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असुनी गल भरनी गली
Posted on 16 Mar, 2010 02:24 PM
असुनी गल भरनी गली, गलियो जेष्ठा मूर।
पुरबाषाढ़ा धूल कित, उपजै सातो तूर।।


शब्दार्थ – मूर – मूल । तूर – अन्न ।
वर्षा सम्बन्धी कहावतें
Posted on 16 Mar, 2010 01:54 PM

असनी गलिया अन्त विनासै। गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो। कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।


शब्दार्थ- असनी- अश्विनी।
आई बरखा बहार
Posted on 08 Mar, 2010 07:47 AM

छह ऋतुओं का देश है भारत। प्रत्येक ऋतु का अपना अलग ही सौंदर्य है, उसकी अपनी प्राकृतिक पहचान है जिससे प्रभावित होकर कवियों ने अनेक छंद रचे तो चित्रकारों एवं संगीतकारों की भी सदैव प्रेरणा स्त्रोत रही है। छह ऋतुओं के अंतर्गत जो ऋतुएं प्रकृति में स्पष्ट परिवर्तन लातीं है तथा जिनके आगमन से जनमानस आनंदातिरेक के कारण फाग तथा कजरी–जैसे गीत प्रकारों को शब्द–बद्ध एवं स्वरबद्ध करता है, वह हैं – वसंत तथा वर

सरिता संगम-संस्कृति
Posted on 28 Feb, 2010 07:48 AM जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है और जहां वर्षा के आधार पर ही खेती हुआ करती है , उस भूमि को ‘देव मातृक’ कहते है, इसके विपरीत, जो भूमि इस प्रकार वर्षा पर आधार नहीं रखती, बल्कि नदी के पानी से सींची जाती है और निश्चित फसल देती है, उसे ‘नदी मातृक’ कहते हैं। भारतवर्ष में जिन लोगों ने भूमि के इस प्रकार दो हिस्से किए, उन्होंने नदी को कितना महत्व दिया था, यह हम आसानी से समझ सकते है। पंजाब का
बरसाती गीत (भाग 2)
Posted on 27 Feb, 2010 09:28 AM मेवाजी मनावां हम तो आज
मन का तो मंगल जी गावियां
म्हारा राज.... ।।टेक।।

आबां पे चमके है चम-चम बीज
काली ने पिली जी बादलियां
म्हारा राज....... ।।1।।

बरसा हुई है घनघोर
नदी ने नाला जी भरिया
म्हारा राज........।।2।।


बागा में नाचे है ढाढर मोर
मोरनी की मन में जी भावियां
म्हारा राज........।।3।।
बरसाती गीत
Posted on 27 Feb, 2010 08:25 AM पेली पोथी रे बीमा खोली के राखी
दूजली हांता का मांय म्हारा वीरा
आवो म्हारा मेव राजा बरसो नी बरसो
बरसो नी बरसो, बरसो नी बरसो.........आवो

राम लखन जाग्या, जाग्या सीत मरूर
खेड़ा-खेड़ा पे जाग्या हे हनुमान्या
आवो म्हारा मेव राजा बरसो नी बरसो
बरसो नी बरसो, बरसो नी बरसो.........आवो

तमारा बर्स्या से धरती मां निबजे
लोकगीतों में वर्षा
Posted on 25 Feb, 2010 04:48 PM ग्रीष्म के प्रचंड आतप से झुलसती धरा पावसी झड़ी से उल्लसित हो उठती है। गगन में घहराते बादल उमड़-घुमड़ जब झूम-झूम बरसने लगते हैं तो बड़े सुहावने लगते हैं और वनस्पतियों की सृष्टि के कारण बनते हैं। शीतल बयार के झोंके तन-मन को आह्लादित कर जाते हैं। पर्वत, खेत-खलिहान, मैदान जहाँ तक दृष्टि जाती है, प्रकृति धानी परिधान में सुसज्जित दिखाई पड़ती है। नदी-नाले उमड़ पड़ते हैं। ऐसे मनभावने, सुखद-सुहावने, मौसम म
केमिकल न डाल दें होली के रंग में भंग
Posted on 25 Feb, 2010 11:53 AM रंगों के त्योहार होली पर जमकर धमाल करें, पर कलर में मिले केमिकल से रहें सावधान। दिल्ली के ज्यादातर बड़े बाजारों में मिलने वाले फेस्टिव कलर्स में गाढ़े केमिकल कलर के ऑप्शन में सिर्फ चाइनीज रंग-गुलाल ही मौजूद हैं, जिनमें टॉक्सिक की मात्रा होती है।
स्वयं अपने घर पर प्राकृतिक रंग बनायें
Posted on 25 Feb, 2010 11:40 AM होली रंगों का त्योहार है जितने अधिक से अधिक रंग उतना ही आनन्द, लेकिन इस आनन्द को दोगुना भी किया जा सकता है प्राकृतिक रंगों से खेलकर, पर्यावरण मित्र रंगों के उपयोग द्वारा भी होली खेली जा सकती है और यह रंग घर पर ही बनाना एकदम आसान भी है। इन प्राकृतिक रंगों के उपयोग से न सिर्फ़ आपकी त्वचा को कोई खतरा नहीं होगा, परन्तु रासायनिक रंगों के इस्तेमाल न करने से कई प्रकार की बीमारियों से भी बचाव होता है।
वराहमिहिर का उदकार्गल (भाग 3)
Posted on 23 Feb, 2010 05:50 PM स्निग्धा यतः पादपगुल्मवल्लयो निश्छिद्रपत्राश्च ततः शिरास्ति।
पद्मेक्षुरोशीरकुलाः संगुड्राः काशाः कुशा वा नलिका नलो वा।।।100।।

खर्जूरजम्ब्वर्जुनवेतसाः स्युः क्षीरान्विता का द्रुमगुल्मवल्ल्यः।
छत्रेभनागाः शतपत्रनीपाःस्युर्नक्तमालाश्च ससिन्दुवाराः।।101।।

विभीतको वा मदयन्तिका वा यत्राSस्ति तस्मिन् पुरुषत्रयेSम्भः।
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