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नदियों को मारो मत...
Posted on 22 Sep, 2014 01:21 PM

नदियों को मारो मत,
निर्मल ही रहने दो।
अविरल तो बहने दो
जीयो और जीने दो।

हिमधर को रेती से,
विषधर को खेती से,
जोड़ो मत नदियों को,
सरगम को तोड़ो मत।

सरगम गर टूटी तो,
टूटेंगे छंद कई,
रुठेंगे रंग कई,
उभरेंगे द्वंद्व कई।
नदियों को मारो मत...

तरुवर की छांव तले।

पालों की सीलेंगे,

polluted river
प्रकृति के साथ मिलकर करें विकास
Posted on 21 Sep, 2014 12:13 PM नदियों, झीलों और पहाड़ों के पेट में घुसकर जिस तरह का निर्माण किया गया; उसे सभ्य समाज द्वारा विकसित सभ्यता का नाम तो कदापि नहीं दिया जा सकता।

. विकास और विनाश दो विपरीत ध्रुवों के नाम हैं। दोनों के बीच द्वंद्व कैसे हो सकता है? पहले आए विनाश के बाद बोए रचना के बीज को तो हम विकास कह सकते हैं; लेकिन जो विकास अपने पीछे-पीछे विनाश लाए, उसे विकास नहीं कह सकते। दरअसल वह विकास होता ही नहीं। बावजूद इस बुनियादी फर्क के हमारे योजनाकार आज भी अपने विनाशकारी कृत्यों को विकास का नाम देकर अपनी पीठ ठोकते रहते हैं।

विनाशकारी कृत्यों का विरोध करने वालों को विकास विरोधी का दर्जा देकर उनकी बात अनसुनी करते हैं। सुनकर अनसुनी करने का नतीजा है पहले उत्तराखंड, हिमाचल और अब धरती के जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में जलजला आया और हमने बेहिसाब नुकसान झेला। इन्हें राष्ट्रीय आपदा घोषित करना और हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा अपने जन्मदिन बनाने की बजाय जम्मू-कश्मीर को मदद भेजने का आह्वान संवेदनात्मक, सराहनीय और तत्काल सहयोगी कदम हो सकता है।
Badh
डिब्बाबंद भोजन यानि धीमा जहर
Posted on 20 Sep, 2014 10:48 AM बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में आकर भारत सरकार एक बार पुनः मध्या
आदिवासियों को विशेषज्ञों से बचाएं
Posted on 20 Sep, 2014 10:19 AM हमारे देश में आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने की मुहीम के चलते हमने उनका जीना दूभर कर दिया है। कोई भी समाज या समुदाय अपनी आंतरिक चेतना से ही बदलाव को अपना पाता है। हमारे नीति नियंताओं ने भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने के निमित्त आदिवासियों को जंगल से बाहर खदेड़ने के लिए एक काल्पनिक मुख्यधारा प्रवाहित कर ली है और यह बहाकर कहां ले जाएगी इसका भान किसी को भी नहीं है। प्रमुख चिंतक डॉ.
बीटी कपास भूजल को भी दूषित कर रहा है
Posted on 18 Sep, 2014 04:27 PM
दस साल पहले 2002 में बीटी (बेसिलस थुरिनजेनिसस) कपास को भारत के किसानों के हाथों में कई सारे फील्ड ट्रायल के बाद सौंप दिया गया। किसानों को इसे सौंपते हुए इसकी खूबियां गिनाई गईं। कहा गया - इसकी खेती की लागत सामान्य कपास के मुकाबले कम पड़ेगी और इसमें कीटनाशकों का खर्च भी कम आएगा। लेकिन नतीजे के तौर पर आज इस कपास के पीछे कई हजार किसानों को आत्महत्या तक का
<i>बीटी कपास</i>
दम तोड़ रहे हैं हमारे तालाब
Posted on 18 Sep, 2014 10:38 AM अचानक 2003 में उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मऊरानीपुर कस्बे की नगरपालिका यहां पूर्व दिशा में स्थित दो तालाब को लेकर फिक्रमंद दिखने लगीं। इस कस्बे के दो तालाब- वाजपेयी और मुनि तालाब के बारे मेें नगरपालिका ने प्रदेश सरकार को एक चिट्ठी लिखी और कहा -‘केंद्र और राज्य सरकारें तालाबों के संरक्षण को इच्छुक हैं और फिलहाज इन तालाबों पर किसी का अवैध कब्जा भी नहीं है इसलिए इन पर काम शुरू किया जाए।’
बात आई-गई हो गई और एक दशक का लंबा वक्त बीत गया। पिछले साल की गर्मियों में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नगर विकास मंत्री आजम खान ने एक बार फिर बुंदेलखंड के तालाबों के संरक्षण को लेकर दिलचस्पी जाहिर की। कुल 16 तालाबों के संरक्षण के नाम पर 66 करोड़ रुपए जारी किए गए। संरक्षण बनाने के लिए नगरपालिका ने जब अपने रिकॉर्ड खंगाले तो उसमें मुनि तालाब का जिक्र तक नहीं था और वाजपेयी तालाब भी अपनी भौगोलिक सरहद में आधा ही बचा हुआ था।
<i>मदन सागर तालाब</i>
ओजोन तथा इसका क्षरण
Posted on 16 Sep, 2014 12:58 PM ओजोन एक प्राकृतिक गैस है, जो वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। पृथ्वी पर ओजोन दो क्षेत्रों में पाई जाती है। ओजोन अणु वायुंडल की ऊपरी सतह (स्ट्रेटोस्फियर) में एक बहुत विरल परत बनाती है। यह पृथ्वी की सतह से 17-18 कि.मी. ऊपर होती है, इसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल की कुल ओजोन का 90 प्रतिशत स्ट्रेटोस्फियर में होता है। कुछ ओजोन वायुमंडल की भीतरी परत में भी पाई जाती है।

