होली अस्पताल की छत पर टीएसटी

सात साल के अनुबंध के अंतर्गत टीएसटी अस्पताल को प्रतिदिन 20 हजार लीटर गर्म पानी प्रदान करेगा जो न्यूनतम 60 डिग्री सेल्सियस गर्म होगा, बदले में उसे 55 हजार रुपए प्रति माह मिलेंगे। अस्पताल को पानी राज्य सरकार की ओर से मुफ्त प्रदान किया जाता है। अगर अधिक गर्म पानी की जरूरत होगी या मौसम बहुत ठंडा होगा तो पानी को पूरा गर्म करने में गैस बॉयलर का इस्तेमाल किया जाएगा। उस पर आए खर्च को बाद में टीएसटी वापस अस्पताल को लौटाएगा। ट्रांस सोलर टेक्नोलॉजी (टीएसटी) की शुरूआत 2001 में तब हुई, जब के.एस. श्री निवासन अमेरिका की एक माइक्रो टरबाइन कंपनी में काम करने के बाद वापस भारत लौटे। उन्होंने अक्षय ऊर्जा तकनीकों जैसे पवन ऊर्जा टरबाइन और सौर्य फोटोवोल्टाइक पैनलों को सरल ढंग से बेचना शुरू किया। वे गर्व से कहते हैं, ‘यह भारत में पहला है।’ व्यावसायिक मॉडल वही है जिसमें श्रीनिवासन अमेरिका में पारंगत हो गए थे, पर पूंजी के अभाव ने उन्हें वैसा व्यवसाय आरंभ करने से रोक दिया था। ईएसीओ मॉडल के अंतर्गत टीएसटी तकनीकों की कीमत का भुगतान करती है उसे ग्राहक के परिसर में स्थापित करती है और ग्राहक से केवल उन सेवाओं का मूल्य लेती है, जिसे वह तकनीक प्रदान करती है, जैसे-गर्म पानी या बिजली की रोशनी। ग्राहक को फायदा होता है कि उन्हें तकनीक में निवेश करने का जोखिम नहीं उठाना पड़ता फिर भी सुनिश्चित सेवा मिलती है। कंपनी को फायदा उन सेवाओं की कीमत से होती है।

नई दिल्ली के ओखला रोड पर स्थित होली फैमिली अस्पताल ऊर्जा श्रीनिवासन की ऊर्जा सेवा कंपनी का पहला कार्यस्थल है। इस अस्पताल में पहले बॉयलरों को गरम करने के लिए पाइप से प्राकृतिक गैस का उपयोग होता था क्योंकि यह बिजली के मुकाबले सस्ता था। अस्पताल में 300 रोगियों के लिए प्रतिदिन 20 हजार लीटर गर्म पानी की जरूरत होती है और उसे गैस पर प्रति माह 60 हजार से 70 हजार रुपए खर्च करने होते थे। जाड़े के दिनों में यह खर्च बढ़कर 90 हजार रुपए तक हो जाता था।

एक प्रस्ताव तैयार किया गया। फिर यह प्रस्ताव अस्पताल के निदेशक के सामने रखा गया। सात साल के अनुबंध के अंतर्गत टीएसटी अस्पताल को प्रतिदिन 20 हजार लीटर गर्म पानी प्रदान करेगा जो न्यूनतम 60 डिग्री सेल्सियस गर्म होगा, बदले में उसे 55 हजार रुपए प्रति माह मिलेंगे। अस्पताल को पानी राज्य सरकार की ओर से मुफ्त प्रदान किया जाता है। अगर अधिक गर्म पानी की जरूरत होगी या मौसम बहुत ठंडा होगा तो पानी को पूरा गर्म करने में गैस बॉयलर (गैस की पाइपलाइने पहले मौजूद हैं) का इस्तेमाल किया जाएगा। उस पर आए खर्च को बाद में टीएसटी वापस अस्पताल को लौटाएगा। व्यवहार में इसकी जरूरत शायद ही कभी पड़ती है। बरसात और तेज धूप के दिनों में पानी आमतौर पर कम से कम 70 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है।

शुल्क की दरों का निर्धारण दोनों पक्षों के परस्पर लाभ का ध्यान रखते हुए किया गया। होली फैमिली अस्पताल को पिछले गैस बिलों के मुकाबले पांच हजार रुपए से लेकर 35 हजार रुपए तक प्रति माह की बचत होगी। यह दोनों पक्षों के लिए बेहतर स्थिति थी और निदेशक ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

