उद्देश्य : हमारे देश की ऊर्जा क्षमता को बेहतर करने के उपायों द्वारा वैश्विक तापवृद्धि को धीमा करना। जब तक हम कारों से निकली गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं करते, कोई भी तापवृद्धि संबंधी उपाय सफल नहीं हो सकते।
Posted on 17 Sep, 2013 01:18 PMभारतीय लोक जीवन में तो जल की महत्ता और सत्ता अपरंपार है। वह प्राणदायी नहीं अपितु प्राण है। वह प्रकृति के कण-कण में है। वह पानी के
Posted on 16 Sep, 2013 03:10 PMमैं गुजरा हूँ उन खेतों से, मंद बयार के अहरह झोंको में, जहाँ गदराई हरीतिमा झूम रही थी- और अब मैं रुकता हूँ और पीछे मुड़कर देखता हूँ- वहाँ स्वर्ण-रेखा है- सोने की लकीर, उसका उत्फुल्ल जल उस चट्टान पर उच्छल जिस पर हम बैठे थे और प्यार की बातें की थीं, धूम-भूरे बादल से कोमल तिपहरी में : वे रहे हमारे पदचिन्ह
Posted on 16 Sep, 2013 03:08 PM...और यह वह स्थल, यही नदी वह जिसके तट बैठे थे सट हम दोनों, पहली बार: और नयन के मूक-मुखर स्वर में बातें दो-चार कर लेते थे.. आँखों के वे स्वर मूक, निरर्थक, फिर भी, सुख पीड़ा के व्यंग्य-मार से पिच्छल, और-किंतु, वह था विगत जन्म में।
यह नदी, स्वर्ण-रेखा स्मृति के दो तट जिसके, यह हम में है; और क्षणों का ढूह-रेत,
Posted on 16 Sep, 2013 03:07 PMमाँझी! जल का छोर न आता अब भी तट आँखों से ओझल माँझी! जल का छोर न आता भरी नदी बरसाती धारा घन-गर्जन अंबर अँधियारा काली-काली मेघ घटाएँ आ पहुँची रजनी अज्ञाता माँझी! जल का छोर न आता क्षुब्ध पवन वन-पथ में रोता दुर्दिन को उन्मत्त बनाता नभ अश्रांत गाढ़ी तम छाया मन वियोगिनी का भर आया प्राणों की आशा बादल पर खींच रही जो मौन सुजाता माँझी! जल का छोर न आता