स्वामी आनंदस्वरूप

स्वामी आनंदस्वरूप
जय हो गंगा माई, बेटे हुए कसाई
Posted on 12 Jul, 2012 05:21 PM
अंग्रेजों ने भी गंगा की अविरलता का सम्मान किया लेकिन दुर्भाग्य है कि आज की सरकारें गंगा जैसी नदी को भी नाला बनाने पर तुली है। उसके शरीर से एक-एक बूंद निचोड़ लेना चाहते हैं। कानपुर जैसे शहरों में चमड़ा फैक्ट्रियों का पानी गंगाजल को गंदाजल ही बना देता है। अपने उद्गम प्रदेश में हर-हर बहने वाली गंगा अब सुरंगों और बांधों में कैद हो रही है। उद्गम के कैचमेंट में खनन, सुरंगों के बनने से हजारों लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं जिससे हिमालय की कच्ची मिट्टी गाद बनकर गंगाजल को गंधला बना रही है। शहरों के कचरे, नैसर्गिक बहाव का कम होना और सरकारों की लापरवाही और बेइमानी गंगा पूर्णाहुति के जिम्मेदार हैं बता रहे हैं स्वामी आनंदस्वरूप।

दुर्भाग्य तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई के लिए लिया जाने वाला यह गंगाजल, दिल्ली में विदेशी कंपनियों द्वारा पीने के लिए बेचा जा रहा है। साथ ही पवित्र गंगाजल कार और शौचालय साफ करने के काम आ रहा है। बाणगंगा और काली नदी जैसी सहायक नदियों के द्वारा उत्तर प्रदेश की चीनी, कागज और अन्य मिलों के साथ घरेलू मल-मूत्र गंगा नदी में डाल कर पूरी नदी की हत्या कर देते हैं। रही-सही कसर कानपुर के छब्बीस हजार से भी अधिक छोटे-बड़े उद्योग पूरी कर देते हैं, जिनमें करीब चार सौ चमड़ा शोधन कारखाने भी शामिल हैं।

गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। उसने बहुत हद तक उसका पालन करते हुए हरिद्वार में भागीरथ बिंदु से अविरल प्रवाह छोड़ कर गंगा की अविरलता बनाए रखी। देश आजाद तो हुआ, पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें भारत में ही थीं और उन्होंने भारत की संस्कृति की प्राण, मां गंगा पर हमले करने शुरू किए।
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