दिल्ली

Term Path Alias

/regions/delhi

गंगा को देखकर दुख होता है
Posted on 19 Jul, 2012 10:20 AM गंगा गंदगी से ज्यादा आधुनिकता और परंपरा के पाखंड की शिकार हैं। कांग्रेस और भाजपा और उनसे जुड़े तमाम संगठन इसी का खेल खेल रहे हैं। गंगा को हर तरह से लूटने की कोशिश हो रही है। मोक्षदायिनी गंगा को कहीं बांध में बांधकर तो कहीं गंदे नाले का कचरा डालकर कचरा ढोने वाली मालगाड़ी बना रहे हैं। जब गंगा नदी राष्ट्रीय प्राधिकरण का गठन हुआ तो दावा किया गया था कि गंगा को टेम्स नदी की तरह साफ-सुथरा और सदानीरा ब
खोखले साबित होते गंगा रक्षा के वादे
Posted on 19 Jul, 2012 10:01 AM भारतीय परंपरा में गंगा को पृथ्वी की साक्षात देवी माना गया है। अंतिम समय में मां गंगा की गोद में समाकर ही मोक्ष मिलता है। चौदह साल तक एक पैर पर खड़ा होकर गंगा को धरती पर उतारने के लिए तपस्या करने वाले राजा भगीरथ ने कभी सपने में भी न सोचा होगा कि जिन मां गंगा के अवतरण के लिए उनकी कई पीढ़ियां भेंट चढ़ गईं उसकी इस धरा पर ऐसी दुर्दशा होगी। जहां गंगा अविरल बहती थी वहां कहीं-कहीं पानी नजर आता है। जहां
गंगा बहाव में ही मानव का अस्तित्व
Posted on 18 Jul, 2012 04:58 PM राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के गठन को तीन वर्ष हो गए हैं, लेकिन विगत तीन वर्षों में मूल-भूत विसंगतियां भी दूर नहीं की जा सकी हैं। यह स्थिति तब है, जब प्रधानमंत्री स्वयं इस प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं। प्राधिकरण के बैठक में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा गंगा पर बांध बनाने की जोर देना एक तरह से गंगा का मखौल उड़ाया जा रहा है। गंगा नदी के संबंध में आस्था पक्ष के आधार पर ही समझौता हुआ था, लेकि
गंगा : साधु-संतों से कुछ अपेक्षाएं भी हैं
Posted on 18 Jul, 2012 12:05 PM भारत की सबसे प्रमुख पहचान गंगा है। अगर गंगा को नहीं बचाया गया तो भारत देश का नाम कैसे बचेगा। जिस गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें आज गंगा को लुटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। गंगा पर हो रहे अत्याचार के बारे में बता रहे हैं रामबहादुर राय।

पिछले दो-तीन सालों से जिस तरह की गतिविधियां गंगा के बारे में चलाई जा रही हैं, वे आशा नहीं जगातीं। यह बात अलग है कि उन गतिविधियों को संचालित करने वाले कोई ऐरे-गैरे लोग नहीं हैं। साफ है कि वे बहुत माने-जाने लोग हैं। उनकी प्रतिष्ठा है। कई तो ऐसे हैं जो न केवल प्रतिष्ठित हैं, बल्कि पदस्थापित भी हैं। ऐसे लोगों के प्रयास से गंगा को बचाने का जो भी काम चलेगा, उसे सफल होना चाहिए। यही आशा की जाती है।

इसमें कोई संदेह न पहले था न आज है कि गंगा का हमारे जीवन में कितना गहरा असर है। धार्मिक ग्रंथों में गंगा का जो वर्णन है, वह उसके प्रभाव को बढ़ाता है और बनाए रखता है। न जाने कब से यह परंपरा बनी हुई है। इतना तो साफ है कि गंगोत्री से गंगासागर तक दूरी चाहे जितनी हो और गंगा चाहे जहां की भी हो, उसकी एक-एक बूंद पवित्र मानी जाती है। इसी तरह गंगा के किनारे जो थोड़ा क्षण भी गुजार लेता है, वह इस रूप में स्वयं को धन्य पाता है कि गंगा के प्रवाह में वह न केवल भागीरथ को देखता है बल्कि उन पुरखों को भी देखता है, जो उसके अपने हैं। गंगा का प्रवाह ही ऐसा है। गंगा की पवित्रता उसके प्रवाह में है। वह प्रवाह परंपरा का है और उस क्षण का है, जिस क्षण का व्यक्ति साक्षी बनता है।
नई बहस के घेरे में जलाधिकार
Posted on 16 Jul, 2012 10:48 AM जलापूर्ति पर निर्णय का अधिकार किसका? प्राकृतिक संसाधनों का मालिक कौन? सरकार प्राकृतिक संसाधनों की ठीक से देखभाल न करे, तो जनता क्या करे? दिल्ली-खण्डवा जलापूर्ति निजीकरण ने बहस के ये तीन मुद्दे ताजा कर दिए हैं।
ahar pyne
अर्थव्यवस्था भी खतरे में पड़ जाएगी गंगा की तबाही से
Posted on 13 Jul, 2012 11:22 AM

