राष्ट्री य नदी संरक्षण निदेशालय (एनआरसीडी)

मंत्रालय के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय राज्यर सरकारों को सहायता देकर राष्ट्री य झील संरक्षण योजना (एनएलसीपी) एवं राष्ट्री य नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत नदी एवं झील कार्य योजनाओं के क्रियान्वसयन में लगा है।

• एनआरसीपी का उद्देश्यज निर्दिष्टय सर्वोत्तम प्रयोग के स्तार तक प्रदूषण को रोकने के उपायों के क्रियान्व यन के माध्ययम से नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाना है, जो देश में पानी का प्रमुख स्रोत हैं। अब तक कार्यक्रम के तहत 35 नदियों को शामिल किया गया है।
• एनआरसीपी के अंतर्गत किए गए प्रमुख कार्यों में शामिल है : खुले नालों के माध्य म से नदी में बह रहे अशोधित सीवेज को रोकने तथा उनके शोधन के लिए अवरोध एवं विपथन कार्य, विपथित सीवेज के शोधन के लिए सभी सीवेज शोधन संयंत्रों की स्थाेपना, कम लागत से स्व च्छव शौचालयों का निर्माण, लकड़ी का प्रयोग रोकने के लिए विद्युत शवदाह गृहों एवं परिष्कृछत काष्ठा शवदाह गृहों का निर्माण, नदी मुहाना विकास, नदी के तटों पर पेड़ लगाना, सार्वजनिक भागीदारी एवं जागरुकता आदि।
• 663 करोड़ रुपए की अनुमोदित लागत से गंगा कार्य योजना चरण-II (फिलहाल राष्ट्री य नदी संरक्षण योजना का अंग) के तहत 59 कस्बों में कार्य चल रहा है।
• यमुना कार्य योजना चरण-II जो एनआरसीडी का अंग है, के क्रियान्वrयन के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जापान अंतर्राष्ट्रीसय सहयोग बैंक (जेबीआईसी) से 13.33 बिलियन येन की वित्तीय सहायता प्राप्तत की है।
• गोमती कार्य योजना चरण-I के तहत 31 स्वीेकृत योजनाओं में से 26 योजनाएं पूरी हो गई हैं। इस योजना के तहत कुल 42 एमएलडी एसटीपी की क्षमता अब तक सृजित की जा चुकी है।
• गोमती कार्य योजना चरण-I और चरण-II के तहत शामिल गंगा नदी और इसकी सहायक नदियों के अलावा, एनआरसीडी ने 14 अन्यक राज्यों की प्रदूषण नियंत्रण योजनाओं को हाथ में लिया है, जिसके तहत 30 नदियां और 68 कस्बेी शामिल हैं।
• प्रदूषण नियंत्रण अनुसंधान संस्थाेन (हरिद्वार), सीपीसीबी आधारित कार्यालय, लखनऊ, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थाधन, कानपुर, पटना विश्वीविद्यालय और बिधान चन्द्र कृषि विश्वयविद्यालय, कल्या णी जैसी संस्था ओं के माध्यीम से उत्तराखंड में ऋषिकेश से पश्चि म बंगाल में उलूबेरिया तक 27 स्था नों पर गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है। गंगा कार्य योजना के तहत पूरी की गई परियोजनाओं के फलस्वगरूप नदी के तटों के किनारे जनसंख्याो में भारी वृद्धि के बावजूद गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में आमतौर पर सुधार हुआ है।
• यमुना, पश्चिनमी यमुना नहर, गोमती, हिण्डकन, सतलुज (पंजाब), कावेरी (तमिलनाडु), कर्नाटक में तुंगभद्रा के जलमार्गों की भी जल गुणवत्ता मॉनीटरिंग की गई है। इस समय मॉनीटरिंग केंद्रों की संख्याा 10 नदियों पर 158 है, जिसमें गंगा पर स्थासपित 27 केंद्र और चेन्नरई जलमार्गों के 32 केंद्र शामिल हैं।
• 632.62 करोड़ रुपए की कुल अनुमानित लागत से 13 राज्यों में 49 झीलों के संरक्षण की कुल 33 परियोजनाएं स्वीुकृत की गई। अब तक 11 झीलों का संरक्षण कार्य पूरा हो गया है, जबकि कुछ मामलों में परियोजना क्रियान्वबयन का कार्य पूरा होने के अंतिम चरण में है (फरवरी, 2002 से) एनएलसीपी के तहत केंद्र सरकार और राज्यं सरकारों 70:30 के अनुपात से खर्च वहन करेंगी।
• 28 अक्तूेबर से 02 नवंबर, 2007 तक जयपुर, राजस्थारन में मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्री य झील पर्यावरण समिति (आईएलईसी) फाउंडेशन के तत्त्वावधान में 12 वें विश्वा झील सम्मे्लन का आयोजन किया गया, जो एक द्विवार्षिक कार्यक्रम है। राजस्थाेन सरकार 24 बड़े कार्यक्रम के लिए सह-आयोजक थी। सम्मे लनों का मुख्यथ विषय भविष्यं के लिए झीलों एवं जल-भूमि का संरक्षण था। अन्यम मुख्यक उद्देश्यों में विभिन्ने देशों द्वारा अपनाई गई विभिन्नर परिस्थिहतियों में जीर्णोद्धार के लिए झीलों एवं जल-भूमियों से संबंधित मुद्दों की पहचान शामिल हैं।
• राजस्था न के राज्यbपाल एवं मुख्यदमंत्री सहित अन्यज गणमान्यो वयक्तितयों की मौजूदगी में 29 अक्तूाबर, 2007 को भारत की माननीय राष्ट्रशपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा सम्मेालनों का उद्घाटन किया गया। सम्मेरलन की विषय-वस्तु् से संबंधित अपने अध्यियनों पर मौखिक अथवा पोस्टकर के माध्यसम से प्रस्तुितियों के साथ विश्वे के विभिन्नल भागों से लगभग 150 विदेशी शिष्टटमंडलों सहित तकरीबन 600 शिष्टुमंडलों ने सम्मे लन में भाग लिया। सम्मे लन समापन सत्र में जयपुर घोषणा को अपनाया गया।