एचपीएस से रोशन गांव सरिसवां


ग्रामीणों ने बताया कि रात में रोशनी की बेहतर व्यवस्था होने से चोरी आदि की घटनाएँ काफी कम हो गई हैं और सांप काटने की घटनाएँ तो अचानक एकदम खत्म हो गई। महिलाओं का जीवन बेहतर हो गया है क्योंकि वे खाना पकाने के दौरान रेंगने वाले कीड़ों को देख सकती हैं। दुकानदारों की आमदनी बढ़ गई है क्योंकि वे दुकानें अधिक देर तक खोल सकते हैं। तीस वाट के संपर्क पर 80 से 100 रुपए प्रति माह खर्च आता है और अधिकांश संयंत्र हर शाम छह से सात घंटे चलाए जाते हैं। पश्चिम चंपारण जिले में सरिसवां एचपीएस (हस्क पावर सिस्टम) से बिजली पाने वाला गांव है जो बिजली गांव के बाहर स्थित 32 किलोवाट क्षमता के बायोमास गैसीफायर से आती है। सरिसवां सरकारी ग्रिड से भी जुड़ा है पर उससे कभी-कभार ही बिजली मिल पाती है। इसके विपरीत एचपीएस से अभी करीब 230 ग्राहकों को नियमित बिजली मिलती है। इसका घरेलू और वाणिज्यिक उपयोग होता है, रोशनी जलती है, पंखा चलते हैं। इस बिजली से जुड़े लगभग हरेक घर में टीवी है, और सभी ग्राहक अपने बिजली बिलों का भुगतान अग्रिम करते हैं।

ग्राहक के लिए एचपीएस की बिजली फायदेमंद सौदा है। सरिसवां में गांव के स्कूली बच्चों के लिए छात्रावास चलाने वाले अनुश कुमार 25 पहले शाम छह बजे से नौ बजे तक रोशनी के लिए डीजल जेनरेटर को 1,700 रुपए प्रति माह देते थे, पर अब निकट के एचपीएस के संयंत्र से शाम छह बजे से रात एक बजे तक मिलने वाली बिजली पाने के लिए उन्हें केवल 1,200 रुपए देने होते हैं। छात्र देर रात तक पढ़ाई कर सकते हैं और जब 125 छात्रों के देखभाल करनी हो तो पांच सौ रुपए की बचत का मायने होता है।

उन्होंने कहा, ‘पूरे चौबीस घंटे की बिजली आपूर्ति के लिए अधिक भुगतान करना भी मुझे अच्छा लगेगा। हमारे पास ग्रिड का बिजली-संपर्क भी है, पर उससे महीने में एक या दो दिन ही बिजली मिल पाती है। वह किसी काम का नहीं है।’

ग्रामीणों ने बताया कि रात में रोशनी की बेहतर व्यवस्था होने से चोरी आदि की घटनाएँ काफी कम हो गई हैं और सांप काटने की घटनाएँ तो अचानक एकदम खत्म हो गई। महिलाओं का जीवन बेहतर हो गया है क्योंकि वे खाना पकाने के दौरान रेंगने वाले कीड़ों को देख सकती हैं। दुकानदारों की आमदनी बढ़ गई है क्योंकि वे दुकानें अधिक देर तक खोल सकते हैं। तीस वाट के संपर्क (15 वाट के दो सीएफएल) पर 80 से 100 रुपए प्रति माह खर्च आता है और अधिकांश संयंत्र हर शाम छह से सात घंटे चलाए जाते हैं।

रत्नेश बताते हैं, ‘इन लोगों को समूचे जीवन में इससे बेहतर सौदा नहीं मिला होगा।’ आरंभ में बिजली का बिल उपयोग करने के बाद ग्राहकों से वसूला जाता था, पर कुछ लोगों के भुगतान न करने से समस्या उत्पन्न हो जाती थी। इसलिए अब एक स्थानीय कर्मचारी बिजली की आपूर्ति होने के पहले ही बिल वसूल लेता है।

50 वर्षीय मांडी देवी गोद में दो वर्षीय बच्चे को लेकर स्थानीय बाजार में सड़क के किनारे बैठी है। वह इस संयंत्र से बिजली नहीं ले पाई क्योंकि 32 किलोवाट के इस संयंत्र की क्षमता पूरी हो गई थी। वह आज भी संयंत्र से बिजली लेना और भुगतान करना चाहती है। उसके सात लोगों के परिवार की कुल मासिक आमदनी केवल 1,500 रुपए हैं।

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