प्रधानमंत्री ने नई फसल बीमा नीति की धूमधाम से शुरुआत की है। इसमें कान को सीधे नहीं हाथ घुमाकर पकड़ा गया है। पैसा निजी जेब से जाए या सरकारी खजाने से अंततः सार्वजनिक धन मुनाफाखोर बीमा कम्पनियों के झोले में ही जाएगा।
आज का जलवायु संकट मनुष्य द्वारा प्रकृति से छेड़छाड का परिणाम है। वैश्विक तापमान वृद्धि औद्योगिक सभ्यता की देन है। इसी के कारण किसानों को सूखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं हर साल झेलनी पड़ रही हैं। अनियमित वर्षा व पर्यावरण असंतुलन के कारण देश के अनेक हिस्सों में कृषि और किसानों को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है, जिसके लिये किसी भी स्थिति में किसान जिम्मेदार नहीं है। आज पूरा किसान समुदाय मृत्युशय्या पर पड़ा है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि, प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को नुकसान की भरपाई दे और उसके लिये एक स्थायी व्यवस्था की स्थापना करे। लेकिन सरकार अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करना चाहती। गौरतलब है किसानों को दी जानेवाली सब्सिडी का लाभ किसानों को नहीं बल्कि कम्पनियों को ही मिलता है।भारत सरकार ने प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिये पहले की बीमा योजनाओं में थोड़ा बदलाव करके प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की है। साधारणतः बीमा कम्पनी का उद्देश्य लोगों से इकट्ठा की गयी बड़ी राशि कम्पनी के कर्मचारियों के स्पर्धात्मक वेतन और प्रबंधन पर खर्च कर मुनाफा शेयर धारकों को बाँटना है। यह बीमा योजना देश के सभी किसानों के लिये, सभी फसलों के लिये है। साथ ही बैंक से कर्ज लेने वाले ऋणी किसान और किसान क्रेडिट कार्डधारक किसानों के लिये भी अनिवार्य है जो कि यह अन्यायपूर्ण है। किसानों को खरीफ फसलों के लिये 2 प्रतिशत, रबी फसलों के लिये 1.5 प्रतिशत और वार्षिक बागवानी फसलों के लिये 5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करना होगा। बाकी की राशि राज्य तथा केन्द्र सरकार द्वारा समान हिस्सों में सब्सिडी के रूप में कम्पनियों को दी जाएगी।
कड़े नियम व शर्तों की बाधाएं पार कर, हानि सिद्ध होने पर बीमा कम्पनी थोड़े से किसानों को नुकसान भरपाई देगी। यह नुकसान भरपाई किसान से प्राप्त प्रीमियम और सरकारी कृषि बजट से दी जायेगी। सरकारी सब्सिडी व नुकसान भरपाई के लिये एक साल में केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा मिलकर कम्पनियों को 5000 हजार करोड़ रुपयों तक राशि दी गई है। कृषि प्रधान भारत में जहाँ आधे से ज्यादा लोग खेती करते हो वहाँ केन्द्र सरकार ने इस वर्ष के बजट में कृषि के लिये केवल 35984 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं और इसे वह कृषि समर्पित बजट कहते हैं।
यह देश के कुल बजट के 2 प्रतिशत से भी कम है। इसमें से 5500 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये रखे हैं। पिछले कई वर्षों से देश में चल रही विभिन्न फसल बीमा योजनाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट है, आज तक कम्पनियों द्वारा किसानों को नुकसान भरपाई किसानों से जुटाई गयी कुल प्रीमियम से कम है। राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के अनुसार खरीफ 2007 से खरीफ 2014 तक 8 साल में 15 मौसम के लिये किसानों ने 8083.45 करोड़ रुपये प्रीमियम और सरकारी सब्सिडी 1132.68 करोड़ रुपये मिलाकर कुल 9216.13 करोड़ रुपये कम्पनी को दिये। कुल बीमाधारी किसानों में से 27.52 प्रतिशत किसानों को 27146.78 करोड़ रुपये नुकसान भरपाई दी गयी। जिसमें कम्पनियों ने केवल 7232.26 करोड़ रुपये दिये हैं। बाकी रकम 19914.51 करोड़ रुपये नुकसान भरपाई सरकार द्वारा दी गयी। मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अनुसार खरीफ 2007 से खरीफ 2014 तक 14 मौसम में किसानों ने 5950.344 करोड़ रुपये प्रीमियम और सरकारी सबसिडी 3948.405 करोड़ रुपये मिलाकर 9898.749 करोड़ रुपये कम्पनी को दिये। कुल बीमाधारी किसानों में से 55.67 प्रतिशत किसानों को 4078.835 नुकसान भरपाई दी गयी। यहाँ दायित्व केवल बीमा कम्पनियों का है।
संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के अनुसार रबी 2010 से खरीफ 2014 तक मौसम के लिये किसानों ने 2363.40 करोड़ रुपये प्रीमियम और सरकारी सर्विस 1444.01 करोड़ रुपये मिलाकर 3807.41 करोड़ रुपये कम्पनी को दिये। कुल बीमाधारी किसानों में से 17.11 प्रतिशत किसानों को 1719.49 नुकसान भरपाई दी गयी। यहाँ दायित्व केवल बीमा कम्पनियों का है।
उपरोक्त तीनों उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि जहाँ नुकसान भरपाई का दायित्व केवल कम्पनियों का है, वहीं नुकसान भरपाई देशभर के किसानों से प्राप्त प्रीमियम से कर दी गई है। जहाँ दायित्व कम्पनी और सरकार को मिलकर पूरा करना है, वहाँ नुकसान भरपाई में कम्पनी का हिस्सा किसान के प्रीमियम से कम ही है। सरकार द्वारा किसानों के लिये दी गई सब्सिडी का सारा लाभ कम्पनियों को ही मिला है। सरकार द्वारा जारी पर्चे में भी फसल बीमा योजना की असफलता की पुष्टि की गई है। जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में किसान को अधिक प्रीमियम देने के बावजूद नुकसान का सही मुआवजा नहीं मिल पा रहा था। इसलिये इसे बंद कर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरु की जा रही है।अभी तक बीमा योजनाएँ सार्वजनिक क्षेत्र और भारतीय कम्पनियों द्वारा चलाई जाती थी। यह कम्पनियाँ दावा भी करती रही हैं कि मिलने वाला मुनाफा सरकार की तिजोरी में जमा किया जाता है, जिसकी पड़ताल जरूरी है। लेकिन अब कृषि और बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिये पूरी छूट देकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को प्रवेश दिया गया है।
देश में चल रही पुरानी बीमा योजना हो या नयी दोनों में कोई गुणात्मक फर्क नहीं है। किसान प्रीमियम थोड़ा कम किया गया है। लेकिन कुल प्रीमियम राशि दुगुनी करने से सरकारी तिजोरी से कम्पनियों को दुगुनी प्रिमियम व सब्सिडी देनी होगी। अर्थात कृषि बजट से बीमा कम्पनियों को लाभ पहुँचाया गया है। सवाल उठता है कि किसानों को नुकसान भरपाई देने के लिये सरकार और किसानों के बीच बीमा कम्पनियों को क्यों लाया गया है?
जाहिर है सरकार अपनी तरफ से किसानों की कोई मदद नहीं करना चाहती। कृषि बजट से किसानों का हक छीनकर सरकारी सब्सिडी से बीमा कम्पनियों को लाभ पहुँचा रही है। प्राकृतिक आपदाओं के स्थिति में कर्ज चुकाने में असमर्थ ऋणी किसानों का ऋण बैंकों को लौटाने की यह एक स्थायी व्यवस्था है। प्राकृतिक आपदाओं के समय जब किसान कर्ज चुकाने में असमर्थ होगा तब किसान चाहे कितने भी संकट में क्यों न हो, बीमा कम्पनी से मिलने वाली नुकसान भरपाई से बैंक को ब्याज और कर्ज वापस मिलता रहेगा। साथ ही निजी बीमा कम्पनियाँ किसानों को नवीन और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाकर ठेका खेती, कार्पोरेट खेती को बढावा देने के लिये उनके द्वारा प्रमाणित कम्पनियों की वस्तुओं को खरीदने के लिये बाध्य करेंगी तथा शर्तें लगाकर पारम्पारिक बीज, खाद, कीटनाशकों के उपयोग पर रोक लगायेंगी। किसानों का हक छीनकर उनका शोषण करके विदेशी निवेश बढ़ाना और न्यूनतम रोजगार पैदा करना किसानों के प्रति अन्याय है।
यह अत्यंत दुखद है कि सरकार ने किसानों को नुकसान भरपाई देने के बजाय और अधिक लूटने की व्यवस्था बनाई है। यह देश के बदहाल किसानों की कार्पोरेटी लूट की एक नयी व्यवस्था है। जो लोग यह दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिये तोहफा है और यह किसानों के जीवन में परिवर्तन लायेगी वे लोग कम्पनियों के एजेन्ट की भूमिका निभा रहे हैं।
सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में योजना और पीएमएफबीवाई का फर्क स्पष्ट करने के लिये उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले का उदाहरण दिया गया है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि नई और पुरानी योजना में कोई गुणात्मक फर्क नहीं है। किसान प्रीमियम को कम किया गया है। लेकिन कैप हटाकर प्रीमियम राशि दुगुनी करने से सरकारी तिजोरी से कम्पनियों को अधिक लाभ होगा।
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