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दिल्ली
मैला होता हिमालय
Posted on 21 Sep, 2012 03:55 PMहिमालय की चोटियां इंसानी दखल की वजह से प्रदूषित होती जा रही हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर लगातार तापमान बढ़ रहा है और इस क्षेत्र के ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं या पीछे हट रहे हैं। स्थिति को जल्द ही काबू नहीं किया गया तो खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं। मामले का जायजा ले रहे हैं जयसिंह रावत।हिमालय के सारे ग्लेशियर एक साथ नहीं सिकुड़ रहे हैं। सिकुड़ने वाले ग्लेशियरों के पीछे खिसकने की गति भी एक जैसी नहीं है और न ही एक ग्लेशियर की गति एक जैसी रही है। अगर ग्लेशियर के पिघलने का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग होता तो यह गति घटती और बढ़ती नहीं। हिमालय में सत्तर फीसद से अधिक ग्लेशियर पांच वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाले हैं और ये छोटे ग्लेशियर ही तेजी से गायब हो रहे हैं। मशहूर ग्लेशियर विशेषज्ञ डीपी डोभाल भी अलग-अलग ग्लेशियर के पीछे हटने की अलग-अलग गति के लिए लोकल वार्मिंग को ही जिम्मेदार मानते हैं।
जब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर जबरदस्त यातायात जाम की स्थिति आ गई हो और एवरेस्ट और फूलों की घाटी जैसे अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में हजारों टन कूड़ा-कचरा जमा हो रहा हो तो हिमालय और उसके आवरण-ग्लेशियरों की सेहत की कल्पना की जा सकती है। अब तो कांवड़ियों का रेला भी गंगाजल के लिए सीधे गोमुख पहुंच रहा है, जबकि लाखों की संख्या में छोटे-बड़े वाहन गंगोत्री और सतोपंथ जैसे ग्लेशियरों के करीब पहुंच गए हैं। हिमालय के इस संकट को दरकिनार कर अगर अब भी हमारे पर्यावरण प्रेमी ग्लोबल वार्मिंग पर सारा दोष मढ़ रहे हैं तो फिर वह सचाई से मुंह मोड़ रहे हैं। एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के चरण समुद्रतल से करीब 8,850 मीटर की ऊंची एवरेस्ट की चोटी पर पड़ने के बाद से अब तक तीन हजार से अधिक पर्वतारोही वहां अपना झंडा गाड़ जुके हैं।अराजकता फैलाने वाला साबित होगा, भूमालिकों से जलाधिकार छीनना
Posted on 12 Sep, 2012 10:19 AM“नदियोंको मां नहीं, कारपोरेट बनाना है।लहरों से पुण्य नहीं, पौंड कमाना है।।
सोना होता होगा नीला तुम्हारे लिए।
हमें तो पानी को रक्त में बदल जाना है।’’
पवन ऊर्जा क्षेत्र की निकली हवा
Posted on 11 Sep, 2012 02:20 PM नवीन एवं नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय ने जीबीआई योजना वर्ष 2009 में प्रारंभ की थी, जिसमें पवनपानी को पॉली कचरे से बचाओ!
