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मनरेगा का मूल्य
Posted on 03 May, 2013 12:31 PM मनरेगा पर सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद से इस महायोजना पर एक बार फिर देश भर में बहस तेज हो गई है। बहस का मुद्दा यह भी है कि अगर इस योजना में कुछ सालों में ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने की संभावना तलाशी जा रही थी तो फिर चूक कहां हो रही है? क्या इन सात सालों में मनरेगा ने भ्रष्टाचार को गांव और गलियों तक पहुंचा दिया है? कुछ ऐसे ही सवालों पर यह फोकस
मांग और ऊर्जा
Posted on 01 May, 2013 10:53 AM भारत तीव्र गति से उर्जा अधिसंरचना निर्माण की राह में मजबूत चुनौतियों का सामना कर रहा है। खासकर हाल के वर्षो में ऊर्जा और बिजली संबंधी जरूरतें बेहद तेज गति से बढ़ी हैं और इस प्रवृत्ति के भविष्य में जारी रहने की पूरी गुंजाईश है। वर्तमान में भारत के पास कुल संस्थापित क्षमता 211 गीगावाट की है। उम्मीद है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के अंत तक भारत की उच्चतम मांग 335 गीगावाट तक पहुंच जाएगी। इसके ज
होली अस्पताल की छत पर टीएसटी
Posted on 01 May, 2013 10:42 AM सात साल के अनुबंध के अंतर्गत टीएसटी अस्पताल को प्रतिदिन 20 हजार लीट
सोलर दिल्ली
Posted on 01 May, 2013 10:31 AM दिल्ली में बिजली आपूर्ति शायद देश में सबसे अच्छी अवस्था में है। ऐसा इसलिए भी कि दिल्ली की राजधानी है और राजधानियों को बाकी देश के मुकाबले प्राथमिकता पर रखा ही जाता है। गर्मियों में प्रतिदिन पांच हजार मेगावाट तक की खपत करनेवाली दिल्ली को बिजली की किल्लत उतनी नहीं होती जितनी पूरे देश को होती है। फरवरी 2013 में देश में कुल ऊर्जा उत्पादन का औसत 2 लाख 14 हजार मेगावाट था। इसमें अगर अकेले 5 हजार मेगावाट
ऊर्जा पर वैकल्पिक सोच
Posted on 01 May, 2013 10:19 AM

वैकल्पिक ऊर्जा की सोच से ज्यादा उसकी दरकार नई है। देश में 2012 तक की स्थिति यह है कि महज 5.6 फीसद ऊर्जा आपूर्ति वैकल्पिक तरीके से हो रही है। जबकि सरकार इसके लिए प्रोत्साहन भी दे रही है। अगर बिजली पर निर्भरता कम करनी है तो इस ओर तेजी से कदम बढ़ाने ही होंगे, इसी मुद्दे पर है यह फोकस।

 

solar energy
बांध सुरक्षा विधेयक संसद में पेश करे सरकार : समिति
Posted on 01 May, 2013 10:00 AM समिति ने केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है कि
मशविरे का नाटक बंद करो
Posted on 30 Apr, 2013 01:56 PM आईएफसी द्वारा वित्त पोषित जीएमआर कम्पनी के ताप परियोजना प्रभावित, पास्को से लेकर तमाम परियोजना प्रभावितों ने प्रदर्शन किया। मगर इसके बावजूद भी विश्व बैंक ने इस सारे विरोध को चर्चा का हिस्सा मानते हुए आगे बढ़ने की बात कही है जो फिर एक बार यह सिद्ध करता है कि विश्व बैंक जैसी तथा कथित विकास परियोजना के नाम पर पूंजीवादी देशों के हितों को साधने का ही औजार है। यह सब तौर तरीके बताते हैं कि वास्तव में विश्वबैंक की पर्यावरण और रक्षात्मक नीतियाँ उसकी वास्तविक कामों में कहीं कोई स्थान नहीं रखती है। मात्र एक सुंदर आवरण है।विश्वबैंक ने पर्यावरण और सामाजिक संदर्भ में अपनी कुछ नीतियाँ बनाई हुई। जिसे वो पर्यावरण और पुर्नवास रक्षात्मक नीतियों का नाम देता है। 1992 में नर्मदा घाटी से भगाए जाने के बाद जलविद्युत परियोजना में 15 वर्ष तक बैंक ने किसी बांध को पैसा नहीं दिया। अब कुछ वर्षों से धीरे-धीरे बांध परियोजनाओं में पैसा लगाना शुरू कर रहा है। उसकी दलील है कि उस पर भारत के निदेशक का दबाव है। विश्व बैंक में हर साझेदार देश का एक निदेशक होता है। हिमाचल में रामपुर जलविद्युत परियोजना के बाद अब उत्तराखंड में अलकनंदागंगा पर विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना में उधार दे रहा है। विश्वबैंक जिस भी परियोजना में पैसा उधार देता है वहां पर्यावरण व सामाजिक प्रभावों के तथाकथित ऊंचे मानकों को दिखाने की कोशिश करता है। पर्यावरण व सामाजिक प्रभावों के संदर्भ में विश्वबैंक समय-समय पर अपनी रक्षात्मक नीतियों को ऊंचा बनाने का दिखावा करता है।
मनरेगा से संभव है बदलाव
Posted on 30 Apr, 2013 01:53 PM महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के माध्यम से भारत में आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन की आस बंधी है। दिवा अरोरा द्वारा कुछ समय पूर्व यह साक्षात्कार लिया गया था जिसमें मनरेगा व सूचना का अधिकार कानून के संबंध में उनसे चर्चा की गई थी। यह दो आलेखों की श्रृंखला का पहला साक्षात्कार है।
मनरेगा में लूट को इस तरह रोकें
Posted on 29 Apr, 2013 11:22 AM सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत सी जगह श्रम और निर्माण सामग
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