नरेगा भर सकता है भू-जल भंडार

आज जल संकट का कारण वर्षा जल को बदलते हालात में संरक्षण के लिये राज-समाज और संगठन अपनी भूमिका भूल गये है। आवश्यकता है कि जहाँ जितनी जल वर्षा हो उसे वहीं समाने हेतु जंगल और धरती की हरियाली बढ़ाने हेतु जोहड़ बनायें । इस कार्य में सबकी भूमिका समान है । राज तो नीति नियम बनाये, जमीन और काम के लिए साधन दे और समाज श्रम दें । जल की एक अच्छी सरकारी नीति बने तभी यह संभव है । यह नीति गांव से लेकर नदी घाटी स्तर तक बनाई जाए । आवश्यकता है कि जन-जल जोड़ो आंदोलन देशव्यापी बने । जल को समझने, सजेहने वाले संगठन बने । यही संगठन जल की लूट और जल वाष्पीकरण के विरूद्ध सत्याग्रह करके बाढ़-सुखाड़ मुक्ति हेतु नीति-नियम बनाएं । पूरे देश में सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन का कार्य शुरू करके पूरी धरती को नम, जीवाश्मी और हरी-भरी बनाकर धरती की गर्मी और मौसम का मिजाज स्थानीय स्तर पर ही ठीक किया जा सकता है ।

इसी रास्ते से गरीब की गरीबी, लाचारी, बेकारी और बीमारी भी रोकी जा सकती है । तभी सभी के लिए शुद्ध पेयजल एवं खाद्य पूर्ति सुनिश्चित होगी । सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन ही जल संकट का समाधान है । आज भाखडा नांगल बांध में पानी नहीं रहा । मुम्बई में पेयजल पूर्ति हेतु जल राशनिंग समाधान मान लिया गया है । कर्नाटक जल संकट तो सुखाड़ के विस्तार में प्रथम स्थान पर आ गया है । बिहार में बाढ़ का समय और क्षेत्रफल का विस्तार चार गुना बढ़ गया है । महाराष्ट्र जो सबसे ज्यादा बांधों वाला प्रदेश है अपने गांवों को टैंकर से पानी पिला रहा है । यही हालात तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश के मालवा और उत्तरप्रदेश के बुन्देलखंड में भी है । देश में धरती का बढ़ता नंगापन और सूखती नदियों का कारण वैश्विक मौसम का बिगड़ता मिजाज और गर्माती धरती बताया जा रहा है । यह सब सरकारें अपने आपको बचाने की कोशिश में कर रही हैं । इस तरह ब्रहमाण्ड का धधकना और मौसम के मिजाज के बिगड़ने का आधार वैश्वीकरण और बाजारीकरण तथा ताकतवर देशों का क्योटो-प्रोटोकॉल को नहीं मानना भी है ।

कुछ राज्य सरकारों को भी इसी बहाने से न्यायोचित ठहरा कर स्वयं को बचा रहीं है । लेकिन इस समस्या को स्थाई और स्थानीय समाधान ढूंढने की कोशिश नहीं की जा रही है । कई जगह पानी का झगड़ा मिटाने हेतु पुलिस कारगर नहीं हुई तो सेना बुलानी पड़ती है । जल विवादों की जड़ें फैलती जा रही है । गांव और शहरों की खेती और पेयजल प्राथमिकता का विवाद है । सिंचाई प्रथम प्राथमिकता हो या उद्योग इस भ्रम को भी मिटाना होगा । बाढ़-सुखाड़ मिटाने के उद्देश्य से नदी-जोड़ योजना की बात शुरू हुई थी । यह बात पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने जोर देकर कही थी । तभी मैंने कहा था, बाढ़-सुखाड़ का इलाज नदी-जोड़ नहीं है । नदियों से समाज को जोड़कर विकेन्द्रित सामुदायिक जल प्रबंधन के जरिये समाज को नदियों से जोड़ने की जरूरत है । नदियों से समाज को जोड़ने का बड़ा सम्पूर्ण भारत में सभी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में सूक्ष्म जल ग्रहण विकास योजना चलाकर करना चाहिए । यह कार्य अब नरेगा से भी किया जा सकता है । भारत सरकार और राज्य सरकारों को दूर-दृष्टि से काम करने की जरूरत है। नदी संरक्षण हेतु नीति बने । हमारे शिक्षण पाठ्यक्रम में नदियों के मरने-सूखने से हमारी जीवन और खासकर सेहत पर पड़ने वाले बुरे असर बच्चें को भी समझाये जाएं ।

