पेयजल में नाइट्रेट का कहर भी घातक


प्रत्येक जीव की सभी शारीरिक क्रियाएँ जलाधारित होने के कारण जल को जीवन की संज्ञा दी गई है। जल के दोनों रूप हैं, यथा-रोगकारक और रोगशामक। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार शरीर के अनेक रोग जल की गुणवत्ता में कमी के कारण होते हैं, तो आयुर्वेद के अनुसार शरीर में कई रोगों का शामक भी जल ही होता है। अतः जल की गुणवत्ता का हमारे स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है।

जल की गुणवत्ता निर्धारण में इसके भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वस्तुतः जल में कोई स्वाद एवं गंध नहीं होती है। परन्तु स्थान एवं भूमि के अनुसार उसमें जो खनिज लवण एवं क्षार आदि मिल जाते हैं, वे ही जल का स्वाद उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार जल में गंध भी कुछ वनस्पतियों तथा अन्य पदार्थों के जलस्रोतों में मिल जाने के कारण ही होती है।

रासायनिक दृष्टि से पेयजल की उपयुक्तता निर्धारण में कुल घुलित लवण नाइट्रेट एवं फ्लोराइड तथा आर्सेनिक की महती भूमिका होती है।

हमारे देश के अधिकांश राज्यों के भूजल में नाइट्रेट की सान्द्रता अनुमेय मानक (सीमा) से अधिक हो जाने के कारण लाखों लोग इसके दुष्प्रभाव से प्रभावित हो चुके है। क्योंकि देश के अधिकांश भागों के भूजल में नाइट्रेट का जहर फैल चुका है।

क्या है नाइट्रेट?


नाइट्रेट तथा नाइट्राइट प्राकृतिक आयन होने के साथ-साथ नाइट्रोजन चक्र के प्रमुख भाग होते हैं। वस्तुतः नाइट्रेट जैविक नाइट्रोजन के वायु स्थिरीकरण के अन्तिम उत्पाद होते हैं तथा क्रियाशील तत्व नाइट्रोजन की सक्रिय अवस्था के सबसे अधिक स्थिर उत्पाद होते हैं। ये जलीय एवं स्थलीय प्रक्रम के ऊष्मागतिक स्थिर रूप भी हैं।

मोटे तौर पर नाइट्रेट तथा ऑक्सीजन के संयोग से बने यौगिक होते हैं जो मानव के उपभोग हेतु कई खाद्य पदार्थों, विशेषतः सब्जियों, मांस एवं मछलियों में भी पाये जाते हैं। यह विदित ही है कि पौधों की वानस्पतिक वृद्धि के लिये नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। तथा वे इसकी पूर्ति वायु अथवा जल में घुलनशील नाइट्रेट से करते हैं। यह देखा गया है कि प्रकृति में पाये जाने वाले जल में सभी नाइट्रोजनीय पदार्थों की स्वतः यह प्रवृत्ति होती है कि ये नाइट्रेट में परिणत हो जाते हैं। भूजल में उपलब्ध अन्य लवणों की भाँति नाइट्रेट भूजल में पृथ्वी के भूजलीय एवं जैव-मंडलीय नाइट्रोजन चक्र के माध्यम से प्रवेश करते हैं।

नाइट्रेट की जल में अत्यधिक घुलनशीलता तथा मृदा कणों की कम धारण क्षमता के कारण अति सिंचाई या बहुत वर्षा से खेतों में बहता पानी अपने साथ नाइट्रेट को भी बहाकर कुओं, नालों एवं नहरों में ले जाता है। इस प्रकार मानव तथा मवेशियों के पीने का पानी नाइट्रेट द्वारा प्रदूषित हो जाता है। भूजल में नाइट्रोजन यौगिक मुख्यतः नाइट्रेट, नाइट्राइट तथा अमोनियम के रूप में मिलते हैं। मिट्टी में नाइट्रोजन भी अनेक स्रोतों से प्रवेश करती है। कुछ पौधों यथा- अल्फा, फलीदार एवं दालों वाले वायुमण्डल से सीधे नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। कुछ भाग इनके द्वारा सोख लिया जाता है तथा बची हुई नाइट्रोजन जल में नाइट्रेट के रूप में घुलकर मिट्टी के माध्यम से अन्ततः भूजल में मिल जाती है।

भूजल में नाइट्रेट कैसे मिलता है?


