देहरादून जिला

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अधिक लाभ के लिए गौ केंद्रित हो जैविक कृषि
Posted on 20 Jun, 2011 04:15 PM

‘दूध गंगा’ के अंतर्गत यदि गोबर व गोमूत्र प्रबंधन अनिवार्य कर दिया जाए, तो हमारे प्रदेश की कृषि

तैरता बिजलीघर
Posted on 02 May, 2011 10:41 AM

उत्तराखंड में पानी से बिजली उत्पादन की नई तकनीक का सफल प्रयोग किया गया है, जिसमें टरबाइन नदी क

उत्तराखंड के जंगलों में लगने लगी आग
Posted on 29 Apr, 2011 11:49 AM

यहां के जंगलों का जम कर दोहन हुआ। तब यहां पहाड़ में ज्यादातर सड़कें लोगों की सहुलियत के लिए नह

wildfire
बचाइए उत्तराखंड के पर्यावरण को
Posted on 28 Apr, 2011 12:56 PM

हाल में उत्तराखंड सरकार के दो फैसलों से पर्यावरण को लेकर उसकी नीति पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।पहला कई नदियों में खनन की इजाजत देना और दूसरा उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने से इनकार करना। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ.

सहस्रधारा
Posted on 24 Feb, 2011 03:09 PM


पुराना ऋण शायद मिट भी सकता है; किन्तु पुराने संकल्प नहीं मिट सकते। पचीस वर्ष पहले मैं देहरादून में था, तब सहस्त्रधारा देखने का संकल्प किया था। उत्कंठा बहुत थी, फिर भी उस समय जा नहीं सका था। कुछ दिनों तक इसका दुःख मन में रहा, किन्तु बाद में वह मिट गया। सहस्त्रधारा नामक कोई स्थान संसार में कहीं है, इसकी स्मृति भी लुप्त हो गयी। मगर संकल्प कहीं मिट सकता है?

सहस्रधारा
हिमालय दिवस: पर्वत को बचाने की एक मुहिम
Posted on 12 Sep, 2010 12:24 PM हिमालय दिवस के बहाने इस मुहिम को परवान चढ़ाने वालों की सोच है कि हिमालय की रक्षा तभी होगी जब उसकी गोद में रचे-बसे करोड़ों लोग वहीं रहेंगे। बीते कुछ वर्षो से पलायन की जो गति है, उसने इस चिंता को और बढ़ाया है। अगर पलायन की गति यूं ही बनी रही तो कंकड़-पत्थर का पहाड़ रहकर भी क्या करेगा। यह मानने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए कि सुदूर पहाड़ों में कोई बड़ा कारखाना नहीं लग सकता। इस सूरत में हमें पहाड़ के बाशिंदों को रोकना आसान नहीं होगा। वे तभी रुकेंगे जब उनके लिए आजीविका के ठोस इंतजाम किए जाएँगे। अभी पहाड़ों पर जो भी सामान बिक रहा है, सब नीचे से जा रहा है। ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि पहाड़ में पैदा होने वाले अन्न और वन उपजों से वहीं रोजगार के अवसर पैदा किए जाएँ। बर्फ के घर यानी हिमालय को बचाने की पहल उत्तराखंड की धरती से शुरू हो रही है। सभी को लगने लगा है कि इस पर्वत श्रृंखला की रक्षा अब बेहद जरूरी है। अब भी न जागे तो देर हो जाएगी। हिमालय के खतरे में पड़ने का मतलब पर्यावरण के साथ ही कई संस्कृतियों का खतरे में पड़ना है।

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर बने अन्तरराष्ट्रीय पैनल की तीन साल पहले आई रिपोर्ट में जब इस बात का खुलासा किया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक पिघल कर समाप्त हो जाएँगे, तब ग्लोबल वार्मिग से जोड़कर पूरी दुनिया के विज्ञानी चिंता में डूब गए थे। बाद में यह मामला हल्का पड़ा, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि ग्लेशियर पिघलने की गति तेज हुई है। उत्तराखंड सरकार ने कई वर्ष पहले जलनीति के ड्राफ्ट में स्वीकार किया है कि राज्य में स्थित 238 ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। इन्हीं से गंगा, यमुना और काली जैसी नदियाँ निकलती हैं।
जी डी अग्रवाल द्वारा नोटिस
Posted on 24 Jul, 2009 09:09 AM
प्रसिद्ध पर्यावरण विद् जी डी अग्रवाल ने केन्द्र सरकार और उत्तराखंड सरकार को यह कहते हुए नोटिस दिया कि अगर 31 जुलाई, 2009 तक भैरोघाटी और पाला-मनेरी बांधो पर काम बंद नदीं किया गया तो अनशन के सिवाय उनके पास और कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। वह फिर से 5 अगस्त 2009 से आमरण अनशन करेंगे। दोनों सरकारों को यह नोटिस देते हुए उंहोंने सरकार को अपने वायदे और माननीय अदालत-नैनीताल द्वारा याचिका 15, 2009 पर दिए गए निर
अगर दुनिया को बचाना है .........
Posted on 08 Feb, 2009 07:45 AM

तो हिमालय को पेड़ों से ढकें


जागरण – याहू / प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा मानते हैं कि अगर दुनिया को बचाना है तो हिमालय को पूरी तरह पेड़ों से ढकना होगा। पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग के खतरों सहित तमाम मुद्दों पर देहरादून में 'दैनिक जागरण' के मुख्य संवाददाता अतुल बरतरिया ने बहुगुणा से बातचीत की। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-
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