Posted on 11 Sep, 2012 01:31 PM ऐसा नहीं है कि बढ़ते पॉलीथीन कचरे को रोका नहीं जा सकता या पॉलीथीनपानी
Posted on 06 Sep, 2012 12:59 PMपानी पर लिखी ये कवितायें नर्मदा जल सत्याग्रह के जन-संघर्ष को समर्पित हैं और पानीदार होने का दिखावा करने वाली इस असंवेदनशील व्यवस्था के विरोध में एक बयान है। इस सत्याग्रह ने पानी को एक संघर्ष के प्रतीक में बदल दिया है...।पानी –I
कहते हैं
जब कुछ नहीं था
पानी था।
और जब
नहीं बचेगा कुछ भी
तब
पानी रहेगा।
हमारी स्कूली शिक्षा का हिस्सा बने आपदा प्रबंधन
Posted on 05 Sep, 2012 03:59 PMआपदा ज्यादातर मानवीय ही होती है। भूकंप, बाढ़ और अतिवृष्टि जैसी परिस्थितियों में प्राथमिक विद्यालय ही आश्रय बनते हैं। दूसरा बड़ा आश्रय पंचायत भवन होता है। ये दोनों ही आशिंक रूप से आश्रय के केंद्र होते हैं। ऐसी परिस्थिति में इनसे जुड़े कर्मचारी स्वतः ही स्वयंसेवक हो जाते हैं। जरूरी है कि हम अपने प्राथमिक स्कूलों के अध्यापक और पंचायत कर्मियों को आपदा प्रबंधन के गुर सिखाएं। साथ ही आपदा प्रबंधन हमारस्वयंसेवी संगठनों की भूमिका
Posted on 01 Sep, 2012 11:59 AMस्वयंसेवा की अवधारणा से जुड़े हुए शब्द स्वयंसेवक एवं स्वयंसेवी संगठन वक्त के साथ-साथ विकसित हुए हैं। लेकिन इन शब्दों के विकास के पूर्व भी यह अवधारणा एक एहसास के रूप में जनमानस में विद्यमान थी। स्वयंसेवी भावना हमारे देश की काफी पुरानी एवं समृद्ध परंपरा रही है, जिसमें व्यक्तिगत एवं सामाजिक क्रियाकलाप सामूहिक हित में होते थे। यदि हम कल्पना करें उस समय की, जब लोगों को पढ़ाना-लिखना नहीं आता था और इस विराष्ट्रीय जलनीति-2012: लोकतंत्र पर तानाशाही की जीत
Posted on 01 Sep, 2012 10:18 AMनए संशोधित मसौदे में पहले की तरह साफ शब्दों में तो नहीं लेकिन दबे स्वरों में और अप्रत्यक्ष रूप से निजीकरण की बात कही गई है। हालांकि यह कदम इस बात की राहत तो देता है कि अंधाधुंध अंतर्बेसिन हस्तांतरण नहीं होगा लेकिन दूसरी ओर यह विष भरा कनक घट ही साबित होगा क्योंकि यह उसी रिवर लिंकिंग परियोजना में एक पेबंद है जो लोगों को जड़ों से उखाड़ने पर आमादा है।
इंतजार खत्म हुआ और संशोधित राष्ट्रीय जलनीति - 2012 का सुधरा हुआ प्रारूप जारी हो गया है। इसी वर्ष जनवरी में जलनीति - 2012 का मसौदा आया था, जिसकी कई बातों पर विरोध जताया गया था। समाज के विभिन्न लोगों और संस्थाओं की ओर से आए करीब 600 सुझाव आए, जिन पर चालाकीपूर्वक विचार करने के बाद जल संसाधन मंत्रालय ने नए संशोधित मसौदे का प्रारूप तैयार किया है। राष्ट्रीय जलनीति का मुख्य उद्देश्य जल उपभोक्ताओं का निर्धारण और तद्नुरूप जल का वितरण करना है। मसौदे के अंतर्गत मुख्य रूप से दो क्षेत्रों पर कड़ा विरोध था, निजीकरण और जल प्रयोग की प्राथमिकता। हालांकि जुलाई में आए संशोधित मसौदे में सुधार के प्रयासों ने कुछ हद तक विरोध के स्वरों को शांत करने का प्रयास किया है फिर भी जो प्रयास हुए हैं वे नाकाफी हैं।मनरेगा में लोकपाल की जरूरत
Posted on 31 Aug, 2012 10:46 AMछत्तीसगढ़ में प्रचलित शिकायत करने एवं उसके निवारण की प्रक्रिया के तहत कोई भी व्यक्ति जिसे मनरेगा से संबंधित अधिक