मिट्टी में नाइट्रोजन के अन्य स्रोतों में सड़े-गले पौधे, पशु अवशेष तथा नाइट्रोजनीय रासायनिक उर्वरक भी सम्मिलित होते हैं। इसके अतिरिक्त मल-जल के उनके संग्रह क्षेत्रों से मिट्टी में रिसने से भी भूजल में नाइट्रेट की अधिकता हो जाती है। नाइट्रेट आधिक्य वाले भूगर्भीय स्रोतों में चट्टानें तथा मृतिका पट्टी प्रमुख होती है। कई उद्योगों, जैसे - रासायनिक उर्वरकों, आसवनी (डिस्टलरी), बूचड़खानों तथा मांस पकाने आदि के बहिस्रावों में भी नाइट्रोजनीय यौगिक विद्यमान रहते हैं जो कि अन्तः स्यंदन (फिल्टरेशन) की क्रिया द्वारा भूजल तक पहुँच जाते हैं। पूर्णतया उपचारित किये बिना मल-जल भी भूमि पर फैलता रहता है। तथा अन्ततोगत्वा भूजल को प्रदूषित करता है।

राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में यह प्रेषित किया गया है कि मरु क्षेत्रों के कई स्थानों पर गर्मियों में प्रायः पशु तालाबों या बावड़ियों के पास आकर बैठते हैं। क्योंकि यहाँ उन्हें कुछ ठंडक मिलती है। स्वभावतः वहाँ उनका मल-मूत्र भी एकत्रित होता रहता है जो कि वर्षा के समय निक्षालित होकर जलस्रोतों में चला जाता है। लेखक ने राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों के कई कुओं में यह पाया कि कुओं की आन्तरिक दीवारों में कबूतरों ने अपने बैठने के लिये कई स्थान बना रखे हैं। कबूतरों के निरन्तर मल-मूत्र विसर्जन एवं वृक्षों की पत्तियों आदि के जल में गिरते रहने के कारण इन क्षेत्रों के भूजल में नाइट्रेट की अधिक मात्रा पाई गई।

ऐसा भी देखा गया है कि ऐसी भूमि, जिस पर पालक एवं गोभी की सब्जियों की खेती कम गुणवत्ता वाले जल से जिसमें नाइट्रोजनीय उर्वरकों का अधिक प्रयोग किया गया हो, के निरन्तर उपयोग से भी नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। इसी प्रकार कृषि कार्यों में प्रयुक्त कवक एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से भी भूजल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। कई बार नाइट्रेट एवं नाइट्राइट युक्त दवाइयों के सेवन से भी शरीर में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है।

नाइट्रेट के स्रोत


प्राकृतिक रूप से जल में नाइट्रेट की सान्द्रता का कारण वायुमंडल, भूगर्भीय लक्षण मानवजनित संसाधन होते हैं। बादलों की घड़घड़ाहट से नाइट्रोजन के ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं जो वर्षा के कारण सतही जल तक पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार मल जल बहिःस्राव तथा औद्याोगिक बहिःस्रावों से भी नाइट्रेट की मात्रा में वृद्धि होती है।

कृषि में नाइट्रोजनीय उर्वरक का अत्यधिक उपयोग स्वतंत्रता के पश्चात भारत में खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता हेतु प्रारम्भ किये गए हरित क्रान्ति अभियान के दौरान भूजल का विकास शुरू हुआ। भूजल के अनियंत्रित विकास के फलस्वरूप इसका अतिदोहन हुआ, भूजल स्तर गिरता गया, कुओं में पानी की कमी होने के कारण विद्युत की खपत भी बढ़ने लगी और अन्ततोगत्वा जल की गुणवत्ता में भी ह्रास होने लगा।

