Posted on 06 Sep, 2013 11:48 AMकेन किनारे पल्थी मारे पत्थर बैठा गुमसुम! सूरज पत्थर सेंक रहा है गुमसुम! साँप हवा में झूम रहा है गुमसुम! पानी पत्थर चाट रहा है गुमसुम! सहमा राही ताक रहा है गुमसुम!
Posted on 06 Sep, 2013 11:47 AMहे मेरी तुम सोई सरिता! उठो, और लहरों से नाचो तब तक, जब तक आलिंगन में नहीं बाँध लूँ और चूम लूँ तुमको! मैं मिलने आया बादल हूँ!!
Posted on 06 Sep, 2013 11:44 AMअरबी घोड़े पर सवार जैसे कोई राजकुमार नदी में डाल गया हो अपना यौवन और वह हो गई हो निहाल ऐसा है उसका यौवन जो नगर में आज नाची और कुहकी- हाथों में भरे मदिरा और हाथ में लिए कटार!
Posted on 06 Sep, 2013 11:43 AMआज नदी बिलकुल उदास थी, सोई थी अपने पानी में, उसके दर्पण पर, बादल का वस्त्र पड़ा था। मैंने उसको नहीं जगाया, दबे पाँव घर वापस आया।
Posted on 06 Sep, 2013 11:39 AMमेरे मन की नदी सदी से वृहत् सूर्य से चमक रही है मेरे पौरुष का यह पानी दृढ़ पहाड़ से टकराता है टूट-टूट जाता है फिर भी बूँद-बूँद से घहराता है नृत्य-नाद की नटी तरंगों के छंदों की जय का ज्वार भरे गाती है कल हंसों से।
Posted on 06 Sep, 2013 11:29 AMअधिष्ठित है नगर का परम पुरुष पहाड़ नवागत चाँदनी के कौमार्य में, आसक्ति को अनासक्ति से साधे, भोग को योग से बाँधे, समय में ही समयातीत हुआ,
पास ही प्रवाहित है अतीत से निकल आई, वर्तमान को उच्छल जीती, भविष्य की भूमि की ओर संक्रमण करती नदी, गतिशील निरंतरता की जैसे वही हो एकमात्र सांस्कृतिक, चेतन अभिव्यक्ति।
Posted on 06 Sep, 2013 11:26 AM(‘डायरी’ एक ऐसी चीज, जिसे आप एक्स्पैक्ट करते है मुझसे लिखने के लिए, मगर जिसे कोंटेनेंस करने के लिए आप तैयार नहीं- मैं लिख रहा हूँ-लिख रहा हूँ-क्योंकि वह चीज खुद मैं भी, मैं खुद भी लिखना चाहता हूँ : और बिलाशुबह वह तो मेरा कोंटेनेंस है ही-मेरा चेहरा, मेरी रूह, हाँ, मेरी रूह।)
मिसेज ‘अश्क’ जो दरिया के सफे-मक्खनी उफान में एक औरत का दिल लेकर, आसमान की आँखों में बैठ
Posted on 05 Sep, 2013 11:30 AMतापमान बढ़ने के साथ ही गुर्दे की पथरी के मामले भी बढ़ जाते हैं। इस दौरान इन मामलों में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी देखी जाती है। मौसम, तापमान और नमी कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो मूत्राशय की पथरी के बनने में अपना योगदान देते हैं। गर्म इलाकों में इसके बढ़ने की संभावना ज्यादा हो जाती है...