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क्या आप जानते हैं, सिंचाई योजनाओं की भी गणना होती है?
Posted on 05 Jan, 2010 04:48 PM


हमारे देश में जिस तरह आबादी की गणना होती है उसी तरह जल संसाधनों की क्षमता की भी गणना होती है? जब भी मध्यम व बड़ी सिंचाई परियोजनाएं तैयार होती हैं तब उनकी क्षमता को उपलब्ध सिंचाई क्षमता में जोड़कर रिकार्ड को अद्यतन कर लिया जाता है। इस तरह ये आंकड़े केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सालाना रिपोर्ट में जारी होते रहते हैं। लेकिन लघु एवं सूक्ष्म परियोजनाओं की सिंचाई क्षमता का नियमित रिकार्ड रख पाना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि कुएं, नलकूप तलाब आदि स्रोत संस्थागत या निजी तौर पर नियमित बनते रहते हैं। ऐसे में एक नियमित अंतराल के बाद लघु सिंचाई योजनाओं (Minor Irrigation Schemes)

ग्रामीण उद्यम
Posted on 31 Dec, 2009 07:32 PM

सिंचाई को ग्रामीण उद्यम बनाने के प्रयास में यहां इंटरनेशनल डेवलपमेंट इंटरप्राइजेज (आईडीई) ने रास्ता दिखाया है। अब किसान एक कदम आगे बढ़कर ऐसे नए-नए नमूने तैयार कर रहे हैं, जिनसे स्थानीय स्तर की ड्रिप व्यवस्था और भी ज्यादा सस्ती और सरल होती जा रही है। वे खुद ही इस व्यवस्था को लगा रहे हैं। और जल्दी ही एक ऐसी अवस्था में पहुंच रहे हैं, जहां वे इससे बड़े आराम से काम निकाल सकते हैं। इसके अलावा अब वे इ

ड्रिप सिंचाई प्रणाली: एक क्रांति का सूत्रपात
Posted on 31 Dec, 2009 07:28 PM

आज भारत में फसलों की सिंचाई, उद्योग, आवास और बढ़ती जनसंख्या के कारण जल, जंगल और जमीन भारी दबाव में है। सन् 1955 में जहां प्रति व्यक्ति 5,000 घन मीटर पानी की वार्षिक उपलब्धता थी, वहीं सन् 2000 तक आते-आते 2,000 घन मीटर ही रह गई।

Drip irrigation
गरीब ही क्यों धकेले जाएं
Posted on 30 Dec, 2009 03:16 PM माना की भारत सरकार ड्रिप सिंचाई व्यवस्था को आगे बढ़ा रही है, लेकिन हकीकत में तो इससे बड़े उद्योग ही फल-फूल रहे है। और छोटे किसान पीछे धकेल दिए गए हैं।
निर्भर नहीं, आत्मनिर्भर !
Posted on 27 Dec, 2009 07:11 PM सामाजिक पुनरुत्थान का काम करने वालों या लोक सेवकों के बगैर नरेगा को एक ऐसी योजना में तब्दील करना मुश्किल है, जहां मांग के अनुरूप कार्य हो। वरना अभी जो ऊपर से थोपी गई कार्यप्रणाली चल रही है, वही बिना किसी जांच-परख के चलती रहेगी। पंचायत राज संस्थाओं को तकनीकी रूप से मजबूत बनाए बगैर ठेकेदारों को पिछले दरवाजे से घुसने से रोका नहीं जा सकेगा।राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) क्रांतिकारी जनपक्षधर विकास कार्यक्रमों का वायदा करती है। ग्राम सभा और ग्राम पंचायतों द्वारा उसकी योजना, क्रियान्वयन और जांच-परख से हजारों स्थायी रोजगार पैदा हो सकते हैं। लेकिन नरेगा की लड़ाई बरसों से चले आ रहे एक बुरे अतीत के साथ है। पिछले साठ सालों से ग्रामीण विकास की योजनाएं राज्य की इच्छा और सदाशयता पर ही निर्भर रही हैं। श्रमिकों को दरकिनार करने वाली मशीनों और ठेकेदारों को काम पर लगाते हुए इन योजनाओं को ऊपर से नीचे के क्रम में लागू किया गया, जो बुनियादी मानवाधिकारों का भी उल्लंघन था।

