बांधो की सुरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून बनाने की पहल

 * बिपिन चन्द्र चतुर्वेदी 

 

केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार भारत में कुल 4500 से ज्यादा बड़े बांध हैं। इसके अलावा 700 से ज्यादा बड़े बांध प्रस्तावित या निर्माणाधीन हैं। विश्व बांध आयोग के अनुसार बड़े बांधो के अतर्गत वे बांध आते हैं जिनकी ऊंचाई निम्नतम सतह स्तर से 15 मीटर या उससे ज्यादा हो। इनमें से सैकड़ो बांध ऐसे हैं जो पचास साल से ज्यादा पुराने हैं और उनमें से कई तो अपनी उम्र भी पूरी कर चुके हैं। ऐसे में बांधो का उपयोग जारी रहना काफी जोखिम भरा होता है। भारत में अब तक बांधो से करीब 214 अरब घन मीटर जल संग्रहण क्षमता तैयार किया जा चुका है। जबकि भारत सरकार द्वारा एकीकृत जल संसाधन विकास के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग के अनुसार प्रति वर्ष 1.3 अरब घन मीटर की दर से संग्रहण क्षमता में कमी आ रही है। इसकी प्रमुख वजह है जलाशयों में गाद की मात्रा बढ़ना। इस समस्या के निराकरण के लिए आवश्यक है कि उचित रूप से बांधों का नियमित रखरखाव व मरम्मत किया जाय। सामान्यतया बांधो के निर्माण के बाद ही उनका नियमित रखरखाव एवं मरम्मत आवश्यक होता है। अभी तक सामान्यतया बांधो के रखरखाव का जिम्मा सबंधित राज्य एवं उनसे जुड़े विभिन्न पक्षों की होती है। लेकिन भारत में अब तक बने बांधों के रखरखाव व मरम्मत के लिए कोई नियम व कानून तय नहीं है। लेकिन हाल ही में इसके लिए कानून बनाने की मांग उठनी शुरू हुई है। इसलिए केन्द्र सरकार बांधों की सुरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून बनाने पर गंभीरता विचार कर रही है।

 

भारत सरकार द्वारा एकीकृत जल संसाधन विकास के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग के अनुसार प्रति वर्ष 1.3 अरब घन मीटर की दर से संग्रहण क्षमता में कमी आ रही है। इसकी प्रमुख वजह है जलाशयों में गाद की मात्रा बढ़ना। इस समस्या के निराकरण के लिए आवश्यक है कि उचित रूप से बांधों का नियमित रखरखाव व मरम्मत किया जाय। सामान्यतया बांधो के निर्माण के बाद ही उनका नियमित रखरखाव एवं मरम्मत आवश्यक होता है। अभी तक सामान्यतया बांधो के रखरखाव का जिम्मा सबंधित राज्य एवं उनसे जुड़े विभिन्न पक्षों की होती है। लेकिन भारत में अब तक बने बांधों के रखरखाव व मरम्मत के लिए कोई नियम व कानून तय नहीं है।भारत में पानी राज्य का विषय है इसलिए इस पर केन्द्रीय कानून बनाने के लिए कुछ राज्यों की सहमति आवश्यक है। भारत में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राज्य से सम्बन्धित विषय पर कानून बनाने हेतु पहल के लिए किन्हीं दो या दो से ज्यादा राज्यों द्वारा संसद को अधिकृत किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा अन्य राज्य अपने विधानसभा में अधिसूचना जारी करके केन्द्रीय कानून को अपना सकते हैं। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल केन्द्र से इस प्रकार का कानून बनाने का पहले ही आग्रह कर चुके हैं।

 

केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय में सचिव यू एन पंजियार ने हाल ही में बताया कि केन्द्र सरकार देश भर के बांधों की सुरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून बनाने पर काफी समय से विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि अभी तक कोई कानून नहीं हैं जो समय समय पर बांधों के रखरखाव और मरम्मत के बारे में निगरानी रखे और संबंधित राज्यों को इस बारे में सूचित करे। उनका मानना है कि बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था बनाना बहुत जरूरी है और केन्द्र पहले ही इस बारे में विचार कर रहा था। फिलहाल कुछ राज्यों से इस बारे में बातचीत हो चुकी है और कुछ से अभी होनी है। उन्होंने बताया कि बिहार सहित कुछ राज्य अपने यहां पहले ही बांधों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हुए हैं। चूंकि आंध प्रदेश और पश्चिम बंगाल पहले ही कानून बनाने का आग्रह कर चुके हैं इसलिए अब केन्द्र सरकार को यह कानून बनाने में आसानी हो जाएगी। उनका कहना है कि अभी तक कई निजी पक्ष बांधो के निर्माण, संचालन एवं रखरखाव के काम से जुड़ी हुई हैं, उन्हें भी केन्द्रीय कानून के अंतर्गत लाया जाएगा। उन्होंने बताया कि जब इस बारे में सभी संबंधित राज्यों से बातचीत पूरी हो जाएगी तो केन्द्रीय कानून बना लिया जाएगा ताकि देश के सभी बांधों को सुरक्षित और मजबूत रखा जा सके। यदि केन्द्रीय कानून की प्रक्रिया आगे बढ़ती है तो केन्द्र सिर्फ परियोजनाओं की निगरानी का काम करेगा जबकि संबंधित राज्य अपने यहां संस्थागत व्यवस्था बनाकर बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएंगे।

 




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