Posted on 23 Mar, 2010 12:45 PM हरिन फलांगन काकरी, पैगे पैग कपास। जाय कहो किसान से, बोवै घनी उखार।।
शब्दार्थ- उखार-ईख, गन्ना।
भावार्थ- हिरण के एक छलांग की दूरी पर ककड़ी और मनुष्य के कदम-कदम की दूरी पर कपास का बीज बोना चाहिए। घाघ का कहना है कि किसान से जाकर कहो कि ईख को घनी बोवे।
Posted on 23 Mar, 2010 12:41 PM सन घना बन बेगरा, मेढक फन्दे ज्वार। पैर पैर से बाजरा, करै दरिद्रै पार।।
शब्दार्थ- बन-कपास।
भावार्थ- सनई को घनी, कपास को बीड़र अर्थात् दूर-दूर, ज्वार को मेढक की कुदान के फासले पर और बाजरा एक-एक कदम की दूरी पर बोना चाहिए। अगर ऐसी बोवाई हुई तो वह दरिद्रता को दूर कर देती है।
Posted on 23 Mar, 2010 12:37 PM रोहिनी खाट मृगसिरा छउनी। अद्रा आये धान की बोउनी।।
शब्दार्थ- खाट-खटिया, चारपाई। छउनी-छप्पर।
भावार्थ- रोहिणी नक्षत्र में चारपाई बिनना और मृगशिरा नक्षत्र में छप्पर छाना उत्तम माना गया है क्योंकि आर्द्रा नक्षत्र आते ही धान की बोउनी (बुवाई) शुरू करनी पड़ती है।