यह देखा गया है कि भारत के अनेक भागों में विगत 3-4 दशकों से कृषि उत्पादन में हुई अभूतपूर्व प्रगति में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग एवं उच्च उपज देने वाली फसल प्रजातियाँ कृषि यांत्रिकी में वृद्धि, पादप संरक्षण तकनीकों का उपयोग तथा उच्च स्तरीय भूजल विकास की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय किसान सन्तुलित उर्वरक उपयोग से अनभिज्ञ होने के कारण वे कृषि कार्यों में अत्यधिक मात्रा में नाइट्रोजनीय उर्वरकों का उपयोग ही करते हैं, न कि फास्फोरस एवं पोटाश उर्वरकों का। समग्र फसल उत्पादन में तीनों ही उर्वरकों का सन्तुलित उपयोग नितान्त आवश्यक है।

विगत कई दशकों से यह प्रेक्षित किया गया है कि भारत के सभी राज्यों में कृषि में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिसमें पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के क्षेत्रों में नाइट्रोजनीय उर्वरकों का एकल प्रयोग बढ़ा है। यह भी पाया गया है कि नाइट्रोजनीय उर्वरकों के उपयोग पर किसानों को आर्थिक सहायता भी मिलती है, जबकि फास्फेट एवं पोटाश उर्वरकों पर यह सुविधा नहीं है, इस कारण भी इनकी खपत में वृद्धि हुई है। अत्यधिक नाइट्रोजनीय उर्वरकों का उपयोग जब मोटे गठन वाली सिंचित मृदाओं में किया जाता है, तब पौधों द्वारा तो इनकी कम मात्रा का ही अवशोषण होता है। तथा अधिकांश भाग जलभृत में चला जाता है, जो भूजल की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर नाइट्रेट की मात्रा को बढ़ा देता है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में भूजल में नाइट्रेट की विषाक्तता


विश्व के कई देशों में जल संसाधनों में हो रहे नाइट्रेट प्रदूषण पर क्रमबद्ध अध्ययन किये जा रहे हैं, यथा - आस्ट्रिया, बेल्जियम, फिनलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, इजरायल, नीदरलैंड, भारत, पोलैण्ड, अमेरिका, स्वीडन, रूस आदि। हमारे देश के कई भागों में जलापूर्ति के समय जल गुणवत्ता सर्वेक्षण किये जा चुके हैं। वस्तुतः यह कार्यक्रम भारत सरकार के सुरक्षित पेयजल सभी के लिये के अन्तर्गत आयोजित किया गया था। भारत के कई राज्यों, यथा - पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के भूजल में नाइट्रेट प्रदूषण की समस्या हो चुकी है। इन सभी राज्यों के भूजल गुणवत्ता अध्ययन परिणामों द्वारा विदित हुआ है कि प्रमुखतः भूजल में नाइट्रेट वृद्धि का कारण कृषि कार्यों में प्रयुक्त नाइट्रोजनीय उर्वरक है।

पंजाब के लगभग सभी क्षेत्रों के भूजल में नाइट्रेट का मान अधिक पाया गया। हरियाणा के नारनौल, हिसार, फरीदाबाद, जिरका, रोहतक, जैतुल, गुड़गाँव के भूजल में नाइट्रेट का मान क्रमशः 1920, 1800, 1038, 1620, 838, 2000 एवं 127 मिग्रा/लीटर पाया गया। इसी प्रकार आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद एवं सिकन्दराबाद क्षेत्रों के भूजल में नाइट्रेट अधिक पाया गया।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर, कानुपर, वाराणसी एवं लखनऊ क्षेत्रों के भूजल में भी नाइट्रेट का मान अधिक पाया गया।

दिल्ली में, बिहार के बरौनी में, महाराष्ट्र के भण्डारा, नागपुर, पुणे, जालना, अकोला, अमरावती, चन्द्रपुर, वर्धा, औरंगाबाद क्षेत्र के भूजल में उच्च नाइट्रेट का स्तर पाया गया। देश के कुछ भागों के भूजल में नाइट्रेट का अधिकतम मान सारणी-1 में दिया गया है।

सारणी-1


 

क्र.सं.

