जैसे लहरों की हजार बाँहें खोल
मिलने को आती नदी
वापस लौट गई हो
पराए फूलों की घाटी में
मुड़कर डूब गई हो!
कितना दुखदाई है
किसी भी चीज का
मिलते-मिलते खो जाना
कैसा होता है
अपनी हर बात का
नहीं हुआ हो जाना!
मिलने को आती नदी
वापस लौट गई हो
पराए फूलों की घाटी में
मुड़कर डूब गई हो!
कितना दुखदाई है
किसी भी चीज का
मिलते-मिलते खो जाना
कैसा होता है
अपनी हर बात का
नहीं हुआ हो जाना!
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