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बनिया क सखरज
Posted on 25 Mar, 2010 11:46 AM
बनिया क सखरज, ठकुर क हीन, वैद क पूत व्याधि नहिं चीन्ह।
पंडित क चुप चुप, बेसवा मइल, कहै घाघ पाँचों घर गइल।।


शब्दार्थ- सखरज-उदार।
बिन बैलन खेती करै
Posted on 25 Mar, 2010 11:44 AM
बिन बैलन खेती करै, बिन भैयन के रार।
बिन मेहरारू घर करै, चौदह साख लबार।।


शब्दार्थ- साख-पीढ़ी या पुश्त।

भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जो गृहस्थ यह कहता है कि मैं बिना बैलों के खेती करता हूँ; बिना भाइयों की सहायता के दूसरों से झगड़ा करता हूँ और बिना स्त्री के गृहस्थी चलाता हूँ, वह चौदह पुश्तों का झूठा होता है।

बैल चौंकना जोत में
Posted on 25 Mar, 2010 11:42 AM
बैल चौंकना जोत में, औ चमकीली नार।
ये बैरी हैं जान के, कुसल करैं करतार।।


भावार्थ- वह बैल जो हल जोतते समय चौंकता हो और वह स्त्री जो अधिक चमक-दमक कर चलती हो, ये दोनों जान के दुश्मन हैं, जिसके घर में ये दोनों हो, उसकी रक्षा ईश्वर ही करे।

बाध, बिया, बेकहल
Posted on 25 Mar, 2010 11:38 AM
बाध, बिया, बेकहल, बनिक, बारी, बेटा, बैल।
ब्यौहार, बढ़ई, बन बबुर, बात सुनो यह छैल।।

जो बकार बारह बसैं, सो पूरन गिरहस्त।
औरन को सुख दे सदा, आप रहै अलमस्त।।


शब्दार्थ- बाध-चारपाई बुनने के लिए मूँज की बड़ी पतली रस्सी। बेकहल-पटुए या सन की छाल। बारी-बगीचा। ब्योहार-उधार या सूद पर पैसा देने वाला। बन-कपास।
बैल तरकना टूटी नाव
Posted on 25 Mar, 2010 11:36 AM
बैल तरकना टूटी नाव।
ये काहू दिन दैहें दाँव।।


शब्दार्थ- तरकना-भड़कने वाला।

भावार्थ- भड़क जाने वाला बैल और टूटी हुई नाव कभी भी धोखा दे सकती है।

बूढ़ा बैल बेसाहै झीना कपड़ा लेय
Posted on 25 Mar, 2010 11:35 AM
बूढ़ा बैल बेसाहै झीना कपड़ा लेय।
आपन करै नसौनी देवै दूषन देय।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि जो गृहस्थ बूढ़ा बैल खरीदता है, पतला कपड़ा पहनता है, वह नाश तो अपना करता है लेकिन दोष ईश्वर को देता है।

बैल बगौधा निरघिन जोय
Posted on 25 Mar, 2010 11:27 AM
बैल बगौधा निरघिन जोय।
वा घर ओरहन कबहुँ न होय।।


भावार्थ- जिस किसान के पास बगौधा (घन का पाला) बैल हो और फूहड़-घिनौनी सुशीला पत्नी हो, उसके घर उलाहना कभी नहीं आता।

बैल मरकहा चमकुल जोय
Posted on 25 Mar, 2010 10:38 AM
बैल मरकहा चमकुल जोय।
वा घर ओरहन नित उठि होय।।


भावार्थ- जिस किसान का बैल मारने वाला हो और स्त्री चटक-मटक वाली चंचलहो, उसे सदैव उलाहना मिलता है।

बगड़ बिराने जो रहे मानै त्रिया की सीख
Posted on 25 Mar, 2010 10:35 AM
बगड़ बिराने जो रहे मानै त्रिया की सीख।
तीनों यों हीं जायँगे पाही बोवै ईख।।


शब्दार्थ- बगड़-घर।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि दूसरे के घर में रहने वाला, स्त्री के कहने पर चलने वाला और दूसरे गाँव में ईख बोने वाला, तीनों ही व्यक्ति सदैव नुकसान ही उठाते हैं।

फूटे से बहि जातु है
Posted on 25 Mar, 2010 10:33 AM
फूटे से बहि जातु है, ढोल, गँवार, अँगार।
फूटे से बनि जातु हैं, फूट, कपास, अनार।।


शब्दार्थ- बहि-नष्ट होना।

भावार्थ- ढोल, गंवार और अंगार ये तीनों फूटने से नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फूट, (भदईं ककड़ी) कपास और अनार फूटने से बन जाते हैं अर्थात् उनकी कीमत फूटने के बाद ही अच्छी होती है।

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