राज्य

अधिकतम नाइट्रेट (मिग्रा/लीटर)

1.

पश्चिम बंगाल

480

2.

उड़ीसा

310

3.

बिहार एवं झारखण्ड

350

4.

उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड

695

5.

दिल्ली

625

6.

हरियाणा

1920

7.

पंजाब

565

8.

जम्मू कश्मीर

275

9.

हिमाचल प्रदेश

180

10.

मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़

470

11.

गुजरात

410

12.

आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना

360

13.

तमिलनाडु

1030

14.

राजस्थान

2800

 

मरुस्थल के सभी जिलों के भूजल में यद्यपि नाइट्रेट की विषाक्तता है। परन्तु चुरू, नागौर और बाड़मेर जिले इससे सर्वाधिक प्रभावित है। इन जिलों के 75 प्रतिशत भूजल में नाइट्रेट का मान निर्धारित अनुमेय मानक से अधिक पाया गया।

नाइट्रेट के मानक


नाइट्रेट के मानव एवं मवेशियों में बढ़ते घातक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए विश्व के कई देशों के स्वास्थ्य संस्थानों ने पेयजल में नाइट्रेट के मानक निर्धारित किये हैं, जिन्हें सारणी-2 में दर्शाया गया है।

 

देश/संस्थान

नाइट्रेट-नाइट्रोजन (मिग्रा/लीटर)

नाइट्रेट (मिग्रा/लीटर

विश्व स्वास्थ्य संगठन

10

45

यू.एस.ई.पी.ए. (यू एस पर्यावरण रक्षण एजेंसी)

10

45

भारतीय मानक ब्यूरो

10

45

कनाडा

10

45

पोलैंड

10

45

ई.ई.सी.

11.30

50

बुल्गारिया

6.7

30

बेल्जियम

11.3

50

डेनमार्क

11.3

50

फिनलैंड

6.8

30

हंगरी

9.0

40

यू.के.

11.3

50

संयुक्त राज्य अमेरिका

10

45

 

पेयजल में नाइट्रेट के दुष्प्रभाव


पेयजल में नाइट्रेट की अधिक मात्रा मानव, मवेशी, जलीय जीव, पर्यावरण तथा उद्योगों को भी दुष्प्रभावित करती है। जल में नाइट्रेट की अधिकता के निम्नांकित दुष्प्रभाव होते हैं।

1. नाइट्रेट एवं जन स्वास्थ्य


वस्तुत: जब नाइट्रेट भोजन या जल के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है तो मुँह तथा आँतों में स्थित सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा उसे नाइट्राइट में परिवर्तित कर दिया जाता है, जो कि सशक्त ऑक्सीकारक होता है।

