Posted on 04 Jun, 2011 08:54 AMपानी को दुख हैः कि दिनोंदिन घट रही है उसकी शीतलता कि कीचड़-कचरा से फूल रही है उसकी साँस कि नदियों में भी बहती है पानी से अधिक दुर्गंध
पृथ्वी की नाडि़यों में कितनी पुलक से दौड़ता था वह। लेकिन अब तो मशीनें खीचें ले रही हैं उसे दिनरात!
पानी को दुख हैः कि उसका पानीपन सूख रहा है कि उसकी तरलता पर नहीं रही अब उसकी पकड़
Posted on 30 May, 2011 11:23 AMग्यारह साल पहले यानी 2000 में सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तय किए गए तो पूरी दुनिया ने इसका स्वागत किया। कहा गया कि बुनियादी समस्याओं के समाधान की राह में अहम कदम उठा लिया गया है। तकरीबन डेढ़ सौ देशों की सहभागिता वाले इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दुनिया के स्तर पर काफी पैसे भी जुटाए गए। तय हुआ कि ये आठ लक्ष्य 2015 तक पूरे कर लिए जाएंगे। अब महज चार साल ही बचे हैं। ऐसे में इन लक्ष्यों को पाने को लेकर संदेह गहराता जा रहा है। न लक्ष्यों को पाने की दिशा में अपेक्षित प्रगति नहीं होने के लिए विकासशील देशों के रवैए के साथ-साथ विकसित देशों की वादाखिलाफी को भी जिम्मेदार माना जा रहा है।