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उसे भी एक दिन
Posted on 01 Jul, 2011 10:17 AM देखो न बड़ी झील!
वह अल्हड़ मछली
मेरी ही आँखों के सामने
पी गयी है पूरा एक जल-गीत
और गीत के लय की
मेरे भीतर लहर उठ रही है लगातार

समझाओ न उसे बड़ी झील!
मानुस की भाषा में
न तैरा करे वह इस तरह
नहीं तो भाषा के शिकारी
मार खायेंगे उसे भी एक दिन!

संग-साथ
Posted on 30 Jun, 2011 09:35 AM बड़ी झील!
तुम्हारे आँगन में
हवा और पानी साथ खेल रहे हैं
हवा के अलंकार से श्रृंगार करतीं लहरें
खुशी से उछल रही हैं

सावन आ गया है
मौसम की मस्ती देखते हुए
हमारे भीतर भी
उमंग की- उल्लास की
हिलोरें उठ रही हैं

झुकी बदलियों के चेहरों पर
खुशी की लहर दौड़ रही है

किनारों पर भीगते
एक-दूसरे से सटे हुए प्रेमी युगल
पानी प्यार है
Posted on 29 Jun, 2011 09:18 AM पानी प्यार है
पृथ्वी के लिए

झील
प्यार के लिए
खूबसूरत बस्ती है

कश्ती कहाँ है
चलो मझधार में
मीठे गीत गा-गा कर
हम पानी का मन बहलाते हैं

झील एक शब्द
Posted on 29 Jun, 2011 09:10 AM झील
लहराता हुआ
एक शब्द
कि जिसे देखकर
कविता के मुँह में
पानी आ जाय

लहर ऐसी
कि कविता में
कहानी आ जाय
और कहानी में
कविता छा जाय

झील लहराता हुआ
एक शब्द
सहेजे हुए

कविता में पानी
और पंक्तियों के बीच
सँवारे हुए प्यास
पानी की

कवित्व जगमगाता है!
Posted on 28 Jun, 2011 10:05 AM मैं निषेध हूँ
एक शिला का
(दरअसल जो कि समय है!)

जितना बह जाता हूँ
उतना रह जाता हूँ
पत्थर होने से

अवाक प्रार्थना में
मेरा भी मौन है

बड़ी झील! तुम्हारी पानी-धुली
आवाज़ में
मेरी भी जुबान का
अँजोर है
(मद्धम ही सही)

मेरे ख़याल में
पानी का
कवित्व जगमगाता है!

पंक्तिबद्ध
Posted on 25 Jun, 2011 09:41 AM झील की झलमल देह
आसमान की आत्मा राँजती है

झील को देखते-देखते
हमारी खुरदुरी आँखें
हो जाती हैं नम्र और मुलायम

झील को विहंगम निहारते
हम सुंदरता का एक पूरा कैनवास
हृदयंगम कर लेते हैं

झील के पास आ-आ कर
झील को सुनते हुए
मैं अपना खो गया संगीत
खोजता हूँ

बहना निहारते-निहारते मैं
पानी का सस्वर पाठ करता हूँ
विरासत
Posted on 25 Jun, 2011 09:35 AM ये माना कि घर में रोटी नहीं थी
पहाड़ ये जमी तोड़ी फोड़ी नहीं थी।

विद-बिद चला, जमी बिकती नहीं थी
महफूज जंगल, गाड़ा भीड़ा छी
धारे थे नौले थे, बहती नदी थी
हरयाली खेतों से, गौ का चमन छी।
ये माना कि........................।

स्कूल में मास्टर, हांग में हलिया
ठांगर में लकदक, लगुली चढी थी
हिसालु-किलमोड़ी, स्योंते गुदा कैं
पानी पर बतख
Posted on 25 Jun, 2011 09:12 AM पानी पर बतख
सुन्दरता
तैर रहे हैं

पार नहीं होना है
अपने कुटुम्ब के साथ घूमना-फिरना है
रोजी-रोटी जुटाना है
और झील का मन बहलाना है

मादा नर को रिझा रही है
और नर मादा पर प्यार बरसा रहा है

पानी पर बतख सुन्दरता तैर रहे हैं

झील लहरों की रस्सी से
आसमान झूल रही है
पानी तरलता के रियाज़ में है!

नदियों का सौदा
Posted on 24 Jun, 2011 10:10 AM नदियों का किसने ये सौदा किया है
मेरे घरों में छापा पड़ा है।
दो कट्टा बजरी, रेता मिला है
टूटे दरख्तों का पट्टा मिला है।

वी.पी.एल चावल, आटा, रूपया
अणतीस का चैक-सूखा राहत मिला है,
उँचे डैमौ ने रूलाया बहुत जो
पूरा शहर यूँ, डूबा पड़ा है
बेड़ी बॅधे हैं, झोपड़ी वाले,
भेडि़या सारे खुले पड़े हैं।
नदियों का किसने ये - -।
बड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललक
Posted on 24 Jun, 2011 09:38 AM बड़ी झील: तुम्हारी लहरों की ललकदिन भर का थका-हारा सूरज
तुम्हारे पश्चिमांचल में आकर डूब गया बड़ी झील
खूबसूरत सनसेट देखने के लिए उमड़े लोग
लौटने लगे हैं अपने-अपने घर
इतनी दूर से भी कितना सुन्दर दिख रहा है
तुम्हारा कुंकुम-किलकित-भाल

सन्ध्या-सुन्दरी
तुम्हारे जल का आचमन कर
धीरे-धीरे शहर पर
उतर रही है

बड़ी झील!
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