नदी को बचाने के लिए गंगा सेवा मिशन की पहल, गोष्ठी कल से


एक तरफ सरकारी एजेंसियां गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिकीय प्रवाह की बात करती हैं, तो दूसरी तरफ कुछ राजनीतिकों और पूंजीपतियों के समूह जल और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों की हत्या की योजनाएं बनाते नजर आते हैं। हम गंगा को नुकसान पहुंचा कर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बड़ी संख्या में विदेशी सिर्फ गंगा को देखने आते हैं। इसलिए हम पर्यटन व्यवसाय का भी नुकसान कर रहे हैं। गंगा एक नदी नहीं, बल्कि समूची संस्कृति और विरासत है। इससे हिंदू ही नहीं मुसलमानों की भी आस्थाएं जुड़ी हैं।

‘गंगा सेवा मिशन’ का मानना है कि हम गंगा को नुकसान पहुंचा कर अपनी समृद्ध संस्कृति को ही नष्ट नहीं कर रहे, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। मिशन ने गुरुवार को यह दावा भी किया कि उत्तराखंड में बने टिहरी बांध का उद्देश्य आज तक पूरा नहीं हुआ है। खासतौर से बिजली उत्पादन का जो लक्ष्य रखा गया था, वह हासिल नहीं हो पाया। इसलिए पूर्ववर्ती परियोजनाओं की समीक्षा होनी चाहिए।
जय हो गंगा माई, बेटे हुए कसाई
Posted on 12 Jul, 2012 05:21 PM अंग्रेजों ने भी गंगा की अविरलता का सम्मान किया लेकिन दुर्भाग्य है कि आज की सरकारें गंगा जैसी नदी को भी नाला बनाने पर तुली है। उसके शरीर से एक-एक बूंद निचोड़ लेना चाहते हैं। कानपुर जैसे शहरों में चमड़ा फैक्ट्रियों का पानी गंगाजल को गंदाजल ही बना देता है। अपने उद्गम प्रदेश में हर-हर बहने वाली गंगा अब सुरंगों और बांधों में कैद हो रही है। उद्गम के कैचमेंट में खनन, सुरंगों के बनने से हजारों लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं जिससे हिमालय की कच्ची मिट्टी गाद बनकर गंगाजल को गंधला बना रही है। शहरों के कचरे, नैसर्गिक बहाव का कम होना और सरकारों की लापरवाही और बेइमानी गंगा पूर्णाहुति के जिम्मेदार हैं बता रहे हैं स्वामी आनंदस्वरूप।

दुर्भाग्य तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई के लिए लिया जाने वाला यह गंगाजल, दिल्ली में विदेशी कंपनियों द्वारा पीने के लिए बेचा जा रहा है। साथ ही पवित्र गंगाजल कार और शौचालय साफ करने के काम आ रहा है। बाणगंगा और काली नदी जैसी सहायक नदियों के द्वारा उत्तर प्रदेश की चीनी, कागज और अन्य मिलों के साथ घरेलू मल-मूत्र गंगा नदी में डाल कर पूरी नदी की हत्या कर देते हैं। रही-सही कसर कानपुर के छब्बीस हजार से भी अधिक छोटे-बड़े उद्योग पूरी कर देते हैं, जिनमें करीब चार सौ चमड़ा शोधन कारखाने भी शामिल हैं।

गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। उसने बहुत हद तक उसका पालन करते हुए हरिद्वार में भागीरथ बिंदु से अविरल प्रवाह छोड़ कर गंगा की अविरलता बनाए रखी। देश आजाद तो हुआ, पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें भारत में ही थीं और उन्होंने भारत की संस्कृति की प्राण, मां गंगा पर हमले करने शुरू किए।
राम के बाद क्या अब गंगा को कुर्बान करेगी भाजपा?
Posted on 12 Jul, 2012 03:42 PM

पिछले तीन महीने से गंगा के मसले पर चुप्पी साधे बैठे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया है

Ganga
विजय जड़धारी को इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार
Posted on 12 Jul, 2012 11:08 AM 08 नवम्बर 1953 को एक साधारण परिवार में जन्में विजय जड़धारी स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद वह समाज सेवा के कार्य में सुंदरलाल बहुगुणा और धूम सिंह नेगी के साथ लग गए। विजय जी 35 वर्ष से एक गांव में रहकर पर्यावरण व सामाजिक कार्य में लगे हैं। सत्तर के दशक से लेकर आज तक उनकी सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यों में कोई कमी नहीं आई। इसी कार्य को देखते हुए विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून को दिल्ली में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

विजय जड़धारीविजय जड़धारीपर्यावरणविद् व गांधीवादी कार्यकर्ता विजय जड़धारी को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के मौके पर 5 जून को दिल्ली में ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।
कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक
Posted on 11 Jul, 2012 05:17 PM आज हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के खेती में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है। हमारे खाने में मीठा जहर परोसा जा रहा है, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो रहा है। कीटनाशक के ज्यादा इस्तेमाल से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है तथा यह कीटनाशक जमीन में रिसकर भूजल को जहरीला बना रहा है। नदियों तालाबों तथा अन्य जलस्रोतों में बहकर वहां के पानी को जहरीला बन
×