राजस्थान में समाज ने सात नदियां जीवित की हैं वैसे ही देश की सभी नदियां शुद्ध-सदानीरा बनाई जा सकती हैं। लेकिन इस हेतु एक अच्छी नदी नीति और कानून की जरूरत है । इस कार्य हेतु स्वैचिछक संस्थाओं, राज्य सरकारों तथा भारत सरकार और समाज की भूमिका निर्धारित हो । विद्यालय से विश्वविद्यालय तक की शिक्षा में इसे शामिल किया जाना जरूरी बने । हमारे संविधान में पानी प्रकृति प्रदत्त जीवन का मौलिक हक है । इस हेतु सबको पानी उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है । जो सबकों शुद्ध पानी पिलाकर जीवित रखेगा उसे ही सरकार बनाने और चलाने का हक है । इस हेतु स्वैच्छिक संस्थाओं और मीडिया की जिम्मेदारी सामुदायिक घटकों को प्रेरित करके पानी प्रबंधन में जन-जन को लगाना है । समाज जल -संरचना का निर्माण ही नहीं बल्कि रख-रखाव भी करे । मीडिया की बात सामने आते ही लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी याद आते है । उन्होने समाज को खड़ा कर दिया और आजादी दिला दी । आज जल आपूर्ति गुलामी से बड़ा संकट है ।

इससे मुक्ति दिलाने हेतु पानी की समझ विकसित कराने में मीडिया और स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका बनती है । जल पर अतिक्रमण, जल प्रदूषण और भूजल शोषण रोकना तो सरकारी प्राथमिकताओं में आज सबसे पहला काम बनता है । इस मामले में सरकार उच्च्तम् न्यायालय के निर्णय की भी अवमानना कर रही है । उच्च्तम न्यायालय ने वर्ष २००१ में सरकार से कहा था कि सभी जल संरचनाओं के कब्जे हटाकर उन्हें आजादी के समय जैसी हालत में लाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ । आज भी दिल्ली शहर के पटपड़गंज के तालाब बचाने हेतु लोग लड़ रहे हैं । लेकिन सरकार बेफिक्र है । एक तरफ सरकार की बयानबाजी है कि दिल्ली के सभी तालाब कब्जा मुक्त करा दिये हैं । दूसरी तरफ तालाबों को अभी भी सीमेन्ट कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा रहा है । इसके विरूद्ध देशभर में गरीब जिनका जीवन तालाबों पर टिका है, वे आज इन्हें कब्जा मुक्त कराने हेतु दबी आवाज में जूझ रहे हैं ।

हमारी परम्परागत जल संरचनाओं ने भूजल से भंडार भरकर रखे थे । आज जब हमारी परम्परागत जल संरचनायें नष्ट हो गई तो भूजल के भण्डार भी खाली हो गये हैं । पुनर्भरण रूक गया है, और भूजल शोषण बेतहाशा बढ़ रहा है । आज दो तिहाई भूजल भण्डार खाली है इस पर भी संसद और विधानसभाएं मौन है । देश को पानीदार बनाना अब अनिवार्य है । यह सरकार की प्राथमिकता बननी चाहिए । राज-समाज जल के महत्त्व को समझे । वर्षा जल को सहेजकर अनुशासित उपयोग के कायदे-कानून बनाएं। आवश्यक है कि नरेगा का पैसा जल संरक्षण पर खर्च किया जाए । समाज इसमें नदी के उपरी छोर से जुड़कर समुद्र तक जुड़ा रहे । नरेगा कानून ही नीर-नारी और नदी को जोड़ सकता है । इसी से एक तरफ बेरोजगारी दूर होगी, भूमि में नमी बढ़ेगी, दूसरी तरफ जल, अन्न पूर्ति सुनिश्चित होकर हमारे समाज की लाचारी -बीमारी और बेकारी मिटेगी । इसलिए नरेगा को नीर और नमी की योजना मानकर लागू करना चाहिए ।

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