इन सबको बदलने के लिए ही नरेगा की शुरुआत हुई और इसमें कोई शक नहीं है कि नरेगा के वायदों ने भारत के गांवों में रहने वाले निर्धन लोगों के हृदय और दिमागों को बहुत सारी उम्मीद और अपेक्षाओं से रोशन किया है। लेकिन इस योजना के शुरू के तीन वर्षो से
बांधो की सुरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून बनाने की पहल
Posted on 25 Dec, 2009 11:35 PM  * बिपिन चन्द्र चतुर्वेदी 

 

केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार भारत में कुल 4500 से ज्यादा बड़े बांध हैं। इसके अलावा 700 से ज्यादा बड़े बांध प्रस्तावित या निर्माणाधीन हैं। विश्व बांध आयोग के अनुसार बड़े बांधो के अतर्गत वे बांध आते हैं जिनकी ऊंचाई निम्नतम सतह स्तर से 15 मीटर या उससे ज्यादा हो। इनमें से सैकड़ो बांध ऐसे हैं जो पचास साल से ज्यादा पुराने हैं और उनमें से कई तो अपनी उम्र भी पूरी कर चुके हैं। ऐसे में बांधो का उपयोग जारी रहना काफी जोखिम भरा होता है। भारत में अब तक बांधो से करीब 214 अरब घन मीटर जल संग्रहण क्षमता तैयार किया जा चुका है। जबकि भारत सरकार द्वारा एकीकृत जल संसाधन विकास के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग के अनुसार प्रति वर्ष 1.3 अरब घन मीटर की दर से संग्रहण क्षमता में कमी आ रही है। इसकी प्रमुख वजह है जलाशयों में गाद की मात्रा बढ़ना। इस समस्या के निराकरण के लिए आवश्यक है कि उचित रूप से बांधों का नियमित रखरखाव व मरम्मत किया जाय।

उधारी की सांस लेता विकसित विश्व
Posted on 15 Dec, 2009 08:00 AM मार्टिन खोर

पश्चिमी मीडिया पर्यावरण संबंधी समझौतों में हो रही देरी के लिए अकारण ही विकाशशील देशों को दोषी ठहरा रहा है। पिछले दिनों फाइनेंशियल टाइम्स ने अपने मुखपृष्ठ पर छपे लेख का शीर्षक दिया था 'भारत ने एक दशक तक उत्सर्जन में कमी से इंकार कर ग्रीन एजेंडा ठुकराया।'
रेगिस्तान का खतरा
Posted on 05 Dec, 2009 10:16 AM आने वाले समय में पानी की कमी देश में बहुत बड़ी आफत पैदा करने वाली है। अब तक इसे सिर्फ एक शहरी समस्या की तरह देखा जाता रहा है और इसका समाधान नहरों, पाइपलाइनों और वॉटर हार्वेस्टिंग के जरिए खोजने के प्रयास किए जाते रहे हैं। लेकिन इसका असली खतरा शहरों पर नहीं, गांवों पर और खास तौर पर खेती पर मंडरा रहा है।
कहां से आते हैं जूते?
Posted on 29 Oct, 2009 08:40 AM

कहां से आते हैं जूते?सबके नहीं। हम आप सबके नहीं। पर और बहुत से लोगों के जूते कहां से आते हैं? शायद यह पूछना ज्यादा ठीक होगा कि कहां-कहां से आते हैं?

भगीरथ: जो गंगा को हमारी धरती तक ले आए
Posted on 13 Oct, 2009 07:50 AM भगीरथ का नाम हमारे देश के इतिहास के शिखर पुरुषों में इसलिए दर्ज है कि वे गंगा को इस धरती पर लाए थे। इस काम के लिए, यानी गंगा इस धारा पर आए, इसमें सफलता पाने के लिए भगीरथ ने सारा जीवन खपा दिया और इस हद तक खपा दिया कि सफलता मिल जाने के बाद उनके नाम के साथ दो चीजें (शायद हमेशा के लिए) जुड़ गई हैं।
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