Posted on 25 Mar, 2010 11:44 AM बिन बैलन खेती करै, बिन भैयन के रार। बिन मेहरारू घर करै, चौदह साख लबार।।
शब्दार्थ- साख-पीढ़ी या पुश्त।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जो गृहस्थ यह कहता है कि मैं बिना बैलों के खेती करता हूँ; बिना भाइयों की सहायता के दूसरों से झगड़ा करता हूँ और बिना स्त्री के गृहस्थी चलाता हूँ, वह चौदह पुश्तों का झूठा होता है।
Posted on 25 Mar, 2010 11:42 AM बैल चौंकना जोत में, औ चमकीली नार। ये बैरी हैं जान के, कुसल करैं करतार।।
भावार्थ- वह बैल जो हल जोतते समय चौंकता हो और वह स्त्री जो अधिक चमक-दमक कर चलती हो, ये दोनों जान के दुश्मन हैं, जिसके घर में ये दोनों हो, उसकी रक्षा ईश्वर ही करे।
Posted on 25 Mar, 2010 10:35 AM बगड़ बिराने जो रहे मानै त्रिया की सीख। तीनों यों हीं जायँगे पाही बोवै ईख।।
शब्दार्थ- बगड़-घर। भावार्थ- घाघ का कहना है कि दूसरे के घर में रहने वाला, स्त्री के कहने पर चलने वाला और दूसरे गाँव में ईख बोने वाला, तीनों ही व्यक्ति सदैव नुकसान ही उठाते हैं।
Posted on 25 Mar, 2010 10:33 AM फूटे से बहि जातु है, ढोल, गँवार, अँगार। फूटे से बनि जातु हैं, फूट, कपास, अनार।।
शब्दार्थ- बहि-नष्ट होना।
भावार्थ- ढोल, गंवार और अंगार ये तीनों फूटने से नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फूट, (भदईं ककड़ी) कपास और अनार फूटने से बन जाते हैं अर्थात् उनकी कीमत फूटने के बाद ही अच्छी होती है।