मसौदा – 2012 : पानी से पैसा बनाने की कोशिश
Posted on 27 Jun, 2012 01:33 PM जल संसाधनों के संरक्षण के नाम पर समाज से मिलकियत छीन कर कंपनियों और बाजार को पानी की मिलकियत देने की तैयारी हो रही है। जल वितरण एवं रख-रखाव के नाम से ‘पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (PPP Model)’ के रूप में यह होगा। राष्ट्रीय जल नीति 2012 – मसौदा इस काम को कानूनी जामा पहनायेगा। लोकतंत्र में लोगों के हितों की अनदेखी और बाजारू ताकतों को बढ़ावा; नीति निर्माताओं द्वारा यह दोगलापन गंभीर चिंता पैदा करता ह
राष्ट्रीय जलनीति-2012 : जी का जंजाल
Posted on 27 Jun, 2012 12:57 PM भारत सरकार नई जल नीति ला रही है, पर इस बार की जल नीति जन अंकाक्षाओं के ठीक विपरीत है। जल अब एक आर्थिक वस्तु बन जायेगा इस जल नीति के आधार पर। नई जल नीति कहती है कि जल को आर्थिक वस्तु मानकर इसका मुल्य निर्धारण उससे अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर कर करना चाहिए। नई जल नीति कॉर्पोरेट हितों को पोषण करेगी बता रहे हैं भगवती प्रकाश।
सड़ता अन्न, भूखे जरूरतमंद
Posted on 27 Jun, 2012 11:51 AM सर्वोच्च न्यायालय की तीखी टिपण्णी के बावजूद भी हमारे कर्णधार अनाज को सड़ते देखकर चुप हैं। उनको 12 रुपये प्रति किलो के दर से खरीदा गया गेहूं सड़ाकर 6.20 रुपये किलो की दर से शराब कंपनियों को बेचना अच्छा लगता है। कहीं ऐसा तो नहीं समर्थन मूल्य और खाद्य सबसिडी का फायदा शराब माफियों को पहुंचाया जा रहा है। दुनिया में एक तरफ करोड़ों की संख्या में लोगों को अन्न नसीब नहीं है, तो वहीं अन्न सड़ा-गला देने ज
रियो का समापन : खानापूरी से ज्यादा कुछ नहीं
Posted on 26 Jun, 2012 04:30 PM जलवायु में हो रहे विनाशकारी बदलावों के मद्देनजर टिकाऊ वैश्विक विकास के लिए हरित कार्ययोजना तैयार करने के लिए ब्राजील के ‘रियो द जेनेरो’ शहर में दुनिया के सौ से भी ज्यादा देशों के तीन दिन तक सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन का कोई स्पष्ट संदेश है तो वह यह कि वायुमंडल में हो रहे विनाशकारी बदलाव से समूची पृथ्वी पर मंडरा रहे संकट के बावजूद खुदगर्ज इंसान आधुनिक विकास के अंधी दौड़ छोड़ने को राजी नहीं है
रियो के 20 साल बाद भी पृथ्वी को बचाने की चुनौती बाकी
Posted on 26 Jun, 2012 04:26 PM ब्राजील की राजधानी रियो में फिर से पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। सैकड़ों देशों के नेता ग्रीन इकॉनमी, स्थाई विकास और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों के साथ ही पृथ्वी पर बढ़ती पर्यावरणीय संकट से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करेंगे। संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में होने वाला यह चौथा पृथ्वी सम्मेलन है। पहले पृथ्वी सम्मेलन में तय किये गये मुद्दे अभी तक कोई तार्किक परिणति नहीं पा सके, फिर उन्हीं को आधार बनाकर
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