दिल्ली भूजल की चिंता

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार आज दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में स्थित कुल चार सौ छिहत्तर तालाबों में से केवल दो सौ छह तालाबों का विकास करोड़ों रुपए खर्च करके दिल्ली सरकार के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग और डीएसआइडीसी ने किया है जिनमें से एक सौ सत्रह सूखे पड़े हैं और नवासी में जल (शायद अधिकतर में गंदा) भरा हुआ है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बहुचर्चित मामले में दिल्ली सरकार के संबद्ध विभागों को निर्देश दिया था कि वे राजधानी के गिरते हुए भूगर्भीय जल-स्तर के मद्देनजर यमुना को प्रदूषित होने से बचाने के लिए विभिन्न गांवों के तालाबों और बावड़ियों का संरक्षण करते हुए उनको विकसित भी करेंगे। विनोद कुमार जैन बनाम दिल्ली सरकार और अन्य- सीडब्ल्यूपी सं. 3502/2000 के मामले में दिए गए इस आदेश के नौ सूत्री दिशा-निर्देशों में मुख्य बात यह थी कि तालाबों का पुनरुद्धार करते हुए यह ध्यान रखा जाएगा कि उनमें गंदे नाले-नालियों और अन्य स्रोतों से निकले हुए प्रदूषित जल-मल को रोका जाएगा और यह सुनिश्चित भी किया जाएगा कि आसपास के क्षेत्रों के बरसाती पानी का अविरल प्रवाह उनमें बना रहे।

इसी क्रम में सन् 2006 से 2008 तक दिए गए न्यायालय के विभिन्न आदेशों के पालन के लिए समय-समय पर उठाए गए कदमों की जानकारी भी दिल्ली के मुख्य सचिव को माननीय उच्च न्यायालय को देनी थी। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार आज दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में स्थित कुल चार सौ छिहत्तर तालाबों में से केवल दो सौ छह तालाबों का विकास करोड़ों रुपए खर्च करके दिल्ली सरकार के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग और डीएसआइडीसी ने किया है जिनमें से एक सौ सत्रह सूखे पड़े हैं और नवासी में जल (शायद अधिकतर में गंदा) भरा हुआ है। लगभग एक सौ पचहत्तर तालाबों पर विकास कार्य न होने के लिए उन पर ‘भारी अतिक्रमण’ को मुख्य कारण बताया गया है। बाकी का स्वरूप योजनाधीन या निर्माणाधीन है।

आखिर तालाबों का यह कैसा संरक्षणकारी/पुनरुद्धारकारी विकास है जिस पर दिल्ली की भूखी ग्रामीण जनता के करोड़ों रुपए बर्बाद करने के बाद भी उनमें गंदे नाले-नालियों का मल-मूत्र युक्त जल भरा जा रहा है? दिल्ली के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग का मानना है कि अधिकतर मामलों में इस स्थिति के लिए दिल्ली नगर निगम जिम्मेवार है। दिल्ली जलबोर्ड ने भी एक सौ नवासी गांवों के तालाबों में गंदे जल को परिशोधित/ उपचारित करने के नाम पर करोड़ों रुपए फूंक डाले हैं। पर मैं माननीय उच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों के प्रकाश में करदाता होने के नाते यह पूछना चाहता हूं कि इन दो सौ छह तालाबों के तथाकथित विकास की योजना बनाते हुए इस महत्त्वपूर्ण बिंदु पर क्यों नहीं विचार किया गया और इस स्थिति से दिल्ली के मुख्य सचिव ने समय-समय पर माननीय उच्च न्यायालय को क्यों नहीं अवगत कराया?

संजय झील अब विलुप्ति के कगार परसंजय झील अब विलुप्ति के कगार परयह इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि इस दिन-दहाड़े होने वाली लूट में सभी शामिल हैं। हां, इस विषय पर अलग से मांगी गई जानकारी के परिप्रेक्ष्य में दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग ने अभी कुछ दिन पहले ताजा जानकारी दी है जिसके अनुसार ‘विकसित किए गए तालाबों में किसी प्रकार का गंदा पानी नहीं जा रहा है।’ लेकिन तथ्य इसके सर्वथा विपरीत बोलते हैं। यकीन न हो तो माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर के साथ संबद्ध विभागों के गैर-जिम्मेदार अधिकारी नमूने के तौर पर मेरे गांव किराड़ी और पास के गांव निठारी के तथाकथित संरक्षित और विकसित तालाबों का खुद जायजा ले लें और उसके बाद जो भी सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता पड़े, व्यापक जनहित में उठाने का कष्ट करें, ताकि उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना रोकी जा सके।

धर्मराज, गांव-किराड़ी, दिल्ली

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