राष्ट्री य दलदली भूमि संरक्षण कार्यक्रम


देश में दलदली भूमि (वेटलैंड) के संरक्षण एवं प्रबंधन से संबंधित कार्यक्रमों के क्रियान्व यन हेतु नीतिगत दिशा-निर्देश तैयार करने, गहन संरक्षण उपायों के लिए प्राथमिकता वाली जल-भूमियों के संरक्षण, अनुसंधान एवं अनुसंधान कार्यक्रम के क्रियान्वउयन की निगरानी करने और भारत में दलदली भूमि की सूची तैयार करने के लिए 1987 में जल-भूमि संरक्षण और प्रबंधन की योजना शुरू की गई।

• जल-भूमि संरक्षण कार्यक्रम के तहत दलदली भूमि की संख्याभ 2004 के 27 से बढ़कर 2005 में 71 और फिर जनवरी, 2008 में 103 हो गई।
• 02 फरवरी, 2007 को 'राष्ट्री य जल-भूमि संरक्षण: दृष्टिजकोण एवं दिशा-निर्देश' नाम से पुस्तिीका जारी की गई, जो अब प्रकाशित हो चुकी है तथा सभी प्रयोक्तक एजेंसियों को भेजी जा चुकी है।
• 36 जल-भूमियों की प्रबंध कार्य योजनाएं अनुमोदित हो गई हैं तथा वित्तीय सहायता स्वी3कृत की गई है। नई अभिचिह्नित दलदली भूमियों के लिए 10 और प्रबंधन कार्य योजनाओं के मामलों को उठाया जा रहा है।
• अभी तक रामसर साइट सहित 25 साइट की पहचान की गई है।
• वेटलैंड इंटरनेशनल के निदेशक मंडल ने भारत को मनोनित किया है तथा भारत के अनुरोध पर वेटलैंड इंटरनेशनल के निदेशक मंडल की बैठक 19-20 अक्तूेबर, 2005 को मानेसर, नई दिल्लीे में हुई, इसमें तकरीबन 23 देशों ने भाग लिया। भारत ने एक सत्र की अध्यसक्षता की तथा सभी प्रतिभागी देशों ने जल-भूमि संरक्षण में भारत के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

स्रोत: राष्ट्रीय पोर्टल विषयवस्तुम प्रबंधन दल, द्वारा समीक्षित

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