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विश्व व्यापार संगठन ने भारतीय राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन में स्थानीयता को महत्त्व को ‘गैर-क
प्रधानमंत्री ने नई फसल बीमा नीति की धूमधाम से शुरुआत की है। इसमें कान को सीधे नहीं हाथ घुमाकर पकड़ा गया है। पैसा निजी जेब से जाए या सरकारी खजाने से अंततः सार्वजनिक धन मुनाफाखोर बीमा कम्पनियों के झोले में ही जाएगा।
आज का जलवायु संकट मनुष्य द्वारा प्रकृति से छेड़छाड का परिणाम है। वैश्विक तापमान वृद्धि औद्योगिक सभ्यता की देन है। इसी के कारण किसानों को सूखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं हर साल झेलनी पड़ रही हैं। अनियमित वर्षा व पर्यावरण असंतुलन के कारण देश के अनेक हिस्सों में कृषि और किसानों को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है, जिसके लिये किसी भी स्थिति में किसान जिम्मेदार नहीं है। आज पूरा किसान समुदाय मृत्युशय्या पर पड़ा है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि, प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को नुकसान की भरपाई दे और उसके लिये एक स्थायी व्यवस्था की स्थापना करे। लेकिन सरकार अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करना चाहती। गौरतलब है किसानों को दी जानेवाली सब्सिडी का लाभ किसानों को नहीं बल्कि कम्पनियों को ही मिलता है।
भारतीय ज्ञापनीठ की पहचान प्राय ‘स्तरीय कथा साहित्य प्रकाशित करने वाली संस्था के तौर पर होती है, लेकिन हाल ही में उन्होंने प्रकृति पर मँडरा रहे अस्तित्व के संकट की ओर आम लोगों का ध्यान आकृष्ट करवाने के उद्देश्य से ‘ज्ञान गरिमा’ पुस्तकमाला के अन्तर्गत पर्यावरण से जुड़े कुछ आलेखों का संकलन प्रकाशित किया है।
महर्षि बाल्मीकि रचित रामायण में एक वाक्य है -
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !!