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आदिवासियों में पुनर्जागरण
Posted on 06 Aug, 2015 11:35 AM भारत में दलित समाज में जो स्थान बाबा साहब अंबेडकर का है, वही स्थान
आदिवासी का तात्पर्य
Posted on 06 Aug, 2015 11:26 AM बड़ी-बड़ी निराशाओं के बीच, आज भी संघर्षशील आदिवासी समाज मनुष्य और म
जल का वैश्विक परिदृश्य : समस्या एवं प्रबंधन
Posted on 04 Aug, 2015 03:29 PM जल संसाधनों का एकीकृत पर्यावरणीय प्रबंधन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता ह
वेदना-वैत्रवती की
Posted on 04 Aug, 2015 11:35 AM
स्वच्छ पर्यावरण एवं प्रदूषण मुक्त करने के लिए आयोजन हुए। भाष
जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता
Posted on 04 Aug, 2015 11:08 AM आजादी के समय देश में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल उपलब्धता 5000 घन मीटर थी जो न्यूनतम जरूरत की ढाई गुनी थी। तब अन्तरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर हम भी जल सम्पन्न देशों की सूची में थे। नब्बे का दशक आते-आते जनसंख्या इतनी बढ़ गई कि प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की आवश्यकता के लिहाज से हम सीमान्त स्थिति में पहुँच गए। जल प्रबन्धन के लगभग सारे लक्ष्य हासिल करने के बावजूद खेत तक सिंचाई का पानी पहुँचाने की हमारी हैसियत जवाब देती जा रही थी। जल संकट सामान्य अनुभव है। तीस साल पहले हमने इस संकट की तीव्रता महसूस की थी और बेहतर जल प्रबधन के लिये गम्भीरता से काम करना शुरू किया था। हालांकि आजादी मिलने के फौरन बाद ही जब पहली योजना बनाने का काम शुरू हुआ तब सिंचाई प्रणाली को और ज्यादा विस्तार देने की बात हमारे नेताओं ने समझ ली थी। तभी बाँध परियोजनाओं पर तेजी से काम शुरू कर लिया गया। हालांकि सन् 1950 का वह समय ऐसा था कि देश की आबादी 36 करोड़ थी।

देश के पास प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल उपलब्धता पाँच हजार घनमीटर थी। यानी अन्तरराष्ट्रीय मानदंडों के मुताबिक हर व्यक्ति की जरूरत से ढाई गुना पानी उपलब्ध था। लेकिन इस पानी का इस्तेमाल करने लायक हम नहीं थे। ज्यादातर खेती वर्षा आधारित थी। खेती के उपकरणों का इस्तेमाल ना के बराबर था। जैसे-तैसे जरूरत भर का अनाज पैदा करने की कोशिश शुरू हुई। उसी का नतीजा था कि ब्रिटिश सरकार की बनाई सिंचाई व्यवस्था को तेजी से विस्तार देने का काम शुरू किया गया।
देवनदी गंगा का आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
Posted on 04 Aug, 2015 10:36 AM भारत में किसी स्थान पर अपनी परम्परा से आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति जब स्नान करने जाता है तो उसके मुख से अनायास ही फूट पड़ता है-

‘‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी च सरस्वती,
नर्मदे, सिन्धु, कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु।।”

पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिये मानसून पूर्व करें श्रमदान
Posted on 04 Aug, 2015 09:30 AM

अपना तालाब अभियान के पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली ला

अमरकंटक
Posted on 04 Aug, 2015 09:08 AM अमरकंटक से कपिलधारा तक नर्मदा सीधे-सपाट मैदान में से होकर बहती है।
हर नदी गंगा है
Posted on 03 Aug, 2015 04:40 PM भारतीय दृष्टि के किसी एक छोटे से अंश को लेकर शेष सबका परित्याग कर द
जल लघुकथा : नदी की चतुराई
Posted on 03 Aug, 2015 04:19 PM एक दिन नदी को ठहाका मार कर हँसते हुए देख नदी के तट ने पूछा, दीदी आज क्या बात है। आप बहुत प्रसन्न हैं,

नदी ने कहा-भाई मेरे एक बहुत पुरानी बात याद आ गई तो सहसा मैं जोर से हँस पड़ी।

तट ने कहा-‘‘कौन सी घटना थी, क्या मुझे नहीं बताओगी?
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