भारत

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वर्षा-गान
Posted on 19 Feb, 2011 04:48 PM कालिदास का एक श्लोक मुझे बहुत प्रिय हैं। उर्वशी के अतंर्धान होने पर वियोग-विह्वल राजा पुरुरवा वर्षा-ऋतु के प्रारंभ में आकाश की ओर देखता है। उसको भ्रांति हो जाती है कि एक राक्षस उर्वशी का अपहरण कर रहा है। कवि ने इस भ्रम का वर्णन नहीं किया; किन्तु वह भ्रम महज भ्रम ही है, इस बात को पहचानने के बाद, उस भ्रम की जड़ में असली स्थिति कौन सी थी, उसका वर्णन किया है। पुरूरवा कहता है- “आकाश में जो भीमकाय काला-
समन्वय-साधिका सरस्वती
Posted on 19 Feb, 2011 04:46 PM सरस्वती का नाम याद करते ही मन कुछ ऐसा विषष्ण होता है। भारत की केवल तीन ही नदियों का नाम लेना हो तो गंगा, यमुना के साथ सरस्वती आयेगी ही। अगर सात नदियों को पूजा में मदद के लिए बुलाना है तो उनके बीच बराबर मध्य में सरस्वती को याद करना ही पड़ता हैः

गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिन्धु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

अनेक नखरेवाली नदी सतलज
Posted on 19 Feb, 2011 01:38 PM बचपन में जब हमने भगवान की पूजा के मंत्र कण्ठ किये तब एक मंत्र में भारत की मुख्य सात नदियों को हमारी पूजा के कलश में (लोटे में) आकर बैठने की प्रार्थना करते थे। उसमें सिंधु नदी थी। हमने सुना कि सिंधु बड़ी होने के कारण उसे सिंधुनद कहते हैं। सिंधु, ब्रह्मपुत्र और शोणभद्र ये भारत के प्रख्यात नद है।
‘पतित-पावनी’ वैगैई
Posted on 19 Feb, 2011 01:36 PM अगर मदुराई के जैसा इतिहास प्रसिद्ध नगर और तीर्थ-स्थान उसके किनारे पर नहीं होता तो वैगैई नदी की ओर मेरा ध्यान ही नहीं जाता। कृष्णा, गोदावरी, तुंगभद्रा, कावेरी आदि दक्षिण के विख्यात नदियों के साथ वैगैई नदी का नाम कभी सुना नहीं था। लेकिन मदुराई जैसी संस्कृतिधानी जिस नदी के तट पर विराजमान है उसके महत्त्व का इन्कार कौन करेगा?
अवन्ति की शिप्रा
Posted on 19 Feb, 2011 01:31 PM कथा हमें तो बिलकुल रोचक नहीं मालूम हुई। महाराष्ट्रीयों ने शिप्रा क
दूसरी कटि-मेखला ताप्ती
Posted on 19 Feb, 2011 01:28 PM विंध्य और सतपुड़ा पर्वत, नर्मदा और ताप्ती (तापी) नदियां चारों मिलकर भारत माता की कटिमेखला बनते हैं।
कटि –मेखला, विंध्य-सतपुड़ा
Posted on 19 Feb, 2011 01:26 PM विंध्य और सतपुड़ा नर्मदा के बलवान् रक्षक है। इन दोनों ने मिलकर नर्मदा को उसका जल भी दिया है और उसका रक्षण भी किया है। ये दोनों पहाड़ नर्मदा के अति निकट होने के कारण नर्मदा को न अपना पात्र बदलने का मौका मिला है, न अपने पानी के आशीर्वाद से दूर-दूर तक खेती करने की जमीन उसे मिली है।
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