यह रक्त में विद्यमान हीमोग्लोबिन में उपलब्ध लौह के फैरस (Fe2+) : को फैरिक (Fe3+) में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार हीमोग्लोबिन मैथेमोग्लोबिन में बदल जाता है, जिसके कारण हीमोग्लोबिन अपनी ऑक्सीजन परिवहन की क्षमता खो देता है। यह देखा गया है कि प्रौढ़ लोगों के रक्त में एंजाइमों की प्रक्रिया से मैथेमोग्लोबिन का पुनः हीमोग्लोबिन में परिवर्तन होता रहता है तथा इसके स्तर में एक प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ता है। नवजात शिशुओं के शरीर में इन एंजाइमों का स्तर भी कम होता है। और मैथेमोग्लोबिन का स्तर में बढ़ा हुआ रहता है। अत्यधिक रूपान्तरण की स्थिति में आन्तरिक श्वास अवरोध हो सकता है, जिसके लक्षण चमड़ी तथा म्यूकस झिल्ली के हरे-नीचे रंग से पहचाने जा सकते हैं। इस रोग को ‘साइनोसिस’ अथवा ‘ब्ल्यू बेबी’ भी कहते हैं। छोटे बच्चों में यह रोग अधिकतर पाया जाता है, क्योंकि वे मैथेमोग्लोबिनेमिया के प्रति अधिक संवदेनशील होते है। तथा उनमें यह रूपान्तरण दुगुनी गति से होता है। यह भी देखा जा चुका है कि जो छोटे बच्चे स्तनपान करने वाले होते हैं, उनकी माताओं द्वारा उच्च नाइट्रेटयुक्त जल पीने से माता के स्तन से प्राप्त दूध से भी नाइट्रेट विषाक्तता हो जाती है। ऐसे कई मामले देश के विभिन्न स्थानों के अस्पतालों में देखे जा चुके हैं।

 

हीमोग्लोबिन (Fe2+)

नाइट्राइट

मैथेमोग्लोबिन (Fe3+)

 

ऑक्सीजन वाहन क्षमता

ऑक्सीजन वहन अक्षमता

 

प्रायः नाइट्रेट का नाइट्राइट में परिवर्तित होना जीवाणुओं की सहायता से होता है, जो जल वितरण लाइनों में पेय तथा खाद्य पदार्थों में व्याप्त जीवाणुओं के अपचयन से आँव, आमाशय एवं दन्त-ग्रहिका के माध्यम से प्रवेश करते हैं।

नाइट्रेट एवं कैंसर


नाइट्रेट जब भोजन अथवा जल के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो यह नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाता है। यह नाइट्राइट पुनः द्वितीयक एमीन, एमाइड तथा कार्बेमेट से अभिक्रिया करके एन. नाइट्रोसो यौगिक (खाद्य पदार्थों, औषधियों, सिगरेट के धुएँ, सड़े-जले पौधों, मृदा से प्राप्त प्रोटीन के अणुओं के अंश) बनाता है, जो कि अत्यधिक कैंसरकारी होते हैं। हमारे देश तथा विदेशों में किये गए अनुसन्धान परिणामों से ज्ञात होता है कि उच्च नाइट्रेट युक्त जल तथा जठर कैंसर में गहरा सम्बन्ध होता है। इस वियक पारिस्थितिकी अध्ययन के परिणाम भी यही दर्शाते हैं कि भोजन अथवा जल में नाइट्रेट की उच्च मात्रा कैंसर उत्पन्न करने में सहायक होती है। इस कार्य में क्षेत्र विशेष में किया सर्वेक्षण (कैंसर पीड़ित रोगी तथा पेयजल में अधिक नाइट्रेट) भी धनात्मक परिणाम देता है। चिली देश में, जहाँ सर्वाधिक जठर कैंसर के रोगी है, भोजन एवं पानी में उच्च नाइट्रेट मान इस रोग का सामान्य कारण माना जाता है। मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ अत्यधिक नाइट्रोजनीय उर्वरकों का उपयोग होता है, वहाँ के कुओं में निक्षालन द्वारा नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है।

चीन में किये गए जानपदिक अनुसन्धान परिणामों से ज्ञात होता है कि पेयजल में उच्च नाइट्रेट होने से ग्रसिका (ईसोफेगस) कैंसर भी हो जाता है। अधिक नाइट्रेट जठरांत्र के म्यूकस अस्तर (Lining) में उत्तेजना उत्पन्न करता है। तथा इससे डायरिया एवं मूत्रल रोग भी हो जाते हैं।

