Posted on 20 Jul, 2014 10:51 AM“नेहरू के जमाने में जो भी जनसंघर्ष था, वह सामंतवाद के विरुद्ध था। वह पूंजीवाद के विरुद्ध नहीं था, क्योंकि वह तो पूंजीवाद को ही विकसित करने का अदृश्य कौशल था। बस इसमें इतनी सतर्कता चाहिए थी कि विकास आहिस्ते-आहिस्ते हो ताकि पूंजीवाद, सामन्तवाद की सत्ता को अपने हाथ में ले सके और बचे हुए सामंतवादी तत्वों को अपने अंदर अंगीभूत कर सके।” किशन पटनायक
Posted on 12 Jul, 2014 09:31 AMमेघ ही वह कहार हैं, जो प्रत्येक नदी-नाला, गाड़-गधेरे और कुआं-बावड़ी सहित हर जलस्रोत को तृप्त कर सबमें पानी भरते हैं। मेघ प्रतिवर्ष यह काम कश्मीर से कन्याकुमारी तक अनथक करते हैं।
मेघ बहुत साहसिक कहार हैं। यह खूब भारी डोली यानी ढेर सारा तरल वाष्प लेकर हजारों मील दूर से भारत की यात्रा की शुरुआत करते हैं।
Posted on 11 Jul, 2014 06:31 AMबजट में पवित्र गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए ‘नमामि गंगे’ मिशन के तहत 2037 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा गंगा के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने का तथा
Posted on 08 Jul, 2014 04:20 PMभारत जर्मनी पर्यावरण भागीदारी कार्यक्रम (Indo-German Environment Partnership -IGEP Programme) की ओर से आपका हार्दिक अभिनन्दन।
हमें आपको यह सूचित करते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है की पर्यावरण के मुद्दों के बेहतर मीडिया कवरेज को प्रोत्साहित करने के लिए, जी आइ जेड (German International Cooperation-GIZ), ICLEI-South Asia, एशियन कालेज ऑफ़ जर्नलिज्म (Asian College of Journalism), द थर्ड पोल (The Third Pole) और देउत्स्चे वेल्ले अकादमी (Deutsche Welle Academy) द्वारा सयुंक्त रूप से एक पर्यावरण संबंधी पत्रकारिता प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रतियोगिता में IFAT India 2014 (http://www.ifat-india.com/) का भी सहयोग है तथा जर्मन दूतावास का प्रश्रय प्राप्त है। जर्मन दूतावास की ओर से इस प्रतियोगिता में 'स्वछ गंगा' पर एक विशेष पुरस्कार की घोषणा की गई है।
हमें विश्वास है की आपके माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोग जिन्होंने गंगा से संबंधित किसी भी प्रकार का मीडिया कवरेज 1 जुलाई 2013-30 जून 2014 की बीच किया है, वो इस प्रतियोगिता में भाग ले सकेंगे। इस प्रतियोगिता में भाग लेने की लिए कृपया www.igep.in पर जाएं। प्रविष्टियां 15 अगस्त 2015 तक ऑनलाइन जमा की जा सकती है।
Posted on 08 Jul, 2014 01:59 PM40-50 साल पहले बिना किसी फंडिंग, प्रोजेक्ट या एक्शन प्लान के हमारी नदियां साफ थीं, निर्मल थीं, अविरल थीं और हमारे गांव के लाखों किसान अपनी जिम्मेदारी को अपने कंधो पर लेकर पानी का काम करते रहे। विकास ने हमारी पारंपरिक समझ और हिस्सेदारी को चुनौती दी और आज हम सब नदियों में साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। नदी, नाव और गांव की संस्कृति की समझ पर विश्वास कर हम अगर जन भागीदारी से योजना बनाएं और सामाजिक जागरूकता से लोगों को जोड़े तो हम काफी हद तक गंगा नदी को अविरल, निर्मल और नैसर्गिक बना सकते हैं। नदियों को पहले बेजान कर उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश के बजाय, हमें उन्हें शुरू से ही स्वस्थ रखना होगा। नदियों की रक्षा अपने बच्चों की रक्षा करने जैसी है। हम सबको स्वस्थ रहने के लिए, हमारी नदियों का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है।
भारत की अधिकांश नदियां मृत हो रही है, यह हमारे अस्तित्व के लिए एक बुरा संकेत है। एक नदी की स्थिति पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति को प्रतिबिंबित करती है, जिसका हम एक अविभाज्य हिस्सा है और यह वास्तविकता है कि यदि हमारी नदियां मृत होती रही तो हम भी अधिक काल तक जीवित नहीं रहेंगे।
एक नदी कैसे मृत हो जाती है? अत्यधिक जल के दोहन से नदियां सूख रही हैं अथवा सूखाग्रस्त होने के कगार पर हैं , नदियों में अपशिष्ट एवं विषाक्त जल प्रवाहित करने से नदियों में हर प्रकार का जीवन नष्ट हो रहा है , इसके जल को हमने इतना गंदा कर दिया है की हम अब इनके किनारों पर स्नान-ध्यान, मनोरंजन, तथा धार्मिक अनुष्ठान को करना बंद कर दिया है।