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हिमाचल प्रदेश में ट्राउट का उत्पादन
Posted on 11 Dec, 2010 11:41 AM हिमाचल प्रदेश के ज़ोन दो और तीन में अत्यधिक बहुमूल्य मछली 'रेनबो ट्राउट' की पैदावार के लिए विशाल क्षमता है। इन दो क्षेत्रों के तहत कृषि के लिए मौसमी परिस्थितियां शीतजलीय कृषि के लिए बेहद अनुकूल हैं। हाल ही में मिले संकेत इंगित करते हैं कि ट्राउट कम ऊंचाई पर 1000 m एमएसएल तक पैदा की जा सकती है, बशर्ते जल की अधिकतम गुणवत्ता और मात्रा सुनिश्चित की जाए।

साइट का चयन

छिड़काव सिंचाई प्रणाली
Posted on 11 Dec, 2010 11:05 AM छिड़काव सिंचाई, पानी सिंचाई की एक विधि है, जो वर्षा के समान है। पानी पाइप तंत्र के माध्यम से आमतौर पर पम्पिंग द्वारा वितरित किया जाता है। वह फिर स्प्रे हेड के माध्यम से हवा और पूरी मिट्टी की सतह पर छिड़का जाता है जिससे पानी भूमि पर गिरने वाला पानी छोटी बूँदों में बंट जाता है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली
Posted on 11 Dec, 2010 10:44 AM ड्रिप सिंचाई प्रणाली फसल को मुख्यश पंक्ति, उप पंक्ति तथा पार्श्व पंक्ति के तंत्र के उनकी लंबाईयों के अंतराल के साथ उत्सर्जन बिन्दु का उपयोग करके पानी वितरित करती है। प्रत्येक ड्रिपर/उत्सार्जक, मुहाना संयत, पानी व पोषक तत्वों तथा अन्यक वृद्धि के लिये आवश्यहक पद्धार्थों की विधिपूर्वक नियंत्रित कर एक समान निर्धारित मात्रा, सीधे पौधे की जड़ों में आपूर्ति करता है।
मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी का गड़बड़झाला
Posted on 10 Dec, 2010 10:04 AM क्या मनरेगा को जस का तस छोड़ा जा सकता है? मनरेगा के मामले में नागरिक-संगठन आखिर इतना हल्ला किस बात पर मचा रहे हैं? क्या ग्रामीण इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता बहुत ज्यादा की मांग कर रहे हैं? क्या यूपीए- II वह सारा कुछ वापस लेने पर तुली है जो यूपीए- I ने चुनावों से पहले दिया था?
कहीं समाप्त न हो जाएं समुद्र में रहने वाले कोरल रीफ
Posted on 10 Dec, 2010 09:59 AM मौसम परिवर्तन का नकारात्मक असर सिर्फ धरती पर रहने वाले जीवों पर नहीं पड़ रहा है, बल्कि समुद्र के अंदर यहां तक नीचे रहने वाले कोरल रीफ पर भी पड़ रहा है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि मौसम परिवर्तन के कारण कोरल रीफ धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक समुद्र के नीचे भी प्रदूषण पहुंच रहा है। साथ ही वहां भी पानी धीरे-धीरे गर्म हो रहा है। इन कारणों से समुद्री रीफ के अस्तित्व को खतरा उत्
नरेगा भर सकता है भू-जल भंडार
Posted on 09 Dec, 2010 03:17 PM आज जल संकट का कारण वर्षा जल को बदलते हालात में संरक्षण के लिये राज-समाज और संगठन अपनी भूमिका भूल गये है। आवश्यकता है कि जहाँ जितनी जल वर्षा हो उसे वहीं समाने हेतु जंगल और धरती की हरियाली बढ़ाने हेतु जोहड़ बनायें । इस कार्य में सबकी भूमिका समान है । राज तो नीति नियम बनाये, जमीन और काम के लिए साधन दे और समाज श्रम दें । जल की एक अच्छी सरकारी नीति बने तभी यह संभव है । यह नीति गांव से लेकर नदी घाटी स्
बाढ़-सूखे की चपेट में मानव जीवन
Posted on 09 Dec, 2010 02:47 PM आज देश का अधिकांश भाग-सूखा-अकाल की चपेट में है । देश का बड़ा भाग जहां एक ओर सूखाग्रस्त है, वहीं दूसरी ओर कुछ भाग में बाढ़ एवं तूफान ने तबाही मचाई हुई है । विशेषज्ञों का मत है कि किसी भी भू-भाग का पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए कम से कम एक तिहाई भू-भाग पर वन होने चाहिए । पहाड़ी क्षेत्र में तो ६० प्रतिशत भू-भाग पर ही जंगल हैं । वैज्ञानिकों का मत है कि जिस क्षेत्र का वन क्षेत्र १० प्रतिशत से कम
घरेलू प्रदूषक
Posted on 09 Dec, 2010 02:26 PM आज हर समझदार व्यक्ति प्रदूषण को रोकने के लिए जागरूक है । सभी शिक्षित यह जानते हैं कि प्रदूषण क्या है और इस समस्या का निदान कैसे पाया जा सकता है । आमतौर पर हम लोगों को प्रदूषण के नाम पर दौड़ती मोटर गाड़ियाँ और बड़े- बड़े कारखानों से निकलते धुएँ और जहरीले रसायन की याद आती है परंतु यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि हमारे घरों से भी अनेक प्रकार का प्रदूषण पाया जाता है । घरों में स्नानागार और शौचालय की स
पेड़, हमारे प्राणदाता
Posted on 09 Dec, 2010 02:02 PM पेड हमारे प्राण हैं क्योंकि पेड़ ही हमें प्राणवायु प्रदान करते हैं । सघन वनों को हमारी धरती के फेंफड़े कहा जाता है । क्योंकि वन ही वायु के शोधक होते हैं । पेड़ ही तो है जो हमें जीवन देते हैं । फिर क्यों हम इन मूक परमार्थी पेड़ों को काट डालते हैं और विरोध भी नहीं करते । आखिर कब तक हम लोग अपने विनाश का कारण स्वयं बनते रहेंगे ?
भूमि प्रदूषण : संरक्षण एवं नियंत्रण (Soil Pollution: Conservation and Control)
Posted on 09 Dec, 2010 01:34 PM
भूमि पर्यावरण की आधारभूत इकाई होती है । यह एक स्थिर इकाई होने के नाते इसकी वृद्धि में बढ़ोत्तरी नहीं की जा सकती हैं । बड़े पैमाने पर हुए औद्योगीकरण एंव नगरीकरण ने नगरों में बढ़ती जनसंख्या एवं निकलने वाले द्रव एंव ठोस अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी को प्रदूषित कर रहें हैं । ठोस कचरे के कारण आज भूमि में प्रदूषण अधिक फैल रहा है । ठोस कचरा प्राय: घरों, मवेशी-गृहों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से
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