यह देखा गया है कि प्रायः तम्बाकू सेवन करने वालों एवं सिगरेट पीने वालों के शरीर में नाइट्रोसोऐमीन के पूर्वगामी (जैसे निकोटीन या एरीकोलीन तथा थायोसायनेट आदि) का स्तर बढ़ जाता है। अनुसन्धान परिणाम ये दर्शाते हैं कि ऐसी स्थिति में सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा अन्तर्जात नाइट्रोसो यौगिकों का संश्लेषण उच्च गति से होता है। अतः ऐसे व्यक्तियों में कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है।

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र एवं अन्य अंगों पर प्रभाव


रूस के वैज्ञानिकों (पेटूकोव एवं इवानोव) ने नाइट्रेट विषाक्तता से केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र को कुप्रभावित करने के परिणाम भी देखे हैं। उच्च मैथेमोग्लोबिन स्तर की इस कार्य में महती भूमिका होती है। इसी प्रकार पेयजल में उच्च नाइट्रेट का मान होने पर हृदय संवहनी तंत्र (Cardio-vascular system) पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखे गए हैं।

मधुमेह रोग : कई वैज्ञानिकों ने पेयजल में नाइट्रेट के उच्च मान के कारण टाइप-1 डायबिटीज भी प्रेक्षित की। उनके अनुसार नाइट्रेट के उच्च मान के कारण मुक्त मूलको (Free Radicals) का अधिक उत्पादन होता है जो कि पेनक्रिया की बीटा कोशिकाओं में विषाक्तता उत्पन्न करता है।

2. पशुओं में नाइट्रेट विषाक्तता


सभी रोमंथी पशुओं में (गाय, भैंस, बकरी व भेड़) नाइट्रेट विषाक्तता देखी गई है। जई, जौ, सूडान, राई, अंजन आदि ऐसे पौधे हैं, जिनमें नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है। ये चारे जब ऐसी भूमि में उगाए जाते हैं, जिनमें कार्बनिक पदार्थ एवं नाइट्रोजन की अधिकता होती है अथवा यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरक का चारों ओर अधिक छिड़काव किया जाता है तो ऐसी स्थिति में इन उगाए गए चारो में नाइट्रेट की विषाक्तता अधिक हो जाती है। अनुसन्धान द्वारा विदित हुआ है कि गोबर एवं पेशाब के गड्ढों पर उगने वाली पारा घास में नाइट्रेट विषाक्तता अधिक हो सकती है। पशु चिकित्सकों के अनुसार जिस चारे में 1.5 प्रतिशत से अधिक नाइट्रेट होता है, उसके खाने पर पशुओं में विषाक्तता उत्पन्न हो सकती है। नाइट्रेट विषाक्तता से पशुओं में जठर आंत्रशोथ उत्पन्न होता है। चरागाह में चरते हुए पशुओं की इस कारण अचानक मृत्यु भी देखी गई है। तेज दर्द, लार गिरना, कभी-कभी पेट फूलना तथा बहुमूत्रता जैसे लक्षणों के साथ रोग का एकाएक प्रकोप होता है। इससे पशुओं में अवसन्नता के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। श्वास का तेजी से चलना तथा श्वास में कष्ट होना, तेज नाड़ी लड़खड़ाना एवं तापमान कम हो जाना भी इस रोग के लक्षण हैं।

देश के कई शुष्क भागों में जब गर्मियों के दिनों में प्यासे पशु एक साथ अधिक मात्रा में अत्यधिक नाइट्रेट युक्त जल पी लेते हैं तो उनमें नाइट्रेट विषाक्तता उत्पन्न हो जाती है, जो कभी-कभी उनकी मृत्यु का कारण भी बन जाती है। कई दुधारु पशुओं में नाइट्रेट-युक्त पानी पीने से दूध में कमी एवं गर्भपात भी देखे जा चुके हैं।

