Posted on 01 Jul, 2011 10:17 AMदेखो न बड़ी झील! वह अल्हड़ मछली मेरी ही आँखों के सामने पी गयी है पूरा एक जल-गीत और गीत के लय की मेरे भीतर लहर उठ रही है लगातार
समझाओ न उसे बड़ी झील! मानुस की भाषा में न तैरा करे वह इस तरह नहीं तो भाषा के शिकारी मार खायेंगे उसे भी एक दिन!
Posted on 25 Jun, 2011 09:35 AMये माना कि घर में रोटी नहीं थी पहाड़ ये जमी तोड़ी फोड़ी नहीं थी।
विद-बिद चला, जमी बिकती नहीं थी महफूज जंगल, गाड़ा भीड़ा छी धारे थे नौले थे, बहती नदी थी हरयाली खेतों से, गौ का चमन छी। ये माना कि........................।
स्कूल में मास्टर, हांग में हलिया ठांगर में लकदक, लगुली चढी थी हिसालु-किलमोड़ी, स्योंते गुदा कैं
Posted on 24 Jun, 2011 10:10 AMनदियों का किसने ये सौदा किया है मेरे घरों में छापा पड़ा है। दो कट्टा बजरी, रेता मिला है टूटे दरख्तों का पट्टा मिला है।
वी.पी.एल चावल, आटा, रूपया अणतीस का चैक-सूखा राहत मिला है, उँचे डैमौ ने रूलाया बहुत जो पूरा शहर यूँ, डूबा पड़ा है बेड़ी बॅधे हैं, झोपड़ी वाले, भेडि़या सारे खुले पड़े हैं। नदियों का किसने ये - -।
Posted on 24 Jun, 2011 09:38 AMबड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललकदिन भर का थका-हारा सूरज तुम्हारे पश्चिमांचल में आकर डूब गया बड़ी झील खूबसूरत सनसेट देखने के लिए उमड़े लोग लौटने लगे हैं अपने-अपने घर इतनी दूर से भी कितना सुन्दर दिख रहा है तुम्हारा कुंकुम-किलकित-भाल
सन्ध्या-सुन्दरी तुम्हारे जल का आचमन कर धीरे-धीरे शहर पर उतर रही है