भारत

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देश बदनाम हुआ
Posted on 28 Sep, 2010 08:20 AM
देश जब बदनाम होता है, डॉर्लिंग, हमारी गंदगी के कारण तो तकलीफ होती है, न?
लोक जीवन में जल
Posted on 23 Sep, 2010 11:50 AM
देश के बहुरंगी सांस्कृतिक परिवेश को एकता का सूत्र जल ही प्रदान करता है। जल की इस शक्ति का अनुभव लोक ने कर लिया था, इसलिए उसका प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान जल के पूजन से प्रारंभ होता है।
प्रकृति में परिवर्तन से बदला मानसून
Posted on 22 Sep, 2010 09:14 AM लगभग 70 करोड़ साल पहले ओर्कयन युग में विश्व के सबसे पुराने अरावली पर्वत का निर्माण हुआ था। अब इस विशाल पर्वत का सिर्फ कठोर पांतरित भाग ही अवशेष के प में बचा हुआ है। डेकन पठार के विस्तार के प में यह दिल्ली तक फैला है और उत्तर भारत के मैदान में जल विभाजक के प.
गायब होते जंगल
Posted on 22 Sep, 2010 08:55 AM जनजातियां हमेशा से जंगलों में रहती हैं। वे लोग जंगलों की पूजा भी करते हैं। यह सच्चाई है कि वे जलावन के लिए कुछ लकड़ियां, कुछ इमारती लकड़ियां और अपने जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था इन जंगलों से करते हैं, लेकिन वे जंगलों को कभी बरबाद नहीं करते। यह तो कुछ लकड़ी व्यापारियों की देन है कि वे अपनी जेब भरने के लिए वन विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मिलीभगत से इन्हें माध्यम बना कर लकड़ियां
सूख जायेगा विशाल जल स्रोत हिमालय
Posted on 22 Sep, 2010 08:43 AM पिछले 20-25 सालों में पूरे देश में वर्षा की मात्रा में कमी आयी है, यद्यपि इस दौरान कुछ इलाकों में चक्रवात के कारण बहुत ज्यादा बारिश हुई है। इसका उदाहरण 1978 में बंगाल की खाड़ी में हुई 29 और 30 सितंबर की 750 मिलीमीटर वर्षा है। बहुत कम या बहुत ज्यादा वर्षा चक्रवात, अवदाब या निम्न दबाव पर निर्भर करता है। इसलिए चक्रवात के कारण हुई बारिश, कृषि को बहुत अधिक लाभ पहुंचाने के बदले बरबादी का कारण बनता है। ल
ज्यादा पैदावार के लालच में अकाल !
Posted on 22 Sep, 2010 08:31 AM वर्तमान में मानसून का अनियमित होना और वर्षा की मात्रा में स्पष्ट कमी, गंभीर समस्या के रूप में सामने है। यह समस्या पूरे देश के जन-जीवन को प्रभावित कर रही है। सिर्फ भारत में ही नहीं ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, सोवियत यूनियन और चीन जैसे देशों में भी यह समस्या बढ़ी है।भारतीय उपमहाद्वीप का बहुत बड़ा हिस्सा उष्णकटिबंधीय है, जो 5 से 30 डिग्री अक्षांश के बीच पड़ता है। जहां वायु की ग्रहीय संचार पद्धति उतर-पूर्वी
संदर्भ राजस्थान: पानी के रास्ते में खड़े हम
Posted on 21 Sep, 2010 02:41 PM मौसम को जानने वाले हमें बताएंगे कि 15-20 वर्षो में एक बार पानी का ज्यादा होना या ज्यादा बरसना प्रकृति के कलेंडर का सहज अंग है। थोड़ी-सी नई पढ़ाई कर चुके, पढ़-लिख गए हम लोग अपने कंप्यूटर, अपने उपग्रह और संवेदनशील मौसम प्रणाली पर इतना ज्यादा भरोसा रखने लगते हैं कि हमें बाकी बातें सूझती ही नहीं हैं। वरूण देवता ने इस बार देश के बहुत-से हिस्से पर और खासकर कम बारिश वाले प्रदेश राजस्थान पर भरपूर कृपा की है। जो विशेषज्ञ मौसम और पानी के अध्ययन से जुड़े हैं, वो हमें बेहतर बता पाएंगे कि इस बार कोई 16 बरस बाद बहुत अच्छी वर्षा हुई है।

हमारे कलेंडर में और प्रकृति के कलेंडर में बहुत अंतर होता है। इस अंतर को न समझ पाने के कारण किसी साल बरसात में हम खुश होते हैं, तो किसी साल बहुत उदास हो जाते हैं। लेकिन प्रकृति ऎसा नहीं सोचती। उसके लिए चार महीने की बरसात एक वर्ष के शेष आठ महीने के हजारों-लाखों छोटी-छोटी बातों पर निर्भर करती है। प्रकृति को इन सब बातों का गुणा-भाग करके अपना फैसला लेना होता है। प्रकृति को ऎसा नहीं लगता, लेकिन हमे जरूर लगता है कि अरे, इस साल पानी कम गिरा या फिर, लो इस साल तो हद से ज्यादा पानी बरस गया।

water rajasthan
...तो हर दिन मनाना होगा ओजोन दिवस
Posted on 16 Sep, 2010 08:43 AM
किसी व्यवस्था में छेद होने से पहले हमारे विचारों में क्षुद्रता आती है और यह क्षुद्रता यदि वैचारिक हो तो इसका अर्थ यह है कि हमारे पतन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।

 

 

ओजोन दिवस 16 सितम्बर पर विशेष


यह सलमान खान का कोई फिल्मी डायलाग नहीं है, सुलगती सच्चाई है और इस सच्चाई का सबब यह है कि आज राजनीति से लेकर समाज, अर्थव्यवस्था और हमारा पर्यावरण, सबकुछ छलनी हो चला है।

सितारों के आगे जहां और भी हैं
Posted on 13 Sep, 2010 03:29 PM

इस साल प्रकृति ने भारत के अधिकांश हिस्से में और दुनिया के कुछ हिस्सों में जो नजारा पेश किया है, वह हैरान करने वाला है। इतनी बारिश हो रही है कि हर कोई चकित है।

संकट में खेती का मित्र मेढक
Posted on 13 Sep, 2010 02:04 PM
मेढ़क एक ऐसा जन्तु है जो प्रतिदिन अपने वजन के बराबर नुकसानदेह कीटों को खा जाता है। यह खेती और मनुष्य का बड़ा अच्छा मित्र है।
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