3. नाइट्रेट एवं मत्स्य उत्पादन


वैज्ञानिक अनुसन्धानों द्वारा विदित हुआ है कि खरपतवारों के अत्यधिक जमाव से लगभग समस्त झीलें निष्क्रिय हो गई हैं। जल तंत्रों के आवाह क्षेत्र में हो रहे आर्थिक विकास के बढ़ते स्वरूप ने बिना किसी रसायन, पोषक तत्व, सिल्ट आदि को झीलों में प्रवाहित किया है। इस कारण जल संसाधन अतिपोषण से ग्रस्त हो चुके हैं। खरपतवारों के अत्यधिक उत्पादन से जल-संसाधनों की तलछट में कार्बनिक वर्ग के पदार्थों का निरन्तर जमाव बढ़ रहा है। इस कारण जल संसाधनों में सुपोषण एक समस्या बनती जा रही है।

जलस्रोतों में बढ़ते हुए नाइट्रेट तथा फास्फेट स्तर के कारण पोषक तत्वों की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, फलतः नीलहरित शैवाल की अत्यधिक वृद्धि हो जाती है जो कि सुपोषण का एक प्रमुख कारण है। शैवाल वृद्धि जलस्रोतों में अरूचिप्रद स्थिति उत्पन्न कर देती है। क्योंकि कुछ नील हरित शैवाल विषैली होती है। ऑक्सीजन की कमी होने के कारण अवायवीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण मछलियों की मृत्यु हो जाती है।

4. वायु प्रदूषण और नाइट्रेट विषाक्तता


यह देखा गया है कि शहरीय क्षेत्रों में बढ़ते हुए वायु प्रदूषण जिसमें नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की भी भूमिका होती है, के कारण श्वसन सम्बन्धी रोगों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। कुछ लोग जो नाइट्रोजन डाइऑक्साइड युक्त वातावरण में कार्य करते हैं, उनके लिये यह व्यवसायजन्य रोेग हो चुका है। अतः व्यावसयिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य प्रशासन (OSHA) ने कर्मियों के 8 घंटे के कार्य दिवस में वायु में नाइट्रोजन ऑक्साइड की सीमा 25 पीपीएम निर्धारित की है। तथा इसके प्रभावन की सीमा भी मात्र 15 मिनट रखी गई है।

5. नाइट्रेट अधिकता एवं उद्योग


यह देखा जा चुका है कि ऊन उद्योग में ऊन तथा सिल्क धागों के रंजन में नाइट्रेट की अधिकता घातक होती है। इसी प्रकार किण्वन प्रक्रमों (फर्मन्टेशन प्रोसेस) में नाइट्रेट विषाक्तता हानिकारक होती है तथा शराब में भी अवांछनीय स्वाद उत्पन्न करती है। मद्यकरण जल में नाइट्रेट का सान्द्रण 30 मि.ग्रा./लीटर ही वांछनीय है। वैज्ञानिकों के अनुसार किण्वन प्रक्रिया में अत्यधिक नाइट्रेट आंशिक रूप में नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाता है। इसलिये ये खमीर (यीस्ट) के लिये विषाक्त हो जाता है।

पेयजल में नाइट्रेट विषाक्तता का निदान नाइट्रेट अपनयन


नाइट्रेट में जल के कहर को देखते हुए इसके अधिक सान्द्रण को कम किया जाये। जल में नाइट्रेट की अत्यधिक धुलनशीलता के कारण इसका जल से अपनयन (removal) दुष्कर कार्य होता है। कृषि प्रधान देशों में नाइट्रेट प्रदूषण एक बड़ी भारी समस्या बन चुकी है जिसका उन्मूलन नितान्त आवश्यक है।

वर्तमान में किये गए सर्वेक्षण के आधार पर हमारे देश के 16 राज्यों यथा राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल के भूजल में नाइट्रेट का सान्द्रण 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। इनमें कई राज्यों के भूजल में कुल घुलित ठोस का मान भी अधिक है।

