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विचार का सूखा और डूब
Posted on 05 Oct, 2012 01:18 PM

कहा जाता है कि जब सौ साल पहले अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाया तो यहां छोटे-बड़े कोई 800 तालाब थे। आज मुश्कि

drought
विषाणुओं का भय
Posted on 04 Oct, 2012 03:21 PM उपभोक्ता बाजार विषाणु मुक्त करने वाले तरल साबुनों की बाढ़ से अट सा
रिकार्ड में नहीं, खूंटों पर चाहिए
Posted on 04 Oct, 2012 01:16 PM

पुण्यवती तमिल मूल की हैं। कोई दो-तीन सौ बरस पहले अंग्रेज इनके पुरखों को रबड़ की खेती करने यहां तमिलनाडु से ले आए

जल का भंडारा
Posted on 03 Oct, 2012 04:43 PM
लेकिन इसी महाराष्ट्र में एक ऐसा भी इलाका है जो अकाल को अपने गांव की सीमा के बाहर ही रखता है। पानी सहेजने की एक लंबी सामाजिक परंपरा निभाते हुए यह अपनी गुमनामी में भी मस्त रहता है।अकाल की पदचाप सुनाई देने लगी है। पानी के अकाल के साथ-साथ इंसानियत के अकाल की खबरें भी अखबारों में आने लगी हैं। इस अकाल को और ज्यादा भयानक बनाने के लिए महाराष्ट्र राज्य की सरकार ने पहले से ही कमर कस ली थी! सन् 2003 में महाराष्ट्र राज्य की जलनीति तैयार हुई थी। इस नीति में पानी के इस्तेमाल का क्रम बदल डाला था। केंद्र सरकार की नीति में पहली प्राथमिकता पीने के पानी की, दूसरी खेती की और उसके बाद उद्योगों की रखी गई है। पर महाराष्ट्र सरकार ने इस क्रम को बदल कर पहली प्राथमिकता पीने के पानी को दी, दूसरी उद्योगों को और उसके बाद अंतिम खेती को।

बात यहीं तक सीमित नहीं थी। महाराष्ट्र जल क्षेत्र सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत सन् 2005 में दो कानून बहुत आनन फानन में बना दिए गए थे। पहला था महाराष्ट्र जल नियामक प्राधिकरण अधिनियम और दूसरा सिंचाई में किसानों की सहभागिता अधिनियम। पहले कानून का आधार लेकर महाराष्ट्र में जल नियामक प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण पानी की दरों को तय करेगा, जल वितरण करेगा और जल संबंधी विवादों का निपटारा भी वही करेगा अब। ये सारे काम अब तक शासन करता था। अब तीन लोगों का प्राधिकरण इन कामों को करेगा। प्राधिकरण ने पहले काम की शुरूआत भी बड़ी जल्दी कर दी यानी पानी के दरें तय करना। बड़े पैमाने पर पानी के इस्तेमाल के लिए किस तरीके से दरें तय हों यह बताने के लिए ए.बी.पी. इन्फ्रास्ट्रकचर प्रा. लि. नामक कंपनी को टेंडर निकाल
खुले में शौच के खिलाफ निकाली जा रही ‘निर्मल भारत यात्रा’ में शिरकत करेंगी विद्या बालन
Posted on 30 Sep, 2012 02:24 PM 28 सितंबर 2012, दिल्ली। वॉश युनाइटेड, क्विकसैंड, गेट्स फाउंडेशन, डब्ल्यूएसएससीसी, अर्घ्यम, हिन्दी वाटर पोर्टल, वाटर ऐड और भारत सरकार के निर्मल भारत अभियान सहित कई संगठन मिलकर निर्मल भारत यात्रा निकाल रहे हैं। खुले में शौच को रोकने, ‘हैंड वॉशिंग’ और औरतों में माहवारी संबंधी स्वच्छता की जागरूकता के लिए निर्मल भारत यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। भारत सरकार के निर्मल भारत अभियान की अबेंसडर विद्या बालन भी इस अभियान में जोर-शोर से शिरकत कर रही हैं।
निर्मल भारत यात्रा की जानकारी देते बाएं से पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री जयराम रमेश, अभिनेत्री विद्या बालन, अर्घ्यम की अध्यक्षा रोहिणी निलेकणी
सेनिटेशन की बात क्रिकेट और बालीवुड के साथ
Posted on 29 Sep, 2012 12:09 PM वॉश युनाइटेड के कार्यकारी निदेशक थॉर्सन कीफर और क्विकसैंड प्रिंसिपल नीरत भटनागर के साथ बातचीत पर आधारित।

द ग्रेट वॉश यात्रा का विचार कैसे आया? इसके अलावा क्विकसैंड इसमें कैसे शामिल हुआ?
थॉर्सन
निर्मल भारत अभियान
Posted on 29 Sep, 2012 10:00 AM स्वच्छता की दिशा में एनबीए एक नया अध्याय है जो 2022 तक भारत में ख
nirmal_bharat_abhiyan
जैव शौचालयों के लिए रेलवे लगाएगा बैक्टीरिया उत्पादन संयंत्र
Posted on 28 Sep, 2012 02:33 PM कपूरथला, रेलगाड़ियों में जैव शौचालय बनाने के लिए रेलवे कपूरथला स्थित रेल कोच फैक्टरी में जीवाणु उत्पादन संयंत्र लगाने जा रहा है। इस संयत्र से उत्पादित जीवाणुओं का इस्तेमाल जैव शौचालयों में किया जाएगा। इस परियोजना से जुड़े रेलवे कोच फैक्ट्री के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘हम जैव शौचालय में इस्तेमाल होने वाले एनरोबिक बैक्टीरिया (हवा के अभाव में पनपने वाले बैक्टीरिया) के उत्पादन के लिए यहां संयंत्र लगा
खेत खलिहानों में सूखे के संकेत ने देश भर में बढ़ाई चिंता
Posted on 27 Sep, 2012 12:58 PM खेत खलिहानों में सूखे के संकेत किसानों की पेशानी पर चिंता की लकीरों के रूप में दिखने लगे हैं। देश के उत्तरी, पश्चिमी हिस्सों व कर्नाटक सूखे जैसे हालात की आहट सुन रहा है और किसान व पशुपालक संकट में आने लगे हैं। अनेक भागों में पेयजल का संकट खड़ा हो रहा है जबकि फल, सब्जी, दाल व चीनी के दाम बढ़ने लगे हैं। चारे की कमी ने पशुपालकों की दिक्कते बढ़ा दी हैं। देश भर से मिली जानकारी के मुताबिक पंजाब, हरियाणा
पानी का पैसा
Posted on 26 Sep, 2012 03:16 PM असीम मुनाफे के उपासक भारत में पानी के निजीकरण के लिए दिन रात जुटे हुए हैं और काफी तैयारियां कर ली भी गई हैं। विशेषज्ञों तथा नौकरशाही को समझाकर अपने खेमे में मिला लिया गया है। हर कोई पानी के निजीकरण के नए मंत्र का जाप करता दिखाई दे रहा है। बहती नदियों के दोनों किनारों पर उद्योगों के कालेधन को सफेद बनाने के नाम पर फार्म हाउस बन गए हैं। जिस पानी को राह चलते राहगीरों को पिलाने में अपार सुकून मिलता
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