स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन परत एख सुरक्षा-कवच के रूप में कार्य करती है और पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाती है। स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन एक हानिकारक प्रदूषक की तरह काम करती है। ट्रोपोस्फियर (भीतरी सतह) में इसकी मात्रा जरा भी अधिक होने पर यह मनुष्य के फेफड़ों एवं ऊतकों को हानि पहुंचाती है एवं पौधों पर भी दुष्प्रभाव डालती है।
Ozone
जल प्रलय
Posted on 16 Sep, 2014 11:28 AM क्रोध में अम्बर तना था
अवनि पर भी बेबसी थी
जिंदगी की डोर मानो
बादलों ने थाम ली थी
पर्वतों से छूट आफत
घाटियों में बह रही थी
महल डूबे झोंपड़ी ने
सांस मानो रोक ली थी
बिछुड़े परिजन कोख उजड़ी
मनुजता असहाय थी

प्रकृति माँ ने धैर्य की
सीमाएं सारी लाँघ ली थीं
स्वर्ग जैसी वादियों में
रक हा हा कर रहा था
दिवस का होना मलिन था
सिंचाई में लवणीय जल की समस्या एवं प्रबंधन
Posted on 15 Sep, 2014 11:31 AM नहरी क्षेत्रों में कई स्थानों पर मिट्टी सदैव नम (तैलीय) सी दिखाई देती है। ऐसी जमीन में फस्ल नहीं होती। ऐसी मिट्टी जब दिखाई दे तो समझ लेना चाहिए कि मिट्टी भूमि ऊसर या सेम की समस्या से ग्रसित हो चुकी है। अतः बिना ऊसरता को समाप्त किए इस जमीन में कोई भी फसल लेना आर्थिक रूप से उपादेय नहीं होगा। तेलिया या सोडिक जल से सिंचाई करने से मिट्टी की भौतिक दशा खराब हो जाती है। अतः इसको सुधारने हेतु कैल्शियम य
Drip Irrigation
सिंचाई व्यवस्था के विविध आयाम
Posted on 15 Sep, 2014 10:26 AM

वर्तमान में सिंचाई सुविधाओं के संचालन, अनुरक्षण, विस्तार व आधुनिकीकरण की दिशा में प्रभावी कदम उठाकर सिंचाई व्यवस्था की कुशलता में संवृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में भी भागीदारी सिंचाई प्रबंधन (पीआईएम) के आधार पर क्षमता की उपयोगिता में वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया है। हर्ष का विषय है कि वर्तमान में कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान विभागों के माध्यम से जल स

Drip irrigation
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