भूजल से नाइट्रेट अपनयन (removal) की विधियों की लागत-स्थान, भूजलीय अवस्था तथा कृषि स्थिति पर निर्भर करती है। इन क्षेत्रों में अत्यधिक नाइट्रेट युक्त जल का नाइट्रेट मुक्त जल से तनुकरण भी एक सरल विधि हो सकती हैं। सामान्यतया उच्च नाइट्रेट युक्त जलों में कुल घुलनशील ठोस (टीडीएस) का मान भी अधिक होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में निर्लवणीकरण की मानक विधियाँ जैसे कि उत्क्रम मानकरण एवं इलेक्ट्रोडायलेसिस भी नाइट्रेट अपनयन में काम में ली जा सकती हैै।जीवाणुओं द्वारा नाइट्रेट के प्राकृतिक अपघटन विधि से भी नाइट्रेट का अपनयन किया जा सकता है। विनाइट्रीकरण के लिये आंशिक ऑक्सीकरण, अधिक पीएच मान, तापमान, सूक्ष्म जीवाणुओं के अपचयन कर्मकों की पर्याप्त पूर्ति की आवश्यकता होती है। सूक्ष्म जीवाणुओं के प्रकार के अनुसार अपचयन कर्मक का अनुप्रयोग होता है, जैसे हाइड्रोजन (स्वपोषित जीवाणु) अथवा जैविक कार्बन यौगिक (परपोषित जीवाणु) आदि। लघुकालीन विनाइट्रीकरण के लिये उच्च सान्द्रित जीवाणु उपयुक्त वाहक पर उपयोग में लाए जाते हैं। उपचार के पश्चात ऑक्सीजन वृद्धि के लिये वातन, अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन हेतु सक्रिय कोयला निस्यन्दन तथा नाइट्रेट मुक्त जल का रोगाणुनाशन किया जाता है।

इस विधि की यह विशेषता है कि केवल नाइट्रेट यौगिक ही नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित होते हैं तथा जल की अन्य गुणवत्ता में कोई अन्तर नहीं आता हैं। इसमें किसी भी पृथक्करण तथा पूर्व उपचार की भी आवश्यकता नहीं रहती है। इसके विपरीत इस विधि की कमी यह है कि जल की कार्बोनेट कठोरता बढ़ती है तथा पूर्ण नाइट्रेट अपनयन हेतु विस्तृत जाँच की आवश्यकता होती है। पेयजल आपूर्ति में नाइट्रेट मुक्त जल प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित वैकल्पिक विधियाँ भी अपनाई जा सकती हैं।

1. विनाइट्रीकरण हेतु अनेक भौव रासायनिक प्रक्रमों, यथा- उत्क्रम मानकरण (Reverse Osmosis), नैनो मेम्ब्रेन, आयन-विनिमय (Ion Exchange) तथा विद्युत अपोहन (Electro-dialysis) का उपयोग करना चाहिए। इसी प्रकार विनाइट्रीकरण की जैविक विधियों में बैक्टीरिया तथा (Microbes) का प्रयोग भी लाभप्रद रहता है।
2. नाइट्रोजनीकरण निरोधी (Inhibitors) का उपयोग करना।
3. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरकों तथा हरित रसायनों का उपयोग करना।
4. सही फसल चक्र का चुनाव।
5. नाइट्रेट युक्त जल से सिंचाई करते समय नाइट्रोजनीय उर्वरकों का प्रयोग अत्यल्प करना।
6. निकास की समुचित व्यवस्था करना।
7. अधिक नाइट्रेट युक्त जल को कम नाइट्रेट युक्त जल के साथ मिलाकर पेयजल के रूप में प्रयोग करना।
8. नवजात शिशुओं को 6-8 माह तक स्तनपान करवाना। गर्भवती महिलाओं का कम नाइट्रेटयुक्त जल पीने की व्यवस्था करवाना।
9. आमजन तथा कृषक समुदाय को पेयजल गुणवत्ता के बारे में विशेषतः नाइट्रेट विषाक्तता के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाना।

इस प्रकार उपर्युक्त उपायों द्वारा हम पेयजल में नाइट्रेट के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।


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