संग-साथ

बड़ी झील!
तुम्हारे आँगन में
हवा और पानी साथ खेल रहे हैं
हवा के अलंकार से श्रृंगार करतीं लहरें
खुशी से उछल रही हैं

सावन आ गया है
मौसम की मस्ती देखते हुए
हमारे भीतर भी
उमंग की- उल्लास की
हिलोरें उठ रही हैं

झुकी बदलियों के चेहरों पर
खुशी की लहर दौड़ रही है

किनारों पर भीगते
एक-दूसरे से सटे हुए प्रेमी युगल
प्रेम कविताओं के शब्दों में
अपनी साँसों की खुशबू
और आँच भर रहे हैं
और उनकी इच्छाएँ आग चीख रही हैं

देख लेना बड़ी झील!
कल बदलियों से
उनके प्रेम का शेषांश
बरसेगा
प्रथम नागरिक

हमारे भोपाल की प्रथम नागरिक हो तुम
बड़ी झील!
सब की श्रद्धेय
सब की माननीय

दुख-सुख में
सब तुम्हारे पास आते हैं
बड़ी झील!
यहाँ भोपाल में तुम
सबसे सयानी जो हो

तुम्हारी ही सत्ता है यहाँ
चिर नवीन!
युग-युगीन

इसीलिए तो-
यहाँ जो बोलता-बतियाता है
गाता है-गपियाता है
सब में
तुम्हारे आब की खुशबू दिखती है।

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