मिहिर शाह
मिहिर शाह
खेती-किसानी को कैसे मिले राहत
Posted on 17 Jun, 2017 01:26 PMकिसान हमारे नीति-निर्माताओं की उतनी तवज्जो कभी नहीं पा सके जितनी के वे हकदार हैं। यही कारण है कि उत्पादन-अतिरेक की स्थिति में उन्हें अपनी उपज औने-पौने दाम में बेचने तक के लाले पड़ जाते हैं। किसी प्राकृतिक आपदा के चलते उनकी फसल मारी जाती है, तो उन्हें हुए खासे आर्थिक नुकसान की संतोषजनक तरीके से भरपाई सरकार की तरफ से नहीं हो पाती। जो कर्ज उन्होंने लिया होता है, उसे वह चुका नहीं पाते। किस
निर्भर नहीं, आत्मनिर्भर !
Posted on 27 Dec, 2009 07:11 PMसामाजिक पुनरुत्थान का काम करने वालों या लोक सेवकों के बगैर नरेगा को एक ऐसी योजना में तब्दील करना मुश्किल है, जहां मांग के अनुरूप कार्य हो। वरना अभी जो ऊपर से थोपी गई कार्यप्रणाली चल रही है, वही बिना किसी जांच-परख के चलती रहेगी। पंचायत राज संस्थाओं को तकनीकी रूप से मजबूत बनाए बगैर ठेकेदारों को पिछले दरवाजे से घुसने से रोका नहीं जा सकेगा।राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) क्रांतिकारी जनपक्षधर विकास कार्यक्रमों का वायदा करती है। ग्राम सभा और ग्राम पंचायतों द्वारा उसकी योजना, क्रियान्वयन और जांच-परख से हजारों स्थायी रोजगार पैदा हो सकते हैं। लेकिन नरेगा की लड़ाई बरसों से चले आ रहे एक बुरे अतीत के साथ है। पिछले साठ सालों से ग्रामीण विकास की योजनाएं राज्य की इच्छा और सदाशयता पर ही निर्भर रही हैं। श्रमिकों को दरकिनार करने वाली मशीनों और ठेकेदारों को काम पर लगाते हुए इन योजनाओं को ऊपर से नीचे के क्रम में लागू किया गया, जो बुनियादी मानवाधिकारों का भी उल्लंघन था।इन सबको बदलने के लिए ही नरेगा की शुरुआत हुई और इसमें कोई शक नहीं है कि नरेगा के वायदों ने भारत के गांवों में रहने वाले निर्धन लोगों के हृदय और दिमागों को बहुत सारी उम्मीद और अपेक्षाओं से रोशन किया है। लेकिन इस योजना के शुरू के तीन वर्षो से
नरेगा: आंध्र प्रदेश ने रचा इतिहास
Posted on 02 Apr, 2009 08:29 PMमिहिर शाह व प्रमथेश अम्बस्ताआंध्र प्रदेश में नरेगा के सोशल ऑंडिट की ताकत का अहसास इस बात से होता है कि नरेगा के तहत 120 लाख की आबादी का सफलतापूर्वक सोशल ऑंडिट किया गया है, यह नागरिक समाज का एक ऐतिहासिक उदाहरण है, जिसने मुख्यधारा की जन पक्षधर राजनीति को सशक्त बनाया है।