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नीर फाउंडेशन ने कारमेल कान्वेंट स्कूल में बच्चों को बनाया जल साक्षर
Posted on 28 Apr, 2012 01:03 PM नीर फाउंडेशन द्वारा नई दिल्ली स्थित कारमेल कान्वेंट स्कूल में बच्चों को जल साक्षर बनाने के उददेश्य से एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की। इसमें स्कूल के करीब 400 बच्चों ने भाग लिया।

कार्यशाला के प्रारम्भ में बच्चों को संस्था के समन्वयक विनय प्रधान ने जल संरक्षण का एक प्रजेंटेशन दिया जिसके माध्यम से पानी के महत्व को समझाया गया।
नई दिल्ली स्थित कारमेल कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों को पानी के बारे में बताते विनय प्रधान
गंगा चालीसा
Posted on 28 Apr, 2012 08:40 AM ।। दोहा ।।
जय जय जय जग पावनी,l जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी,l अनुपम तुंग तरंग ।।


जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी ।।
जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता ।।

जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी ।।
धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र छवि लाजे ।।
ग्रीन कोर्ट में मुकदमें
Posted on 27 Apr, 2012 03:36 PM

हमारे नदी, तालाबों, जंगल, पहाड़ों आदि पर हो रहे आधुनिक समाज का अत्याचार से बचने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण को स्थापित किया जा रहा है। इस राष्ट्रीय हरित अधिकरण के द्वारा पर्यावरण संबंधी और जैव विविधता सहित सात कानूनों के कार्यान्वयन से पर्यावरण संबंधित मामले भी सुने जा सकते हैं इसी राष्ट्रीय हरित अधिकरण के बार में बतातीं शिबानी घोष।

 

green environment
भूमाफिया की वजह से खत्म होते तालाब
Posted on 26 Apr, 2012 11:42 AM

अभी एक सदी पहले तक बुंदेलखंड के इन तालाबों की देखभाल का काम पारंपरिक रूप से ढीमर समाज के लोग करते थे। वे तालाब को साफ रखते, उसकी नहर, बांध, जल आवक को सहेजते - ऐवज में तालाब की मछली, सिंघाड़े और समाज से मिलने वाली दक्षिणा पर उनका हक होता। इसी तरह प्रत्येक इलाके में तालाबों को सहेजने का जिम्मा समाज के एक वर्ग ने उठा रखा था और उसकी रोजी-रोटी की व्यवस्था वही समाज करता था, जो तालाब के जल का इस्तेमाल करता था।

अब तो देश के 32 फीसदी हिस्से को पानी की किल्लत के लिए गर्मी के मौसम का इंतजार भी नहीं करना पड़ता है- बारहों महीने, तीसों दिन यहां जेठ ही रहता है। सरकार संसद में बता चुकी है कि देश की 11 फीसदी आबादी साफ पीने के पानी से महरूम है। दूसरी तरफ यदि कुछ दशक पहले पलट कर देखें तो आज पानी के लिए हाय-हाय कर रहे इलाके अपने स्थानीय स्रोतों की मदद से ही खेत और गले दोनों के लिए भरपूर पानी जुटाते थे। एक दौर आया कि अंधाधुंध नलकूप रोपे जाने लगे, जब तक संभलते तब तक भूगर्भ का कोटा साफ हो चुका था। समाज को एक बार फिर बीती बात बन चुके जल-स्रोतों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है - तालाब, कुंए, बावड़ी। लेकिन एक बार फिर पीढ़ियों का अंतर सामने खड़ा है, पारंपरिक तालाबों की देखभाल करने वाले लोग किसी और काम में लग गए और अब तालाब सहेजने की तकनीक नदारद हो गई है।
pond
सूखी यमुना की धार
Posted on 26 Apr, 2012 09:45 AM यमुना नदी इस बार समय से पहले ही सूख गई है। जुलाई महीने में पैदा होने वाला जलसंकट अप्रैल में ही उत्पन्न हो गया है। नदी की धार टूटने का सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव देश की राजधानी पर पड़ेगा। जहां पेयजल के लिए हाहाकार मच जाएगा। हरियाणा में भी भू-जल में गिरावट होगी। देश की राजधानी पेयजल के लिए सबसे ज्यादा निर्भर यमुना नदी पर है। नदी की धार सूख गई है। जिससे दिल्ली को पर्याप्त पानी नहीं मिल सकेगा। इसके साथ
जेनेटिक प्रदूषण और कपास
Posted on 25 Apr, 2012 03:16 PM बीटी कपास की खेती करने से लाखों किसान बर्बाद हो रहे हैं जहां वर्षा या पानी की कमी है वहां किसानों की हालत बहुत बुरा है इस बीटी कपास से एक खतरनाक तरह के कीड़े भी उत्पन्न हो रहे हैं जिनसे हमारे कृषि पर बहुत ही बुरा असर हो रहा है। बीटी कपास की व्याख्या कर रहे हैं भारत डोगरा
bt cotton
ग्रीन टॉयलेट प्रोजेक्ट पर काम
Posted on 24 Apr, 2012 03:52 PM नई दिल्ली। उत्तर रेलवे का दिल्ली मंडल ग्रीन टॉयलेट प्रोजेक्ट के तहत रेलगाड़ियों के शौचालय में कीटाणुओं से भरे बॉक्स लगाने जा रहा है। इन डिब्बों में यात्रियों के शौच जमा होंगे, जिससे रेल की पटरी गंदा नहीं होगी। इन बॉक्सों में भरे कीटाणु शौच को नष्ट करेंगे और पानी शोधित होकर नीचे गिर जाएगा। इसकी शुरुआत हजरत निजामुद्दीन से चलने वाली इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस से हो चुकी है। दिल्ली मंडल शीघ्र ही इसे सभी
रेलगाड़ियों में ग्रीन टॉयलेट
जीडी की प्रतिबद्धता पर न उठाये कोई सवाल
Posted on 24 Apr, 2012 01:10 PM

जीडी एक दृढ़निश्चयी इंसान हैं। वह परिणाम अथवा समर्थन जुट जाये, परिस्थितियां अनुकूल हो जायें की प्रतीक्षा करते हु

GD Agrawal
दिल्ली भूजल की चिंता
Posted on 24 Apr, 2012 09:11 AM

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार आज दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में स्थित कुल चार सौ छिहत्तर तालाब

परिवर्तन विकास नहीं होता
Posted on 23 Apr, 2012 04:53 PM

आज समाज जिस विकास के पीछे भाग रही है वह बस एक दिखावा मात्र है। उससे कितने नुकसान होने की आशंका उसका कोई अंदाजा नहीं है। जिस पदार्थ या भौतिक अवस्था में कोई विकास है ही नहीं, उस पर टिके परिवर्तन को विकास कहना सबसे बड़ा भ्रम है। पदार्थ या भौतिक वस्तुओं के एक रूप को नष्ट करके दूसरे में परिवर्तित करने पर ही आज का समस्त विकास टिका है। इसी विकास के भ्रम के बारे में व्याख्या करते पवन कुमार गुप्त।

development
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